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नेपाल के पूर्व पीएम का दावा- 2015 में संविधान अपनाने के खिलाफ एस. जयशंकर ने चेतावनी दी थी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 21, 2021 11:52 IST

अपनी पार्टी को सौंपे गए एक दस्तावेज में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा है कि भारत के प्रधानमंत्री के विशेष दूत बनकर पहुंचे तत्कालीन विदेश सचिव एस. जयशंकर ने संविधान को अपनाने के खिलाफ राजनीतिक दलों के नेताओं को धमकी दी थी और कहा था कि अगर इसे भारत की इच्छा के खिलाफ अपनाया गया तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा.

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ठळक मुद्दे नेपाल का लोकतांत्रिक संविधान 20 सितंबर, 2015 को अपनाया गया था.भारत ने अभी तक इसका स्वागत नहीं किया और केवल यह कहा है कि उसने संविधान को दर्ज किया है.

नई दिल्ली: अपनी पार्टी को सौंपे गए एक दस्तावेज में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूत बनकर आए एस. जयशंकर ने साल 2015 में संविधान को मंजूरी दिए जाने के खिलाफ चेतावनी दी थी.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, बीते 19 सितंबर को कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूएमएल की स्थायी समिति की बैठक के दौरान इन राजनीतिक दस्तावेजों को पेश किया था.

यह बैठक सोमवार को संविधान को अपनाए जाने की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में बुलाई गई थी.

ओली के दस्तावेजों में कहा गया है कि भारत के प्रधानमंत्री के विशेष दूत बनकर पहुंचे भारतीय राजनयिक ने संविधान को अपनाने के खिलाफ राजनीतिक दलों के नेताओं को धमकी दी थी और कहा था कि अगर इसे भारत की इच्छा के खिलाफ अपनाया गया तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा.

नेपाली में लिखे गए दस्तावेज में कहा गया है कि जयशंकर ने कहा कि इसके विपरित परिणाम होंगे.

बता दें कि, नेपाल का लोकतांत्रिक संविधान 20 सितंबर, 2015 को अपनाया गया था लेकिन भारत ने अभी तक इसका स्वागत नहीं किया और केवल यह कहा है कि उसने संविधान को दर्ज किया है.

संविधान को तत्कालीन विदेश सचिव जयशंकर की काठमांडू यात्रा के तत्काल बाद अपनाया गया और उस दौरान जयशंकर ने पुष्प कमल दहल प्रचंड सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात की थी.

दस्तावेज में कहा गया कि संविधान का मसौदा तैयार किए जाने के साथ ही अपनी चिंताओं का समाधान नहीं किए जाने पर असंतोष जताते हुए भारत सरकार उसे न अपनाने के लिए सरकार पर दबाव डालती रही है.

बता दें कि, मधेसियों ने संविधान का कड़ा विरोध किया था. उन्होंने महीनों तक चलने वाला आंदोलन किया था जिसके कारण भारत और नेपाल के बीच वाहनों की आवाजाही प्रभावित हुई थी और नेपाल की अर्थव्यवस्था को झटका लगा था.

संविधान को अपनाए जाने के बाद नेपाल में सत्ता संभालने वाली सरकार ने राजनीति और राज्य संस्थाओं में मधेसियों को अधिक प्रतिनिधित्व दिए जाने जैसी मांगों को पूरा करने के लिए संशोधन करने का वादा किया था. हालांकि, अभी तक ऐसे संशोधनों को पूरा नहीं किया गया है.

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