राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने बिहार की 40 संसदीय सीटों में 39 सीटों पर अप्रत्याशित सफलता हासिल की है। सिर्फ एक सीट कांग्रेस ने जीती है। यहां मुख्य मुकाबला एनडीए (बीजेपी, जेडीयू, लोजपा) और यूपीए (आरजेडी, कांग्रेस, आरएलएसपी, हम, वीआईपी) के बीच था। एनडीए ने 53 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत दर्ज की।
लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी की स्थिति दयनीय रही और उसे महज 15 प्रतिशत वोट हासिल हुए। अधिकांश सीटों पर एनडीए प्रत्याशियों के जीत का अंतर एक लाख से ज्यादा था। लोकनीति-सीएसडीएस के बिहार पोस्ट पोल सर्वे में बीजेपी तमाम जातीय समीकरण ध्वस्त करती हुई दिख रही है।
जातियों का वोटिंग पैटर्न
लोकनीति-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक बिहार में आरजेडी के कोर वोटर माने जाने वाले यादवों में एनडीए ने सेंध लगाई। करीब 21 फीसदी यादव मतदाताओं ने एनडीए प्रत्याशियों को वोट दिया। इसके अलावा नीतीश कुमार और राम विलास पासवान की बदौलत अनुसूचित जातियों ने भी एनडीए को एकमुश्त वोट दिया।
कोइरी-कुर्मी के 70 प्रतिशत मतदाता और अन्य ओबीसी जातियों के 76 प्रतिशत मतदाता एनडीए के साथ दिखाई दिए। इसका असर ये हुआ कि महागठबंधन को सिर्फ किशनगंज संसदीय सीट पर जीत मिली। यह सीट कांग्रेस के खाते में गई।
बता दें कि आरजेडी के गठन के बाद पहला ऐसा लोकसभा चुनाव है जिसमें इस पार्टी का कोई सदस्य लोकसभा चुनाव जीतने में सफल नहीं रहा। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में तीन सीटें जीतने वाली उपेंद्र कुशवाहा खुद दो जगह से चुनाव हार गए।
सरकार के काम-काज से संतुष्टि
केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की नीतीश सरकार से बिहार की जनता संतुष्ट दिखाई दी। इसका भी असर नतीजों में साफ दिखाई देता है। लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे के मुताबिक तीन-चौथाई वोटर एनडीए सरकार के काम-काज से संतुष्ट हैं। वहीं, 50 प्रतिशत मतदाताओं का मानना था कि पिछले पांच सालों में उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
सर्वे के मुताबिक 75 प्रतिशत मतदाता मोदी सरकार के काम-काज से संतुष्ट हैं वहीं 76 प्रतिशत नीतीश सरकार के काम-काज से संतुष्ट हैं। नीतीश कुमार के महागठबंधन को छोड़ने का मुद्दा पिछले दो सालों से आरजेडी ने लगातार उठाया। कई बार तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को पलटू चाचा भी कहा, लेकिन लोकनीति के सर्वे में अधिकतर वोटर नीतीश के कामकाज से खुश हैं।