एक कमरा, आठ कंप्यूटर और कश्मीर के हालात दुनिया को बताने के लिए खबर भेजने को लंबी कतार में लगे दर्जनों पत्रकार

By भाषा | Published: February 4, 2020 08:23 PM2020-02-04T20:23:02+5:302020-02-04T20:23:02+5:30

जम्मू-कश्मीर से गत वर्ष पांच अगस्त को अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने की घोषणा करने से एक रात पहले ही घाटी में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं स्थगित कर दी गई।

One room, eight computers and dozens of journalists in long queues to send news to tell the world the situation of Kashmir | एक कमरा, आठ कंप्यूटर और कश्मीर के हालात दुनिया को बताने के लिए खबर भेजने को लंबी कतार में लगे दर्जनों पत्रकार

कुछ स्थानीय मीडिया घरानों ने लीज पर इंटरनेट लाइन ली है लेकिन यह बहुत महंगा है।

Highlightsबारिश, तूफान और हाड़ कंपाने वाली सर्दी के बावजूद पत्रकार कश्मीर में घंटों उस कमरे के बाहर घंटों खड़े रहते हैं। छह महीने हो गए लेकिन संचार माध्यमों पर लगभग पूरी तरह से रोक जारी है।

एक कमरा, उसमें रखे आठ कंप्यूटर और कश्मीर के हालात दुनिया को बताने के लिए खबर भेजने को लंबी कतार में लगे दर्जनों पत्रकार।

यह लेखाजोखा गत वर्ष पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के लिए अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधनों को निरस्त किए जाने के बाद से यहां मीडिया कर्मियों की बढ़ी मुश्किल बताने के लिए काफी है।

बारिश, तूफान और हाड़ कंपाने वाली सर्दी के बावजूद पत्रकार कश्मीर में घंटों उस कमरे के बाहर घंटों खड़े रहते हैं जिसे प्रशासन ने अस्थायी रूप से मीडिया रूम के रूप में स्थापित किया है। जम्मू-कश्मीर से गत वर्ष पांच अगस्त को अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने की घोषणा करने से एक रात पहले ही घाटी में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं स्थगित कर दी गई।

इसे छह महीने हो गए लेकिन संचार माध्यमों पर लगभग पूरी तरह से रोक जारी है। हालांकि, कुछ स्थानीय मीडिया घरानों ने लीज पर इंटरनेट लाइन ली है लेकिन यह बहुत महंगा है और केवल दो तीन अखबारों ने ही यह सुविधा ली है। हालांकि, टूजी मोबाइल नेटवर्क जरूर बहाल किया गया है।

देश के अधिकतर अखबारों के पत्रकार घाटी में मौजूद है और उनकी समस्या यह है कि काम करने के लिए बहुत कम कंप्यूटर उपलब्ध कराए गए हैं। इसका नतीजा यह है कि यहां रह रहे और यहां आने वाले सभी पत्रकारों का ठिकाना मौलाना आजाद रोड स्थित मीडिया रूम होता है।

एक वरिष्ठ पत्रकार ने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘‘27 जनवरी को स्थानीय अखबारों के लिए इंटरनेट की लीज लाइन खोले जाने से कुछ स्थिति सुधरी है और भीड़ कम हुई है लेकिन हमारी समस्या अब भी बरकरार है।’’ पत्रकारों को डर है कि खुलकर शिकायत करने पर मीडिया केंद्र में उनके प्रवेश पर रोक लगा दी जाएगी और उन्हें दुनिया से जुड़ने के एकमात्र माध्यम से वंचित कर दिया जाएगा। पूरे शरीर की जांच करने वाले स्कैनर लिए पुलिस कर्मी पत्रकारों का प्रवेशद्वार पर स्वागत करते हैं।

सुरक्षा जांच के बाद रजिस्टर में उन्हें अपनी पूरी जानकारी देनी होती है जिसके बाद कमरे में प्रवेश की अनुमति दी जाती है, जिस कमरे में कंप्यूटर रखे गये हैं वह सुबह 10 बजे से रात नौ बजे तक खुलता है। कुछ पत्रकारों ने प्रतीक्षा समय कम करने का तरीका खोज लिया है।

वे मीडिया केंद्र में उपलब्ध कराए गए एलएएन (लोकल एरिया नेटवर्क) से अपने लैपटॉप में हॉटस्पॉट बना लेते हैं अन्य को कनेक्शन उपलब्ध कराते हैं इससे एक समय में चार से पांच गुना अधिक पत्रकारों को इंटरनेट सुविधा उपलब्ध हो जाती है।

चूंकि मीडिया केंद्र पत्रकारों के मिलने का स्थान है इसलिए प्रशासन भी उन्हें स्कूलों के खुलने, अस्पताल में ऑपरेशन और ट्रैफिक जाम से जुड़ी विज्ञप्ति इसी स्थान पर मुहैया करा देता है। एक राष्ट्रीय दैनिक के साथ काम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, ‘‘भय के इस माहौल में सरकार के हालात सामान्य होने के दावे को चुनौती नहीं दी जा सकती है।’’

पत्रकारों ने बताया कि पत्रकारों द्वारा कंप्यूटर इस्तेमाल करने का समय दर्ज करने के लिए रजिस्टर कमरे के बाहर रखा गया है और सरकार की उपलब्धि बताने का स्रोत बन गया है। सरकार ने पिछले महीने प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया था कि पांच अगस्त के बाद मीडिया केंद्र में 50,000 से अधिक इंटरनेट सत्र की सुविधा दी गई।

कश्मीर में पाबंदियों के शुरुआती महीने में सुरक्षाबलों द्वारा पत्रकारों के उत्पीड़न की कई खबरें आई लेकिन अधिकतर ने कहा कि इसकी चर्चा नहीं करने में ही भलाई है। एक ऑनलाइन वेबासाइट के लिए काम करने वाले रिपोर्टर ने कहा, ‘‘ जब मैं कोई खबर लिखता हूं तो लगता है कि मेरे गले पर चाकू रखा हो। अगर मैं सच लिखूं तो डर है कि आधी रात को सुरक्षा एजेंसियां मेरा दरवाजा खटखटाएंगी।’’ कश्मीर प्रेस क्लब जिससे एक दर्जन पत्रकार संगठन सबद्ध है शुरुआती महीनों में इंटरनेट पर पाबंदी और पत्रकारों के उत्पीड़न पर मौन रहा।

पिछले साल अक्टूबर में क्लब के कार्यकारी निकाय ने बैठक की और सुरक्षाबलों द्वारा पत्रकारों से कथित बदसलूकी और अन्य समस्याओं को दर्ज करने के लिए समिति गठित करने का फैसला किया। प्रेस क्लब समिति के सदस्य ने बताया, ‘‘ पाबंदियों के दौरान पत्रकारों को हुई समस्या को दर्ज कराने के लिए हमने 15 दिन का समय दिया लेकिन कोई सामने नहीं आया।’’

उन्होंने कहा कि ऐसा सरकार के भय की वजह से हुआ। सदस्य ने बताया कि मान्यता प्राप्त पत्रकारों के कार्यालय या कम से कम कश्मीर प्रेस क्लब में इंटरनेट बहाल करने के लिए कई आवेदन श्रीनगर जिला प्रशासन के समक्ष लंबित है।

उन्होंने कहा, ‘‘ हम अब भी सरकार के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।’’ हालांकि, घाटी के पत्रकारों ने स्वीकार किया कि पांच अगस्त के मुकाबले पिछले कुछ दिनों में उनके काम करने के माहौल में सुधार हुआ है लेकिन सामान्य हालात अब भी दूर है। इस संबंध में प्रचार एवं सूचना विभाग के प्रमुख डॉ.सईद शेरिश असगर को भेजे गए संदेश पर कोई जवाब नहीं मिला। 

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