नई दिल्ली: संसद के आगामी मानसून सत्र में प्रश्न काल भी नहीं होगा और न ही गैर सरकारी विधेयक लाए जाएंगे। कोरोना महामारी के इस दौर में पैदा हुई असाधारण परिस्थितियों का हवाला देते हुए शून्य काल को भी इस बार सीमित कर दिया गया है। प्रश्नकाल के निलंबन से, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और भाकपा सहित कई विपक्षी दलों के नेता भड़क उठे है। प्रश्नकाल स्थगित करने के फैसले की आलोचना करते हुए सरकार पर आरोप लगाया है कि वह कोविड-19 महामारी के नाम पर लोकतंत्र की हत्या और संसद को एक नोटिस बोर्ड बनाने की कोशिश कर रही है।
इस पूरे मामले पर अब केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने प्रतिक्रिया दी है। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा, कई लोग कह रहे हैं कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि प्रश्नकाल नहीं है, ये हालात क्या हमेशा होते रहे हैं? जो लोग प्रश्नकाल की मांग कर रहे हैं उन्होंने सामान्य हालात में सैकड़ों बार प्रश्नकाल को स्थगित करने की मांग की है।
बीजेपी ने कहा- प्रश्नकाल निलंबन पर फर्जी विमर्श खड़ा कर रहा है विपक्ष
बीजेपी ने कहा कि उसे ताज्जुब हो रहा है कि विपक्ष के जिन सदस्यों को अपनी पार्टी के अध्यक्ष से प्रश्न करने का ‘अधिकार नहीं है’ वे इस मुद्दे पर ‘फर्जी विमर्श’ खड़ा करते हैं। राज्यसभा सांसद और बीजेपी के मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने कहा कि प्रश्नकाल के निलंबन को लेकर विपक्ष द्वारा किया जा रहा हो-हल्ला कुछ नहीं बल्कि ‘पाखंड में पारंगतता’ है।
बलूनी ने कहा कि मार्च के बाद कई विधानसभाओं का कामकाज हुआ लेकिन आंधप्रदेश, केरल, पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र में विधानसभाओं में प्रश्नकाल नहीं रहा। उन्होंने कहा कि ये सभी गैर भाजपा शासित राज्य हैं और उनकी पार्टी ने कोई शोर शराब नहीं किया।
जानें विपक्षी नेताओं ने क्या-क्या कहा?
-प्रश्नकाल ना होने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने आरोप लगाया कि सरकार देश की संसद को ‘‘नोटिस बोर्ड’’ बनाने की कोशिश में है। शशि थरूर ने ट्वीट किया, मैंने चार महीने पहले कहा था कि मजबूत नेता महामारी को लोकतंत्र और विरोध को खत्म करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। संसद सत्र से जुड़ी अधिसूचना के माध्यम से घोषणा की गई है कि इस बार प्रश्नकाल नहीं होगा। हमें सुरक्षित रखने के नाम पर इसे उचित कैसे ठहराया जा सकता है?"
शशि थरूर ने कहा, सरकार से सवाल पूछना संसदीय लोकतंत्र का ऑक्सीजन होता है। ये सरकार संसद को एक नोटिस बोर्ड बनाने की कोशिश में और जो भी पारित कराना चाहती है उसके लिए अपने बहुमत को रबर स्टांप के तौर पर इस्तेमाल करती है। जवाबदेही को बढ़ावा देने वाली व्यवस्था को किनारे लगा दिया गया है।’
-लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने पिछले हफ्ते लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि संसद सत्र में सदस्यों के प्रश्न पूछने और मुद्दे उठाने के अधिकार में कटौती नहीं की जाए। कटौती करना जन प्रतिनिधियों के हित में नहीं होगा।
-तृणमूल कांग्रेस ने सरकार पर हमला करते हुए आरोप लगाया कि सरकार नहीं चाहती है कि विपक्ष के सदस्यों को अर्थव्यवस्था और महामारी पर सवाल करने का अवसर दिया जाए। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने ट्वीकिया, ‘‘ सांसदों को संसद में प्रश्न काल वाले सवाल 15 दिन पहले जमा करने होते हैं। सत्र की शुरुआत 14 सितंबर से हो रही है। इसलिये प्रश्न काल रद्द हो गया? विपक्षी सांसदों का सवाल पूछने का अधिकार चला गया। 1950 के बाद पहली बार जब संसद के कामकाज के घंटे पहले वाले ही हैं तो प्रश्न काल क्यों रद्द किया गया? लोकतंत्र की हत्या के लिए महामारी का बहाना।
- भाकपा सांसद बिनय विश्वम ने राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को पत्र लिखकर कहा है कि प्रश्नकाल और गैर-सरकारी कामकाज स्थगित किया जाना अनुचित है और उन्हें तत्काल बहाल किया जाना चाहिए। विश्वम ने एक बयान में कहा कि ऐसे समय, जब देश में कई घटनाक्रम हो रहे है, इन संसदीय प्रक्रियाओं को निलंबित करने से सरकार के ‘इरादे पर ‘गंभीर सवाल’ उठता है।