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निशान साहिब क्या है? लाल किले पर लहराए गए इस झंडे का सिख धर्म से क्या है जुड़ाव, जानिए इतिहास

By विनीत कुमार | Updated: January 27, 2021 11:29 IST

किसानों की ट्रैक्टर रैली में 26 जनवरी को खूब हंगामा हुआ। इस दौरान लाल किले पर एक खास झंडा लहराए जाने की तस्वीर खूब चर्चा में रही। इसे लेकर कई तरह की बातें कही गई। ये ध्वज दरअसल निशान साहिब था।

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ठळक मुद्देलाल किले पर ट्रैक्टर रैली के दौरान कुछ लोगों के ग्रुप ने लहराया 'निशान साहिब'निशान साहिब सिखों का पवित्र धार्मिक ध्वज है जो हर गुरुद्वारे पर नजर आता हैआकार में त्रिकोणीय होता है ये ध्वज, केसरिया या नीले रंग में आता है नजर

कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले करीब दो महीने से आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में मंगलवार को ट्रैक्टर रैली निकाली। इस दौरान खूब हंगामा हुआ और कई जगहों पर हिंसा भी हुई। इस बीच लाल किले पर जहां हर साल देश के प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं, वहां हुड़दंग कर रहे कुछ लोगों ने धार्मिक ध्वज 'निशान साहिब' (Nishan Sahib) लहरा दिया।

लाल किले पर लहराए गए 'निशान साहिब' का इतिहास क्या है। इस ध्वज का महत्व क्या है और क्या है इस ध्वज से जुड़ी पूरी कहानी, आईए बताते हैं।

निशान साहिब (Nishan Sahib) क्या है?

निशान साहिब सिखों का धार्मिक ध्वज है जो हर गुरुद्वारा के ऊपर लगा हुआ नजर आता है। कई बार लोग इसे धार्मिक कार्यक्रमों में भी ले जाते हैं। यह आकार में त्रिकोणीय होता है और ध्वज को कपास या रेशम के कपड़े का बनाया जाता है।  

इस झंडे को ऊंचाई पर एक खंडा (दोधारी तलवार) की मदद से फहराने की परंपरा है। इस ध्वजडंड के ऊपर की ओर भी दोनों ओर से दोधारी तलवार होते हैं।

निशान साहिब या 'सिखों का झंडा' सिख रेजिमेंट के हर गुरुद्वारे पर भी आपको नजर आ जाएगा। रेजिमेंट का दल जब अपना गुरुद्वारा कहीं और ले जाते हैं तो इस दौरान भी निशान साहिब को पूरे सम्मान के साथ ले जाया जाता है। निशान साहिब खालसा पंथ का परंपरागत चिह्न भी माना जाता है।

निशान साहिब का इतिहास

ऐसा कहा जाता है कि गुरु अमर दास जी के समय निशान साहिब का रंग उजला होता था। ये शांति और सौहार्द को जताने के लिए था। बाद में गुरु हरगोबिंद सिंह जी के समय में इसका रंग केसरिया हो हो गया। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय खालसा की स्थापना के बाद इसमें नीला रंग भी आया जिसे हम आज भी निहंग ध्वज में देख सकते हैं।

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