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लोकसभा ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्था (शिक्षक के कॉडर में आरक्षण) विधेयक को मंजूरी दी, शिक्षा व्यवस्था में एक नए अध्याय की शुरुआत

By भाषा | Updated: July 1, 2019 18:56 IST

निचले सदन में मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने ‘केंद्रीय शैक्षणिक संस्था (शिक्षकों के काडर में आरक्षण) विधेयक-2019’ पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक से यह बात प्रमाणित हो गई कि नरेंद्र मोदी सरकार को कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति की चिंता है।

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ठळक मुद्देमंत्री के जवाब के बाद सदन ने अधीर रंजन चौधरी के सांविधिक संकल्प को निरस्त करते हुए विधेयक को मंजूरी दे दी।निशंक ने कहा कि पहले विश्वविद्यालय को इकाई मानकर ही शिक्षकों के पदों पर आरक्षण का प्रावधान था।

लोकसभा ने सोमवार को केंद्रीय शैक्षणिक संस्था (शिक्षक के कॉडर में आरक्षण) विधेयक 2019 को पारित कर दिया।

इसमें केंद्रीय शैक्षणिक संस्थाओं और शिक्षकों के काडर में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों की सीधी भर्ती द्वारा नियुक्तियों में पदों के आरक्षण और उससे संबंधित विषयों का उपबंध का प्रावधान है।

निचले सदन में मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने ‘केंद्रीय शैक्षणिक संस्था (शिक्षकों के काडर में आरक्षण) विधेयक-2019’ पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक से यह बात प्रमाणित हो गई कि नरेंद्र मोदी सरकार को कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति की चिंता है।

उन्होंने कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों के कथन का हवाला देते हुए कहा कि एक तरफ वे कह रहे हैं कि अध्यादेश क्यों लाया गया और दूसरी तरफ वे कहते हैं कि यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है। आज इनका चेहरा बेनकाब हो गया है।

मंत्री ने कहा कि अगर न्यायालय का आदेश का पालन किया जाता तो हमारह अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ों को सामाजिक न्याय नहीं मिल पाता। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से देश की शिक्षा व्यवस्था में एक नए अध्याय की शुरुआत होगी।

इस संबंध में कांग्रेस अधीर रंजन चौधरी, आरएसपी एन के प्रेम चंद्रन और तृणमूल कांग्रेस के प्रो. सौगत राय ने सांविधिक संकल्प प्रस्तुत किया था । इसमें कहा गया था कि यह सभा राष्ट्रपति द्वारा 7 मार्च 2019 को प्रख्यापित केंद्रीय शैक्षणिक संस्था (शिक्षकों के काडर में आरक्षण) अध्यादेश 2019 का निरनुमोदन करती है।

मंत्री के जवाब के बाद सदन ने अधीर रंजन चौधरी के सांविधिक संकल्प को निरस्त करते हुए विधेयक को मंजूरी दे दी। इसके लिए पहले सरकार इसके लिए अध्यादेश भी लाई थी। यह विधेयक उस अध्यादेश के स्थान पर यह विधेयक लाया गया।

इससे पहले विधेयक को चर्चा एवं पारित होने के लिये रखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि पहले विश्वविद्यालय को इकाई मानकर ही शिक्षकों के पदों पर आरक्षण का प्रावधान था लेकिन बाद में एक याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देश को अमान्य करार कर दिया।

उन्होंने कहा कि बाद में यूजीसी ने 21 विश्वविद्यालयों में व्यवस्था का अध्ययन कराया और पता लगाने का प्रयास किया कि विश्वविद्यालय के स्थान पर विषय को इकाई मानेंगे तो क्या अंतर होगा। पता चला कि विश्वविद्यालय को इकाई मानने पर शिक्षकों के पदों पर आरक्षित वर्ग के लोगों को विषय को इकाई मानने की तुलना में अधिक पद मिलते।

निशंक ने कहा कि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने जब सरकार और यूजीसी की याचिका को खारिज कर दिया तो इस परिस्थिति में सरकार अध्यादेश लेकर आई। जिसे यूजीसी ने मार्च महीने में तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग मार्गदर्शक सिद्धांत 2006 के खंड के उपबंध (ग) और खंड 8 के उपबंध (क) में यह प्रावधान है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षक पदों में आरक्षण रोस्टर बिन्दु का अवधारण करने के लिये काडर या यूनिट का आधार विश्वविद्यालय या महाविद्यालय होना चाहिए न कि विभाग का विषय होना चाहिए।

इसमें कहा गया है कि तथापि उक्त खंडों को 2016 की रिट याचिका संख्या 43260 तारीख सात अप्रैल 2017 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था और उक्त निर्णय को उच्चतम न्यायालय द्वारा भी मान्य ठहराया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने यह आधार लिया कि आरक्षण के प्रयोजन के लिये काडरों को नहीं मिलाया जा सकता । तथापि विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों में संकाय सदस्यों की सात हजार से अधिक रिक्तियों की भर्ती की प्रक्रिया पूर्णत: रुक गई थी।

इस प्रकार शिक्षण प्रक्रिया और शैक्षणिक मानकों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है । इसमें कहा गया कि रिक्त पदों को भरने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए और अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियों और सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो के हितों की सुरक्षा के लिये इस मामले में एक कानून की जरूरत थी।

ऐसे में ‘केंद्रीय शैक्षणिक संस्था (शिक्षकों के काडर में आरक्षण) विधेयक-2019’ लाया गया। इसमें केंद्र सरकार द्वारा स्थापित, अनुरक्षित या सहायता प्राप्त कतिपय केंद्रीय शैक्षणिक संस्थाओं में शिक्षकों के काडर में अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां और सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों से संबंधित व्यक्तियों की सीधी भर्ती द्वारा नियुक्तियों में पदों के आरक्षण का उपबंध करने के लिये और उक्त आरक्षण को संविधान (एक सौ तीनवां) संशोधन अधिनियम 2019 की दृष्टि से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों तक बढ़ाने का उपबंध किया गया है।

विधेयक के खंड 3 में यह उपबंध किया गया है कि पदों में आरक्षण का विस्तार और रीति केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित की जायेगी और पदों के आरक्षण के प्रयोजन के लिये किसी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान को एकल इकाई के रूप में समझा जायेगा।

विधेयक के खंड 3 के उपबंध अनुसूचि में निर्दिष्ट उत्कृष्ट संस्थाओं, अनुसंधान संस्थाओं, राष्ट्रीय और रणनीतिक महत्व की संस्थाओं या अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं में लागू नहीं होंगे। 

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