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संस्कृत ने राज्यसभा में बनाई मजबूत पकड़, 2019-20 में 19 सदस्यों ने अपने विचार रखे, जानिए सबकुछ

By सतीश कुमार सिंह | Updated: January 16, 2021 19:59 IST

2019-20 में राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान संस्कृत पांचवीं सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली भाषा थी. चार सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओं में हिंदी, तेलुगु, उर्दू और तमिल है.

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ठळक मुद्देवेंकैया नायडू ने सदन के सदस्यों को अपनी मातृभाषा में अपने विचार रखने के लिए प्रस्ताव पारित किया था.राज्यसभा में क्षेत्रीय भाषा में सदस्यों ने अपने विचार रखने शुरू किए.2018 से 2020 के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग कई गुना बढ़ा.

नई दिल्लीः राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं में संस्कृत ने अपनी पकड़ मजबूत बना ली है. वर्ष 2019-20 के दौरान संस्कृत भाषा में 19 सदस्यों ने अपने विचार रखे.

संस्कृत भाषा राज्यसभा में 5वीं भाषा के रूप में उभरी है. 2018-20 के दौरान सदस्यों ने 22 में से 10 भाषाओं में अपने विचार रखे. उल्लेखनीय है कि अगस्त 2017 में राज्यसभा का अध्यक्ष बनने पर एम. वेंकैया नायडू ने सदन के सदस्यों को अपनी मातृभाषा में अपने विचार रखने के लिए प्रस्ताव पारित किया था.

इसके पीछे सोच ये थी कि क्षेत्रीय भाषा में सदस्य अपने विचारों को आसानी से आदान प्रदान कर सकते हैं, जबकि दूसरी भाषा में उन्हें अपने विचारों को रखने में कठिनाई होती है. इसके बाद से राज्यसभा में क्षेत्रीय भाषा में सदस्यों ने अपने विचार रखने शुरू किए.

इन भाषाओं का उपयोग लंबे समय बाद सदन में हुआ: 2018 से 2020 के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग कई गुना बढ़ा. इस अवधि में डोगरी, कश्मीरी, कोंकणी और संथाली का उपयोग भी सदन में पहली बार किया गया. इसके अलावा छह अन्य भाषाएं असमिया, बोडो, गुजराती, मैथिली, मणिपुरी और नेपाली भाषा का उपयोग भी लंबे समय के बाद सदन में किया गया.

सदन की कार्यवाही के दौरान हिंदी और अंग्रेजी भाषा सबसे अधिक बोली जाती हैं. हिंदी के अलावा 21 अन्य भाषाओं की बात की जाए, तो 14 वर्ष की अवधि में इन भाषाओं का उपयोग पांच गुना 512 प्रतिशत तक बढ़ गया है.

2020 में 49 हस्तक्षेप क्षेत्रीय भाषाओं में: वर्ष 2004 से 2017 के बीच राज्यसभा सदस्यों ने 269 मौकों पर हिंदी के अलावा प्रतिवर्ष 0.291 प्रति बैठक की दर से 923 बैठकों के दौरान 10 अन्य भाषाओं में बात की. वहीं 2020 में 49 हस्तक्षेप क्षेत्रीय भाषाओं में हुए.

सरल शब्दों में 33 बैठकों के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग में 512 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 2013-17 के दौरान हुईं 329 सभाओं में सदस्यों ने 96 बार केवल 10 क्षेत्रीय भाषाओं में बात की, जो बहस तक सीमित रही. 2018-20 के दौरान 163 बैठकों में क्षेत्रीय भाषा का उपयोग 135 बार किया गया, जिसमें 66 हस्तक्षेप बहस में, 62 शून्यकाल में और 7 विशेष उल्लेख शामिल रहे.

22 अनुसूचित भाषाओं में से चार डोगरी, कश्मीरी, कोंकणी और संथाली का उपयोग पहली बार सदन में 1952 के बाद से किया गया. क्षेत्रीय भाषाओं का इस क्र म में हुआ प्रयोग: सदन की कार्यवाही के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग 2013 से 2017 तक 329 बैठकों में और 2018 से 2020 के दौरान 163 बैठकों में किया गया.

संस्कृत की बात करें तो 2019 से 2020 के दौरान 12 हस्तक्षेप इस भाषा में किए गए. जिसके बाद हिंदी, तेलुगू, उर्दू और तमिल के बाद आने वाली 22 अनुसूचित भाषाओं में से संस्कृत पांचवी व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के रूप में उभरी है.

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