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'पकौड़े' की आड़ में बीजेपी छुपा रही है अपनी विफलता, बेरोजगारी पर सरकार हुई फेल!

By ऐश्वर्य अवस्थी | Updated: February 6, 2018 19:43 IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पकौड़ा बनाने को रोजगार बताने पर खूब राजनीति हो रही है, इस राजनीति ने अब नया मोड़ ले लिया है।

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 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पकौड़ा बनाने को रोजगार बताने पर खूब राजनीति हो रही है, इस राजनीति ने अब नया  मोड़ ले लिया है। हिंदी की एक बेहत पुरानी कहावत है, ‘अगर किस्मत में हैं हथौड़े, तो कहां से मिलेंगे पकौड़े' इसको ही भुनाने में ही आजकल राजनेता लगे हुए हैं। कहावत का मतलब है कि अगर आपकी किस्मत में दर-दर की ठोकरें खाना लिखा है, तो जिंदगी में सुख-चैन की उम्मीद करना बेमानी है।

जिस तरह सोमवार को राज्यभा में पकौड़े की दलील दी उससे लगता है बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी इस अनूठी उत्तर भारतीय कहावत पर यकीन करते हैं। देश में बढ़ती बेरोजगारी पर अमित शाह ने बेतुका बयान देते हुए कहा कि 'बेरोजगार होने से बेहतर है, पकौड़े बेचना'। अमित शाह के तर्क का मतलब यह हुआ कि, पकौड़े या उस जैसी नाश्ते की दूसरी चीजें बेचने वाले बेरोजगार लोगों को खुद को बेहद भाग्यशाली समझना चाहिए। लेकिन जो युवा पढ़ें लिखे लाखों खर्च करके पढ़े उनको अगर सरकार रोजगार नहीं दे पा रही तो क्या वो पकौड़े की दुकान खोल लें।

कौन बेचता है ये पकौड़े

अगर अमित शाह के इस बयान पर गहराई में ना जाकर केवल ऊपर से ही सोचा जाए तो पकौड़े बेचना शायद ही किसी की पसंद या करियर विकल्प हो। आमतौर पर पकौड़े बेचने जैसे व्यवसाय का फैसला वह इंसान करता है, जिसके पास अन्य विकल्पों का साधन नहीं होता है। दो जून की रोटी कमाने के लिए मजबूरी में ही लोग पकौड़े की दुकान खोलते हैं।  कोई भी युवा या उस पकौड़े बेचने वाले का ये सपना कभी नहीं होता है कि वह बड़े होकर क्या करेगा पकौड़े की दुकान खोलेगा। अगर सरकार युवाओं को रोजगार देने में नाकामयाब है तो शायद उसे उस मजबूर लोगों की दुखती रग पर हाथ भी नहीं रखना चाहिए।

क्यों चुना बीजेपी को

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने भारी बहुमत से बीजेपी को पकौड़े के लिए शायद नहीं चुना होगा। देश के बेरोजगार युवा गलियों, सड़कों, नुक्कड़ों और चौराहों के किसी कोने पर पकौड़े तलें, अंडे उबालें या पानीपूरी (गोलगप्पों) के स्टॉल लगाएं, ये जनका की मंशा कदापि नहीं रही होगी। जनता ने बीजेपी को इसलिए चुना था, ताकि उन्हें रोजगार मिल सके, देश का विकास हो ,  लेकिन अब अपने बचकाने पकौड़ा तर्क के जरिए बीजेपी केवल अपनी विफलता को छिपा रही है।  खुद बीजेपी ने युवाओं को संकेत दे दिए हैं कि वह उनके लिए कुछ नहीं कर सकते हैं।

पकौड़े तलने का खर्चा देगी सरकार

अगर कोई बेरोजगार पकौड़े की दुकानन खोलता है तो क्या उसको शुरू करने के लिए लगने वाली लागत सरकार देगी। स्टोव, तेल, मसाले और कुछ ग्राम आटा की खरीद  कौन देगा, क्या सरकार इस मामले में युवाओं की कोई मदद करती है? वास्तव में शाह और मोदी ने अपनी दलीलों के जरिए एक निराशाजनक उपाय सुझाया है। मोदी सरकार ने विपरीत परिस्थितियों के सामने हथियार डालकर समर्पण कर दिया है।

30 साल लग जाएंगे नौकरियां पैदा करने में

जनता को बीजेपी से आज भी खासा उम्मीदे हैं। लोगों को लगता था कि बीजेपी केंद्र में आने के बाद रोजगार की समस्या को कम से कम पूरी तरह से दूर कर ही देगी। युवाओं को लगता था कि मोदी हर साल एक करोड़ नौकरियों के अवसर पैदा करने का अपना वादा जरूर पूरा करेंगे। वहीं, 'द हिंदू' अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक नई नौकरियों की वर्तमान दर से मोदी सरकार को अपना वादा पूरा करने में 30 साल लग जाएंगे, ऐसे में क्या तब तक युवाओं को पकौड़े तलने होंगे। देश में हर साल लगभग 13 मिलियन युवा कार्यबल (वर्क फोर्स) में शामिल होते हैं, मतलब हर साल करीब 1 करोड़ 30 लाख नए लोग नौकरी या रोजगार की तलाश में सामने आते हैं। अभी तक मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान इनमें से सिर्फ 3.4 लाख लोगों को ही नौकरियां मिल पा रही हैं।  यह आंकड़े श्रम मंत्रालय द्वारा साल 2016 में कराए गए एक सर्वे के हैं।

कमजोर अर्थव्यवस्था की वजह से नौकरियां हुईं कम

मोदी सरकार की कमजोर अर्थव्यवस्था थी आज नौकरियों की कमी का कारण है। विशेषज्ञों की मानें तो  सरकार के कुछ फैसले जैसे- नोटबंदी और जल्दबाजी में जीएसटी का कार्यान्वयन रहे जो सभी को भुगतने पड़े हैं। इन्हीं कारणों के चलते विकास और निवेश में गिरावट दर्ज की गई है। यूपीए की तुलना में मोदी सरकार के कार्यकाल में बेरोजगारी बढी है। अगर बात  यूपीए सरकार की जाए तो उस दौरान बेरोजगारी दर जहां 4.9 फीसदी थी, वहीं मोदी सरकार में यह संख्या बढ़कर 5 फीसदी हो गई है।

टॅग्स :नरेंद्र मोदीअमित शाहबीजेपी
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