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अंगदान कानून को सांप्रदायिक सौहार्द के लिए पथप्रदर्शक बनने दें : केरल उच्च न्यायालय

By भाषा | Updated: September 1, 2021 12:20 IST

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केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि 1994 के मानव अंग एवं उत्तक प्रतिरोपण अधिनियम को सांप्रदायिक सौहार्द एवं धर्मनिरपेक्षता का पथप्रदर्शक बनने दें ताकि विभिन्न धर्मों एवं आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग अलग जातियों, नस्ल, धर्म या पूर्व में अपराधी रहे जरूरतमंद लोगों को अंगदान कर सकें। अदालत ने कहा, ‘‘मानव शरीर में अपराधी गुर्दा या अपराधी यकृत या अपराधी हृदय जैसा कोई अंग नहीं होता। किसी गैर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के अंग और ऐसे व्यक्ति जिसका कोई आपराधिक इतिहास रहा है, उसके अंग में कोई अंतर नहीं होता है। हम सभी की रगों में इंसानी खून दौड़ रहा है।’’ अदालत ने कहा कि अगर किसी के शव को दफना दिया जाता है तो उसका नाश हो जाएगा या अगर उसका दाह संस्कार किया जाता है तो वह राख बन जाएगा। हालांकि अगर उनके अंगदान कर दिए जाएं तो इससे कई लोगों को जीवनदान और खुशियां मिलेंगी।न्यामूर्ति पी वी कुन्हीकृष्णन ने मानव अंगों के प्रतिरोपण के लिए एर्णाकुलम जिला स्तरीय प्राधिकरण के फैसले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिसने व्यक्ति के आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर उसके अंगदान के आवेदन को खारिज कर दिया। समिति के फैसले को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि 1994 के अधिनियम या इसके तहत बनाए गए मानव अंगों और ऊतकों के प्रतिरोपण नियम, 2014 के प्रावधानों के अनुसार किसी दाता का पूर्व में आपराधिक पृष्ठभूमि का होना समिति द्वारा विचार किए जाने का कोई मानदंड नहीं है। न्यायमूर्ति ने कहा कि अगर समिति के इस रुख को अनुमति दी जाती है तो ‘‘मुझे अंदेशा है कि भविष्य में प्रतिवादी (समिति) अंगदान की अनुमति के लिए इस तरह के आवेदनों को इस आधार पर अस्वीकार कर देगा कि दाता एक हत्यारा, चोर, बलात्कारी, या मामूली आपराधिक अपराधों में शामिल है। मुझे आशा है कि वे दाता के हिंदू, ईसाई, मुस्लिम, सिख धर्म या निचली जाति का व्यक्ति होने के आधार पर आवेदनों को खारिज नहीं करेंगे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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