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रेयर अर्थ मेटल्स के लिए सरकार ने 7,280 करोड़ रुपये को दी मंजूरी, चीन पर निर्भरता होगी कम

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 26, 2025 19:33 IST

Rare Earth Magnet Scheme:  वर्तमान में, भारत को प्रति वर्ष लगभग 4,000 से 5,000 टन सालाना दुर्लभ खनिज चुम्बकों की आवश्यकता होती है।

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Rare Earth Magnet Scheme:  केंद्र सरकार ने बुधवार को दुर्लभ खनिज स्थायी चुंबकों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए 7,280 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी। इस कदम से देश की चीन पर निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी। यह खनिज इलेक्ट्रिक वाहन, नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, वैमानिकी और रक्षा जैसे कई क्षेत्रों के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में ‘ठोस दुर्लभ खनिज स्थायी चुंबकों के विनिर्माण की प्रोत्साहन योजना’ को स्वीकृति प्रदान की गई।

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह योजना दुर्लभ खनिज स्थायी चुंबक के विनिर्माण को बढ़ावा देगी। इसका उद्देश्य 6,000 टन प्रति सालाना क्षमता सृजित करना है।’’ यह योजना एकीकृत विनिर्माण सुविधाओं के निर्माण में सहायता करेगी। इसमें दुर्लभ खनिज ऑक्साइड को धातुओं में, धातुओं को मिश्र धातुओं में और मिश्र धातुओं को तैयार चुम्बकों में परिवर्तित करना शामिल है।

इस प्रोत्साहन योजना के तहत कुल उत्पादन क्षमता को वैश्विक प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से पांच लाभार्थियों को आवंटित किया जाएगा। प्रत्येक लाभार्थी को अधिकतम 1,200 टन प्रति वर्ष की क्षमता मिलेगी। इस योजना की अवधि परियोजना आवंटन तिथि से सात वर्ष की होगी।

इसमें दो साल का समय दुर्लभ खनिज स्थायी चुंबक (आरईपीएम) के संयंत्र स्थापित करने और अगले पांच वर्ष बिक्री पर प्रोत्साहन देने के लिए निर्धारित किए गए हैं। इस योजना के लिए कुल 7,280 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। इसमें पांच वर्षों के लिए आरईपीएम की बिक्री से संबंधित 6,450 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन और 6,000 टन प्रति वर्ष आरईपीएम विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करने के लिए 750 करोड़ रुपये की पूंजीगत सब्सिडी शामिल है।

प्रत्येक लाभार्थी को 1,200 टन सालाना तक की क्षमता आवंटित की जाएगी। इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा, औद्योगिक अनुप्रयोगों और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स की तेजी से बढ़ती मांग के कारण, भारत में आरईपीएम की खपत 2025 से 2030 तक दोगुनी होने की संभावना है। वर्तमान में, भारत में इन वस्तुओं की मांग मुख्य रूप से चीन सहित अन्य देशों से आयात के माध्यम से पूरी होती है। आधिकारिक बयान में कहा गया, ‘‘इस पहल के साथ, भारत अपनी पहली एकीकृत आरईपीएम विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करेगा, जिससे रोजगार सृजन होगा और इस क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर बनेगा।’’

यह घोषणा महत्वपूर्ण है क्योंकि इन चुम्बकों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता चीन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण वाहन और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में इसकी कमी हुई है और विनिर्माण प्रभावित हुआ है। वाहन, घरेलू उपकरण और स्वच्छ ऊर्जा सहित कई क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले दुर्लभ खनिज चुम्बकों की वैश्विक प्रसंस्करण क्षमता के 90 प्रतिशत से अधिक पर चीन का नियंत्रण है।

चीन सरकार ने चार अप्रैल से सात दुर्लभ मृदा तत्वों और संबंधित चुम्बकों के लिए विशेष निर्यात लाइसेंस अनिवार्य करते हुए प्रतिबंध लगा दिए हैं। वैष्णव ने कहा कि स्थायी चुम्बकों के लिए भारत की आवश्यकताएं लगातार बढ़ रही हैं। भारत इसके लिए ऑस्ट्रेलिया और जापान सहित विभिन्न देशों के साथ सहयोग करने पर विचार कर सकता है। वर्तमान में, भारत को प्रति वर्ष लगभग 4,000 से 5,000 टन सालाना दुर्लभ खनिज चुम्बकों की आवश्यकता होती है।

उन्होंने कहा, ‘‘सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र की कंपनियां इसमें भाग ले सकती हैं। कंपनियों का चयन एक पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से किया जाएगा।’’ भारत में अनुमानित 69 लाख टन दुर्लभ खनिज तत्व का भंडार है। 

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