अधिकारियों के लालफीताशाही के आगे आम जनता बेबस, नहीं हो रहा सीएम नीतीश कुमार के आदेश का पालन 

By एस पी सिन्हा | Published: August 4, 2019 03:32 PM2019-08-04T15:32:49+5:302019-08-04T15:32:49+5:30

बिहार में हालात ये हैं कि अधिकतर अधिकारी सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये मोबाईल फोन अथवा बेसिक फोन पर उपलब्ध नहीं रहते हैं. वे आम लोगों का फोन तो उठाते हीं नहीं हैं, जिससे जनता अपनी बातों को उनतक पहुंचा नहीं पाती है. 

public is helpless in front of the officials' red tape, not following CM Nitish Kumar's order | अधिकारियों के लालफीताशाही के आगे आम जनता बेबस, नहीं हो रहा सीएम नीतीश कुमार के आदेश का पालन 

अधिकारियों के लालफीताशाही के आगे आम जनता बेबस, नहीं हो रहा सीएम नीतीश कुमार के आदेश का पालन 

Highlights पटना में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय फुटबाल मैच के व्यवस्थापक विवेकानन्द भी इसी पीड़ा से गुजरते पाये गये.अधिकारियों के बीच ऐसी आदत देखी जा रही है कि उनका फोन डावर्ट किया हुआ रहता है, जिससे कोई भी व्यक्ति उनतक अपनी बात नहीं पहुंचा पाता है.

बिहार में सुशासन का सच यह है कि अधिकारियों के लालफीताशाही के आगे आम तो आम अब खास भी बेबस हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अधिकारियों को पीपुल्स फ्रेंडली होने का पाठ प्राय: पढ़ाते रहते हैं, लेकिन इसकी एक भी बानगी बिहार में देखने को नहीं मिलती है. अधिकारियों के तानाशाही रवैये से आम लोग एक ओर जहां त्रस्त हैं, वहीं अपराधियों और अवैध धंधे में शामिल लोग बेखौफ हो घटनाओं को अंजाम देने में जुटे रहते हैं.

बिहार में हालात ये हैं कि अधिकतर अधिकारी सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये मोबाईल फोन अथवा बेसिक फोन पर उपलब्ध नहीं रहते हैं. वे आम लोगों का फोन तो उठाते हीं नहीं हैं, जिससे जनता अपनी बातों को उनतक पहुंचा नहीं पाती है. 

अधिकारियों के बीच ऐसी आदत देखी जा रही है कि उनका फोन डावर्ट किया हुआ रहता है, जिससे कोई भी व्यक्ति उनतक अपनी बात नहीं पहुंचा पाता है. जबकि अधिकारियों को फोन देने के पीछे सरकार की मंशा यह रही है कि वे आम व खास लोगों से सीधा संवाद स्थापित कर सकेंगे. लेकिन सरकार इस मंशा की धज्जियां इन अधिकारियों के द्वारा धडंल्ले उडाई जाने लगी है. 

उदाहरण के लिए सूबे के भोजपुर जिले के सहार प्रखंड के लोगों ने जब सदर अनुमंडलाधिकारी अरूण प्रकाश से सम्पर्क कर अपनी पीडा बताने का प्रयास किया तो तीन-चार दिनों के प्रयास के बावजूद अनुमंडलाधिकारी ने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा. उनका फोन हमेशा डायवर्सन पर पाया गया और उनके कार्यालय के स्टाफ का एक हीं जवाब मिलता रहा कि साहब अभी फील्ड में गये हुए हैं. 

यह वक्त चाहे सुबह के दस बजे हों अथवा शाम के छह बजे, साहब हमेशा फील्ड में हीं रहे. इस खबर की पुष्टी और उनका पक्ष जानने के लिए जब इस संवाददाता ने प्रयास किया तो वही बातें यहां भी सामने आईं. यहां तक कि रविवार के दिन भी साहब फील्ड में हैं ऐसा उनके निजी स्टाफ के द्वारा बताय जाता रहा. यही नहीं जिलाधिकारी भी मीटिंग में व्यस्त पाये गये. 

वहीं, पटना में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय फुटबाल मैच के व्यवस्थापक विवेकानन्द भी इसी पीड़ा से गुजरते पाये गये. उन्होंने बताया कि सरकार के द्वारा एक एम्बुंलेंस उअपलब्ध कराने का आश्वासन दिया गया था, जिसका भुगतान भी किये जाने की बात थी. लेकिन मैच शुरू होने के दूसरे दिन भी वह प्राप्त नहीं हो सका. इस संबंध में जब उन्होंने उच्च अधिकारियों से बात करने का प्रयास किया तो किसी ने भी फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा. 

यहां तक उन्होंने यह संवाद भी मैसेज किया, लेकिन उसका भी कोई जवाब नहीं आया. यह एक दो बातें नहीं हैं, सूबे में शायद हीं कोई उच्च अधिकारी जनता की समस्या को फोन पर सुन पाता है. सबसे मजेदार बात तो यह भी है कि सरकार ने यह फरमान जारी कर रखा है कि अधिकारी हर सप्ताह गांवों में जाकर जनता की फरियाद सुनने के लिए जनता दरबार लगायेंगे. लेकिन यह भी केवल हवा-हवाई साबित हो रहा है.

कोई भी अधिकारी अपना चैंबर तबतक नहे छोडता जबतक कि कोई बड़ी अप्रिय घटना न घट जाये. जनता त्राहिमामा कर उनसे मिलने अगर उनके कार्यालय में जाती है तो साहब से मुलाकात होना भगवान से मुलाकात होने के समान हीं माना जाने लगा है. बहरहाल, जनता त्रस्त और अधिकारी मस्त यही है बिहार के सुशासन का हाल.

Web Title: public is helpless in front of the officials' red tape, not following CM Nitish Kumar's order

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