गुवाहाटी:मणिपुर हिंसा के बाद उपजे स्थिति का जायजा लेने के लिए विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के 21 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने बीते रविवार को राज्यपाल अनुसुइया उइके को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि यदि मणिपुर में हिंसा और संघर्ष की स्थिति लंबे समय तक जारी रहती है और इसे रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से प्रभावी कदम नहीं उठाये तो यह देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
समाचार वेबसाइट टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार विपक्षी सांसदों ने अपने ज्ञापन में राज्यपाल उइके से कहा कि बीते मई महीने से मणिपुर में भयावह हालात बने हुए हैं लेकिन हिंसा के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उदासीनता बेहद चिंताजनक विषय है, उन्हें जल्द से जल्द मामले में हस्तक्षेप करके संबंधित पक्षों से बात करके मसले को शांत किया जाना चाहिए।
विपक्षी सांसदों का कहना है कि तीन महीने से लगातार चल रही हिंसा के बाद मणिपुर में स्थिति को सामान्य बनाने के लिए निष्पक्ष तरीके से जरूरी कानूनी प्रवाधानों को लागू करना चाहिए और बातचीत के माध्यम से सर्वमान्य हल की ओर बढ़ना चाहिए।
केंद्र सरकार विरोधी 16 विपक्षी दलों के सांसदों ने अपनी दो दिवसीय यात्रा समाप्त करने से पहले कहा कि मणिपुर में हर कुछ दिनों में भड़कने वाली हिंसा और कूकी-मैतेई समुदायों के बीच बढ़ते अविश्वास के लिए सीधे तौर पर राज्य की सत्ता का संचालन कर रहे मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की सरकार दोषी है।
इसके साथ ही गवर्नर को सौंपे गये विपक्षी दलों के ज्ञापन में कहा गया है, "आपसे अनुरोध है कि पिछले 89 दिनों से मणिपुर में खत्म हो चुकी कानून-व्यवस्था के बारे में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को जल्द से जल्द अवगत कराएं।"
विपक्षी दौरे में शामिल डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा कि मणिपुर में लोगों के अंदर इतना भय है कि वे किसी भी कीमत पर राहत शिविरों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा, "न केवल कुकी और मैतेई बल्कि नागा समुदाय के लोगों के बीच राज्य की भाजपा सरकार ने अपना विश्वास खो दिया है।"
सांसद कनिमोझी ने कहा कि वह राहत कैंप में दो ऐसी महिलाओं से मिलीं। जिनका यौन उत्पीड़न किया गया था लेकिन बावजूद इसके वो न्याय के लिए लड़ने के प्रति प्रतिबद्ध हैं।"
लोकसभा में कांग्रेस की अगुवाई करने वाले सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि मोदी सरकार को यह मानने की जरूरत है कि मणिपुर को लेकर उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। मणिपुर संकट का समाधान खोजने के लिए जल्द से जल्द संसद में चर्चा होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, "दोनों समुदायों के लोगों के जीवन और संपत्तियों की रक्षा करने में केंद्र और राज्य सरकार पूरी तरह से फेल रही है। यही कारण है कि अब तक 140 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 5,000 से अधिक घरों को जलाया गया है। पूरे मणिपुर में इस समय 60,000 से अधिक लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। इसमें चुराचांदपुर, मोइरांग और इम्फाल के राहत शिविरों में रह रहे लोगों की स्थिति बेहद दयनीय है।