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नौसेना को जल्द ही दूसरी परमाणु पनडुब्बी मिलने वाली है, आईएनएस अरिघात से बढ़ेगी समंदर में ताकत, खतरनाक मिसाइलों से लैस

By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: August 11, 2024 10:10 IST

INS Arighat: विजाग में जहाज निर्माण केंद्र (एसबीसी) में निर्मित 6,000 टन की आईएनएस अरिघात व्यापक परीक्षणों के बाद औपचारिक कमीशन के लिए पूरी तरह से तैयार है।

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ठळक मुद्देनौसेना को जल्द ही दूसरी परमाणु पनडुब्बी मिलने वाली हैआईएनएस अरिघात परीक्षणों के बाद औपचारिक कमीशन के लिए पूरी तरह से तैयार ऐसी ही एक परमाणु सबमरीन आईएनएस अरिहंत पहले से ही सेवा में है

नई दिल्ली:भारतीय नौसेना को जल्द ही परमाणु मिसाइलों से लैस और पूरी तरह परमाणु ऊर्जा से संचालित अपनी दूसरी पनडुब्बी मिलने वाली है। इसके अलावा  पारंपरिक हथियारों से लैस दो परमाणु ऊर्जा चालित अटैक सबमरीन बनाने की मंजूरी भी जल्द ही मिलने की उम्मीद है। विजाग में जहाज निर्माण केंद्र (एसबीसी) में निर्मित 6,000 टन की आईएनएस अरिघात व्यापक परीक्षणों के बाद औपचारिक कमीशन के लिए पूरी तरह से तैयार है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार एसएसबीएन (परमाणु-चालित बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ परमाणु-चालित पनडुब्बियों के लिए नौसेना की भाषा) एक या दो महीने के भीतर सेवा में आ जाएगी। ऐसी ही एक परमाणु सबमरीन आईएनएस अरिहंत पहले से ही सेवा में है। आईएनएस अरिहंत 2018 से ही समंदर में भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ा रही है। 

इसके अलावा पारंपरिक (गैर-परमाणु) युद्ध के लिए टॉरपीडो, एंटी-शिप और लैंड-अटैक मिसाइलों से लैस दो परमाणु-संचालित पनडुब्बियों के देश में निर्माण को भी मंजूरी मिल सकती है। यह लगभग 40,000 करोड़ रुपये की परियोजना है। नौसेना इसे लंबे समय से सरकार के सामने रख रही थी। अब यह प्रस्ताव अंतर-मंत्रालयी परामर्श के बाद अंतिम मंजूरी के लिए पीएम की अगुवाई वाली सुरक्षा पर कैबिनेट समिति के समक्ष है।

विजाग में जहाज निर्माण केंद्र (एसबीसी) में पहले 'प्रोजेक्ट-77' के तहत छह   6,000 टन की 'हंटर-किलर' पनडुब्बियों (जिन्हें एसएसएन कहा जाता है) का निर्माण किया जाना था। लेकिन पहले इसे घटाकर तीन कर दिया गया और अब दो ही पनडुब्बियां बनेंगी। पहले दो एसएसएन के निर्माण में कम से कम एक दशक लगेगा। अगले चार को बाद के चरण में मंजूरी दी जाएगी।

हिंद महासागर में चीन का दखल लगातार बढ़ रहा है और चीन का नौसेनिक बेड़ा भारत से कहीं ज्यादा उन्नत है। भारत को चीन और पाकिस्तान से दोहरे खतरे से निपटने के लिए कम से कम 18 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों, चार एसएसबीएन और छह एसएसएन की आवश्यकता है। खतरा इसलिए भी बड़ा है क्योंकि चीन और पाकिस्तान अब हर मोर्चे पर साथ काम कर रहे हैं। चीन के पास पहले से ही 60 पनडुब्बियां हैं और वह तेजी से और अधिक पनडुब्बियां बना रहा है। चीन के बेड़े में छह जिन-क्लास एसएसबीएन शामिल हैं जो  10,000 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली जेएल-3 मिसाइलों से लैस हैं। चीन के पास 6 परमाणु पनडुब्बियां हैं।

इसकी तुलना में भारत के पास फिलहाल सिर्फ एक परमाणु सबमरीन अरिहंत है और एक अन्य शामिल होने वाली है। पारंपरिक बेड़े में छह पुरानी रूसी किलो-क्लास और चार जर्मन एचडीडब्ल्यू पनडुब्बियां शामिल हैं। इसके अलावा छह नई फ्रांसीसी मूल की स्कॉर्पीन भी हैं। लेकिन दोहरी चुनौती से निपटने के लिए इतना काफी नहीं है। इसिलिए भारत तेजी से अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ा रहा है।

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