Ram Mandir Ayodhya: 'राम से बड़ा राम का नाम', आखिर क्यों कहा जाता है, जानिए यहां

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: January 22, 2024 07:09 AM2024-01-22T07:09:01+5:302024-01-22T07:30:22+5:30

सनातन धर्म में कहा जाता है कि राम से बड़ा राम नाम की महिमा है। मान्यता है कि जो भी मनुष्य राम नाम का जप, उच्चारण या श्रवण करता है, उसे जीवन के सभी ज्ञात-अज्ञात पापों से मुक्त मिल जाती है।

Ram Mandir Ayodhya: 'Ram's name is bigger than Ram', why is it said, know here | Ram Mandir Ayodhya: 'राम से बड़ा राम का नाम', आखिर क्यों कहा जाता है, जानिए यहां

Ram Mandir Ayodhya: 'राम से बड़ा राम का नाम', आखिर क्यों कहा जाता है, जानिए यहां

Highlightsसनातन धर्म में कहा जाता है कि राम से बड़ा राम नाम की महिमा है।राम नाम के जप, उच्चारण या श्रवण से मनुष्य को सभी ज्ञात-अज्ञात पापों से मुक्त मिल जाती है।शास्त्रों में अयोध्या नरेश रघुनंदन श्रीराम के 108 नामों के बारे बताया गया है।

Ram Mandir Ayodhya:  सनातन धर्म के अनुसार भगवान राम को विष्णु के अवतार माना जाता है। शास्त्रों में अयोध्या नरेश रघुनंदन श्रीराम के 108 नामों के बारे बताया गया है और इन सभी 108 नामों को अष्टोत्तर शतनामावली के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि जो भी मनुष्य प्रभु राम के इन नामों का जप, उच्चारण या श्रवण करता है, उसे जीवन के सभी ज्ञात-अज्ञात पापों से मुक्त मिल जाती है।

लेकिन क्या आप जानते हैं, इसी सनातन धर्म में कहा जाता है कि राम से बड़ा राम नाम की महिमा है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके पीछे एक पौराणिक कहानी छुपी हुई है। रामायण की कथा के अनुसार लंका विजय के पश्चात जब श्रीराम अयोध्या की राजगद्दी पर सवार हुए तो एक बार श्रीराम दरबार में हनुमानजी अपने आराध्य रघुनंदन महाराज श्री रामजी की सेवा इतनी तन्मय से कर रहे थे कि उन्हें सभा में कुलगुरु वशिष्ठ के आगमन का ध्यान नहीं रहा।

वहीं सभा में मौजूद अन्य सभी लोगों ने आसन से उठकर वशिष्ठ मुनि का अभिवादन किया लेकिन हनुमानजी को प्रभु राम के अलावा कोई और सुध नहीं थी। इस कारण मुनि वशिष्ठ को लगा कि हनुमान ने उनका अपमान किया है, अभिवादन न करके उनकी अवज्ञा की है।

इससे कुपित होकर मुनि वशिष्ठ ने सभा के शीर्ष स्थान पर बैठे श्री राम से कहा, "हे राम, तुम्हारी इस सभा में मेरा निरादर हुआ है। तुम्हारे इस सभा में मेरी अवहेलना हुई है राम। अब तुम ही बताओ कि भरी सभा में मेरा अभिवादन नहीं करके जिसने मुझे अपमानित किया है। उसे कौन सा दंड मिलना चाहिए।

श्रीराम अपने आसन से उठे और विनम्रता से करबद्ध होते हुए मुनि वशिष्ठ से कहा- 'हे, गुरुवर आप ही बतायें कि आपका अनादर करने वाले को कैसा दंड दिया जाए'।

क्रोधवश कुपित होकर मुनि वशिष्ठ जी ने कहा- 'हे राजन, इसके लिए तो मृत्युदण्ड ही सबसे श्रेयस्कर होगा।'

सभा में सभी लोग मुनि वशिष्ठ की बात सुनकर सन्न थे, लेकिन श्रीराम जी ने कहा- 'गुरुदेव आपकी आज्ञा स्वीकार है।'

इसके पश्चात श्रीराम जी ने कहा- 'गुरुदेव बतायें कि मेरी सभा में किसने यह अपराध किया है? कौन है, जिसने आपका अनादर मेरी सभी में किया है।'

मुनि वशिष्ठ ने कहा- 'राम मैं उसका नाम तो बता दूंगा लेकिन वो तुम्हारा इतना प्रिय भक्त है कि मुझे संशय है कि उसका मृत्युदंड पूरा होगा या नहीं।'

श्रीराम ने मुनि के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा- 'गुरुदेव, इक्ष्वाकु वंश में जन्म लेने वाले दशरथ के पुत्र राम के लिये सब समान हैं। आप आज्ञा करें।'

वशिष्ठ ने कहा- 'राम मेरे कहने का आशय वो नहीं था, जो तुमने समझा। राम! मुझे तुम्हारे उपर कोई संशय नहीं है पर, मुझे तो मृत्युदण्ड के परिपूर्ण होने पर संशय है। यदि तुम मुझे यह विश्वास दिलाओ कि तुम स्वयं अपने अमोघ बाण से उसे मृत्युदण्ड दोगे तो ही मैं इस सभा में मौजूद उसका नाम बताऊंगा, जिसने मेरा अपमान किया है।'

श्रीराम जी ने सभी सभा में संकल्प लिया कि वो मुनि वशिष्ठ की अवज्ञा करने वाले सभा में मौजूद उस व्यक्त को अमोघ बाण से मृत्युदंड देंगे।

इसके पश्चात मुनि वशिष्ठ ने भरी सभा में सभी के सामने कहा- 'रामभक्त हनुमान ने मेरा अपमान किया है।'

कुलगुरु वशिष्ठ के कहने से सभा में मौजूद सभी लोगों के माथे पर बल आ गया। लेकिन श्रीराम और उनके परमभक्त हनुमान एकदम सामान्य बने रहे।

सभा में हनुमान ने भी स्वीकार किया कि वो अपने प्रभु राम की भक्ति में इतने लीन थे कि उन्हें आभास ही नहीं रहा कि रामसभा में कुलगुरु वशिष्ठ का आगमन हो रहा है।

उसके बाद राम ने सभा में घोषणा की कि आने वाली संध्या काल में सरयू नदी के तट पर वो स्वंय हनुमान को अपने अमोघ बाण से मृत्युदण्ड देंगे।

सभा विसर्जित होने के बाद हनुमान व्याकुल मन लिय अपने घर पहुंचे। जहां मां अंजनी ने उन्हें उदासी की अवस्था में देखा तो सशंकित हुईं और उनसे पूछा- 'मेरे लाल महावीर, अतुलित बल का स्वामी, बुद्धि और ज्ञान का भण्डार तुम आज इतनी सोचनीय मुद्रा में क्यों हो?'

माता अंजनी ने कई बार यह प्रश्न दोहराया लेकिन हनुमान शांत रहे और कुछ नहीं बोले लेकिन मां अंजनी के हठ के कारण उन्होंने सभा में हुई सभी बातों को विस्तार से बताया।

हनुमान ने माता अंजनी से कहा- 'हे माता! आप तो जानती हैं कि मैं रुद्र अवतार हूं। इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई नहीं जो हनुमान को मार सके। मुझे तो अभयता और अमरता का वरदान है किन्तु भगवान श्रीराम के अमोघ बाण से कोई नहीं बच सकता है।'

हनुमान की सारी व्यथा सुनकर माता अंजनी ने कहा- 'मेरे लाल हनुमान, मैंने भगवान शंकर से 'राम' नाम मंत्र प्राप्त किया था और तुम्हे भी जन्म के समय से मैं उसी मंत्र की घुट्टी पिला रही हूं। वो राम के नाम का प्रताप था कि तुमने बचपन में सूर्य को लाल फल समझकर खा लिया था। पुत्र याद रखो, तुम्हारे पास राम नाम का मंत्र है और उस मंत्र के होते हुए कोई भी तुम्हारा बाल बांका नहीं कर सकता। भले ही वो स्वयं श्रीराम ही क्यों न हों।'

अंजनी ने कहा- 'हे मारुति नंदन, अतुलित बल के स्वामी हनुमान इस बात का स्मरण सदैव रखना, राम नाम की शक्ति के सामने राम की शक्ति और उनके अमोघ बाण की शक्ति महत्वहीन हो जायेगी। जाओ मेरे लाल, अभी से सरयू तट पर जाकर राम नाम के मंत्र का जाप करो।'

इतना सुनने और माता का आदेश पाकर हनुमान सीधे सरयू तट पर पहुंचे और वहां आसन जमाकर राम नाम के मंत्र का जाप करने लगे।

अगले दिन सांध्यबेला में श्रीराम सम्पूर्ण दरबार सहित सरयूतट आये। सब तरफ कोतुहल था, क्या राम अपने सबसे प्रिय भक्त हनुमान को मृत्युदंड की सजा देंगे?

श्रीराम ने हनुमान को देखा और एक नहीं कई बार रामबाण और अपनी महान शक्ति से सिंचिंत अमोघशक्ति बाण चलायें, पर हनुमानजी के ऊपर उन बाणों का कोई असर नहीं हुआ तो कुलगुरु वशिष्ठ जी ने श्रीराम के समक्ष जाकर शंका जताई। मुनि वशिष्ठ ने कहा- 'राम क्या तुम अपनी पूर्ण निष्ठा से बाणों का संधान कर रहे हो?'

श्रीराम ने कुलगुरु के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा- 'हां, मुनिश्रेष्ठ मैं अपने गुरुदेव के अपराधी को मृत्युदंड देने के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति को संचित करके अमोघ बाण चला रहा हूं, लेकिन मेरे सारे प्रयास निरर्थक साबित हो रहे हैं। उन अमोघ दिव्य बाणों का हनुमान पर कोई असर नहीं हो रहा है क्योंकि गुरुदेव हनुमान अखंड राम-राम का जाप कर रहा है।'

राम ने गुरुवर वशिष्ठ की वंदना करते हुए कहा- 'हे प्रभु, मेरी शक्तियों का संपूर्ण तेज, उसका अस्तित्व राम नाम के समक्ष महत्वहीन हो रहा है। इस कारण से मेरा कोई भी प्रयास सफल नहीं हो रहा है। आप ही बतायें कि गुरुवर मैं क्या करुं?'

राम के मुख से राम नाम की महिमा सुनकर गुरुदेव वशिष्ठ ने कहा- 'हे राम! आज से मैं तुम्हारा साथ, तुम्हारे दरबार का त्याग करके अपने आश्रम जा रहा हूं। वहां पर मैं भी निरंतर राम नाम का जप करूंगा।'

इसके साथ ही जाते-जाते गुरुदेव वशिष्ठ जी ने यह घोषणा करते हुए कहा- 'हे राम! मैं यहां से जाते हुए घोषणा कर रहा हूं कि स्वयं राम से बड़ा राम का नाम है। राम का नाम महाअमोघ शक्ति का सागर है। जो कोई इसका जप करेगा, लिखेगा, मनन करेगा। उसकी सभी कामनाओं की पूर्ति होगी और वो मोक्ष का भागी होगा। मैं आज से सभी मंत्रों की शक्तियों को राम नाम के समक्ष लघुतर मानता हूं। यही कारण था कि लंका पार करने के लिए पुल बनाते समय वो पत्थर भी पानी पर तैरने लगते थे, जिन पर श्रीराम का नाम लिखा रहता था।'

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