(अनन्या सेनगुप्ता)
नयी दिल्ली, 28 फरवरी केरल में सत्ता बरकरार रखने और पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बहाल करने के प्रति आशान्वित वामदलों का राजनीतिक भविष्य इन अहम राज्यों में गठबंधन साझेदारों पर निर्भर करता है।
दोनों ही राज्यों में कांग्रेस वाम दलों की संभावना को प्रभावित कर सकती है। केरल में कांगेस माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) की प्रतिद्वंद्वी है, जबकि पश्चिम बंगाल में उसकी सहयोगी है।
असम और तमिलनाडु समेत चार राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में आठ चरण में हो रहे चुनाव पर सभी की नजर हेागी। वहां वाम दलों ने एक बार फिर कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने का फैसला किया है, जबकि 2016 के विधानसभा चुनाव में यह प्रयोग विफल रहा था।
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, ‘‘ यह अहम चुनाव है। हमारा उद्देश्य भाजपा को (सत्ता से)दूर रखना है। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सरकार के दमन का सामना कर रहे लोगों के संघर्ष की ताकत के जरिए एक विकल्प उभरकर सामने आ रहा है और वह वामदलों एवं कांग्रेस के बीच का लोकतांत्रिक गठबंधन है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ बंगाल में भाजपा को हराने के लिए जरूरी है कि वर्तमान तृणमूल कांग्रेस सरकार को हराया जाए, जिसने राज्य में भाजपा की राह आसान की। तृणमूल कांग्रेस के विरूद्ध सत्ताविरोधी लहर वोट प्रतिशत के दृष्टिकोण से भाजपा के लिए सबसे बड़ा लाभ है।’’
पिछले विधानसभा चुनाव (2016) में गठबंधन को 38 फीसद वोट मिले थे, जो तृणमूल कांग्रेस से सात फीसद कम था।
हालांकि, भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य को इस गठबंधन में ज्यादा दम नजर नहीं आता है। उन्होंने कहा कि भाकपा माले तृणमूल समेत सभी गैर भाजपा दलों का समर्थन करेगी।
केरल में मुकाबला निश्चित तौर पर माकपा नीत एलडीएफ और कांग्रेस नीत यूडीएफ के बीच है। येचुरी को यकीन है कि वहां वाम गठबंधन सत्ता में लौटेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘ हम सत्ता में लौटेंगे और यह अप्रत्याशित होगा। सरकार की निरंतरता होगी। ऐसा एलडीएफ द्वारा किये गये कामकाज के चलते होगा और इसकी पुष्टि स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे से हो गयी है।
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