लखनऊ:उत्तर प्रदेश में बेसहारा गोवंश के भरण-पोषण के लिए बनाए गए 7,560 गोआश्रय स्थलों को योगी सरकार जल्दी ही निजी संस्थाओं को सौंपेगी. सूबे के पशुपालन विभाग ने सभी 7,560 गोआश्रय स्थलों का संचालन पीपीपी मॉडल पर निजी संस्थाओं को सौंपने का प्लान तैयार कर लिए है. जल्दी ही इस संबंध में कैबिनेट से समक्ष प्रस्ताव रखा जाएगा.
राज्य के प्रमुख सचिव पशुपालन एवं दुग्ध विकास मुकेश कुमार मेश्राम के अनुसार, गोआश्रय स्थलों का संचालन पीपीपी मॉडल पर निजी संस्थाओं को सौंपने से पशुओं की बेहतर देखभाल हो सकेगी. इसी सोच के तहत निजी संस्थाओं को गोआश्रय स्थलों की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया गया है. जल्दी ही निजी संस्थाओं से एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट (ईओआई) मांगे जाएंगे और आवेदन करने वाली एफपीओ, एनजीओ, धार्मिक और निजी संस्थाओं में से चयन कर उन्हें गोआश्रय स्थलों का संचालन सौंप दिया जाएगा.
इसलिए निजी क्षेत्र को सौपने की पड़ी जरूरत
राज्य में इस वक्त कुल 7,560 गोआश्रय स्थल हैं. इनमें 13.25 बेसहारा गोवंश का भरण-पोषण किया जा रहा है. सूबे के 7,560 गोआश्रय स्थलों में 524 वृहद गोआश्रय स्थल हैं. इन गोआश्रय स्थलों में रह रहे पशुओं के लिए प्रति पशु सरकार 50 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से पशुपालकों को देती है. पशुपालन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, राज्य में निराश्रित पशुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है.
इस कारण सरकार को गोआश्रय स्थल की स्थापना से लेकर उनके रखरखाव और पशुओं की देखरेख तथा संचालन के लिए अतिरिक्त खर्च करना पड रहा है. चूंकि पशुओं की संख्या के हिसाब से गोआश्रय स्थल पर स्टाफ चाहिए. वही दूसरी तरफ गोआश्रय स्थलों में समुचित स्टाफ नहीं है और लगातार स्टाफ कम हो रहा है. जिसके चलते गोआश्रय स्थलों में पशुओं की देखभाल करना मुश्किल होता जा रहा है.
इस वजह से गोआश्रय स्थलों का संचालन निजी संस्थाओं को सौंपने का फैसला किया गया. निजी संस्थाएं जब गोआश्रय स्थल का संचालन करेंगी तो सरकार को उनके संचालन पर खर्च नहीं करना होगा.सरकार को पशुओं के भरण-पोषण के लिए हर दिन प्रति पशु 50 रुपए ही खर्च करने होंगे. यानी हर दिन करीब 66 लाख रुपए पशुओं के भरण-पोषण के लिए 7,560 गोआश्रय स्थलों को देने होंगे.
निजी संस्थाओं की ऐसे होगी आमदनी
सूबे के प्रमुख सचिव पशुपालन मुकेश मेश्राम कहते है कि सरकार का प्रयास है, बेसहारा पशुओं की देखभाल अच्छी तरह से हो. गोआश्रय स्थलों का संचालन निजी संस्थाओं को देने से यह काम ज्यादा बेहतर तरीके से हो सकेगा. अभी प्रति पशु भरण पोषण का जो खर्च आ रहा है, वह उतना ही सरकार निजी संस्थाओं को देगी. निजी संस्थान अपने अन्य संसाधनों से आर्थिक लाभ लेकर पशुओं की और बेहतर देखभाल कर सकेंगी. वह कहते हैं.
वह कहते हैं कि गोआश्रय स्थलों के बेहतर संचालन के लिए निजी संस्थाएं पशुओं के दूध के अलावा अन्य स्रोतों से अपनी आमदनी कर सकती हैं. वो गोबर के दीये, कंडे बनाने के अलावा खाद बेच कर आर्थिक लाभ ले सकती हैं.गोआश्रय स्थलों का संचालन हाथ में लेने वाली निजी क्षेत्र की संस्थाएं गोबर और पराली को मिलाकर मोक्ष दंडिका बना सकती हैं, जिसका उपयोग श्मशान घाट पर किया जा सकता है. इसके अलावा गोआश्रय स्थलों के गोवंश ने गोमूत्र का उपयोग बायो पेस्टिसाइड बनाने में भी किया जा सकता है.