No Confidence Motion: पीएम मोदी की कुर्सी है सेफ, लेकिन इन तीन प्रधानमंत्रियों को धोना पड़ा था सत्ता से हाथ

By भारती द्विवेदी | Published: July 20, 2018 01:52 PM2018-07-20T13:52:40+5:302018-07-20T13:52:40+5:30

बता दें कि इसी साल मार्च में टीडीपी ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसे लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने खारिज कर दिया था।

no confidence motion narendra modi government is safe but 3 indian pm has lost their post | No Confidence Motion: पीएम मोदी की कुर्सी है सेफ, लेकिन इन तीन प्रधानमंत्रियों को धोना पड़ा था सत्ता से हाथ

No Confidence Motion: पीएम मोदी की कुर्सी है सेफ, लेकिन इन तीन प्रधानमंत्रियों को धोना पड़ा था सत्ता से हाथ

नई दिल्ली, 20 जुलाई: संसद में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को बहस जारी है। मोदी सरकार के खिलाफ ये पहला अविश्वास प्रस्ताव है। अलग-अलग विपक्षी पार्टियों द्वारा आठ अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए थे लेकिन लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने तेलगू देशम् पार्टी (टीडीपी)  के प्रस्ताव को स्वीकार किया है। बता दें कि इसी साल मार्च में टीडीपी ने अविश्वास प्रस्ताव लाने पेश किया था, जिसे सुमित्रा महाजन ने खारिज कर दिया था। भारतीय संसद के इतिहास में साल 1963 में पहली बार उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। सरकार के खिलाफ उसे जेबी कृपलानी लेकर आए थे।

सदन में अब तक 26 बार अविश्वास प्रस्ताव और 12 बार विश्वास प्रस्ताव पेश किया जा चुका है। इनमें सबसे ज्यादा बार इंदिरा गांधी की सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया है। अविश्वास प्रस्ताव के कारण भारत में अब तक तीन सरकारों इस्तीफा देना पड़ा है। तो आइए आज आपको बताते हैं कि वो सरकार किसकी थी और क्यों उनके खिलाफ लाया गया था अविश्वास प्रस्ताव....

मोरारजी देसाई (1978):

भारत में पहली बार साल 1978 में अविश्वास प्रस्ताव के कारण मोरारजी देसाई की सरकार गिरी थी। इसकी वजह थी उन्हीं की पार्टी के नेता चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में कई सांसदों का टूटना। मोरारजी देसाई के खिलाफ वो अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस लेकर आई थी। फ्लोर टेस्ट में सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाई थी। सरकार गिरने के बाद कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह को बाहर से समर्थन दे उनकी सरकार बनवाया था।

विश्वनाथ प्रताप सिंह (1990):

देश में दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव के कारण साल 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिरी थी। वीपी सिंह की सरकार के खिलाफ भी वो प्रस्ताव कांग्रेस लेकर आई थी। वजह थी मंडल आयोग की सिफारिशों का लागू होना।जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)  द्वारा सरकार से समर्थन वापस ले लेना। सरकार गिरने के बाद कांग्रेस ने वीपी सिंह के ही पार्टी नेता चंद्रशेखर सिंह को समर्थन देकर उनकी सरकार बनवाई थी।

अटल बिहारी वाजपेयी (1998):

ये तीसरा मौका था जब अविश्वास प्रस्ताव के कारण देश में किसी पार्टी की सरकार गिरी थी। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तरफ से उस समय देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। उस समय कई सहयोगी दलों के साथ मिलकर बीजेपी ने सरकार बनाई थी। उस समय जयललिता ने बीजेपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। सरकार गिरने के बाद कांग्रेस फिर से अपना समर्थन दे सरकार बनाने की कोशिश की थी। लेकिन उस समय के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सोनिया गांधी प्रस्ताव ठुकरा दिया था और लोकसभा को भंग कर दिया था।

अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है?

विपक्षी पार्टियां सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाती हैं। जब भी विपक्षी पार्टियों को ये लगता है कि सरकार सदन में अपना बहुमत या विश्वास खो चुकी है फिर वो इस प्रस्ताव को लाते हैं। जिसे लोकसभा स्पीकर मंजूर या नामंजूर करते हैं। इसे केंद्र के मामले में लोकसभा और राज्य के मामले में विधानसभा में लाया जाता है। इसके स्वीकार होने के बाद सत्ता में रह रही पार्टी को सदन में बहुमत साबित करना होता है। अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए सदस्यों को कोई कारण बताने की जरूरत नहीं होती है।

अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए सदन के कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है। इसके बाद ही लोकसभा स्पीकर इसे स्वीकार करते/करती हैं। प्रस्ताव के स्वीकार होने के 10 दिन के भीतर ही इस पर चर्चा कराए जाने का प्रावधान है। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बाद इस पर वोटिंग कराई जाती है। अगर सरकार बहुमत साबित करने में विफल हो जाती है तो प्रधानमंत्री इस्तीफा दे देते हैं और सरकार गिर जाती है। इस प्रस्ताव को लोकसभा में लाया जाता है।अविश्वास प्रस्ताव कभी भी राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार अपने संसदों के लिए व्हिप जारी करती है।

व्हिप क्या होता है?

लोकसभा या विधानसभा में किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रस्ताव या वोटिंग के समय पार्टियां अपने सांसद और विधायकों के लिए व्हिप जारी करती है। व्हिप जारी होने के बाद सांसद या विधायकों को हर हाल में सदन में उपस्थिति होना पड़ता है। साथ ही वो चाहे या नहीं चाहे उन्हें सरकार के समर्थन में वोट करना होता है। अगर कोई सदस्य व्हिप का उल्लंघन करता है तो पार्टी से उसकी सदस्यता खत्म की जा सकती है।

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