पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि राष्ट्रवाद एक ऐसा ‘‘वैचारिक विष’’ है, जो वैयक्तिक अधिकारों का हनन करने से नहीं हिचकिचाता।
अंसारी ने कहा कि आजकल ‘राष्ट्रवाद’ और ‘देशभक्ति’ के बीच अक्सर भ्रम देखने को मिलता है, लेकिन उनके अर्थ और विषय वस्तु अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया भर के कई समाज दो महामारियों के शिकार बने हैं --धार्मिकता और उग्र राष्ट्रवाद--जो लोगों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
अंसारी ने सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के दर्शन ‘शांति, सौहार्द और मानवीय खुशियों का प्रसार करो’ पर एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा कि धार्मिक आस्थाओं के संस्थापकों के अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं का स्वरूप बिगाड़ दिया। सेंटर फॉर रूरल ऐंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुक्रवार को संपन्न होगा।
अंसारी ने कहा कि गुरु नानक देव ने सभी मनुष्यों के बीच भाईचारे की हिमायत की थी, दबे कुचले लोगों के हितों का समर्थन किया था और आज की शब्दावली में उपयोग में लाये जाने वाले ‘अंतर-धार्मिक संवाद’ की हिमायत की थी। गुरु नानक देव के 550 वें प्रकाश पर्व के अवसर पर आयोजित सम्मेलन में अंसारी ने कहा, ‘‘दशकों पहले, रवींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रवाद को एक बहुत बड़ी बुराई बताते हुए इसे सर्वाधिक असरदार निश्चेतक (एनेस्थेटिक्स) बताया था जिसका मनुष्य ने आविष्कार किया। (महान वैज्ञानिक) अलबर्ट आइंस्टाइन ने इसे एक बाल रोग कहा था।’’
अंसारी ने कहा कि वहीं दूसरी ओर ‘देशभक्ति’ सैन्य रूप से और सांस्कृतिक रूप से रक्षात्मक है। उन्होंने कहा कि यह उत्कृष्ट भावनाओं को प्रेरित करती है लेकिन जब यह सिर चढ़ कर बोलेगी तो ऐसी स्थिति में यह उन मूल्यों को कुचल डालेगी, जिसका देश रक्षा करना चाहता है।
पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रवाद और देशभक्ति के बीच भ्रम की स्थिति बढ़ती जा रही है और यदि इसे छूट मिलती रही तो यह विस्फोटक स्थितियां पैदा करेगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद अपने उग्र रूप में सत्ता की भूख से अभिन्न है। यह एक ऐसा ‘‘वैचारिक विष’’ है जो वैयक्तिक अधिकारियों का हनन करने में नहीं हिचकिचाता।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद का मतलब है कि खुद की पहचान एक राष्ट्र के रूप में करना, उसे अच्छाई और बुराई, सही या गलत से परे रखना, वैयक्तिक फैसलों को निलंबित करना और अपने हितों को आगे बढ़ाने वालों को छोड़ कर दूसरों के कर्तव्य को मान्यता नहीं देना।
उन्होंने कहा, ‘‘अक्सर ही इसे देशभक्ति मान लिया जाता है और दोनों को एक दूसरे की जगह इस्तेमाल में लाया जाता है। लेकिन दोनों ही अस्थिर एवं विस्फोटक विषय-वस्तु वाले शब्द हैं तथा इनका सावधानी के साथ इस्तेमाल किये जाने की जरूरत है क्योंकि उनके अर्थ और विषय-वस्तु अलग-अलग हैं।’’
अंसारी ने कहा कि मानवता की रक्षा तभी की जा सकती है जब इन दोनों महामारियों से बचा जाए और इनकी जगह सामूहिक अनुभव एवं नैतिक दिशानिर्देश के आलोक में मानव व्यवहार को तरजीह दी जाए।