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कोलकाता डॉक्टर बलात्कार और हत्या मामला: पश्चिम बंगाल की शासन-व्यवस्था का एक काला अध्याय है ये केस, अनुत्तरित हैं कई सवाल

By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: August 21, 2024 18:17 IST

डॉक्टर के बलात्कार और हत्या से जुड़ी परेशान करने वाली घटनाएँ, पश्चिम बंगाल सरकार की संदिग्ध प्रतिक्रिया और उसके बाद हुई हिंसा ने महिलाओं की सुरक्षा और सत्ता में बैठे लोगों की ईमानदारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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ठळक मुद्देसुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार तथा पुलिस को कड़ी फटकार लगाई हैआरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक युवा महिला डॉक्टर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाई गई उसके साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई

Kolkata Doctor’s Rape and Murder: कोलकाता डॉक्टर का बलात्कार और हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने  पश्चिम बंगाल सरकार तथा पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों ने अस्पताल अधिकारियों और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार दोनों की कार्रवाइयों के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा की हैं। यहां सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां दी गई हैं।

'पश्चिम बंगाल सरकार ने मामले को निपटाने में लापरवाही बरती।'

'यह अविश्वसनीय है कि पश्चिम बंगाल ने भीड़ द्वारा आरजी कर अस्पताल में तोड़फोड़ की अनुमति कैसे दी।'

'अपराध स्थल की चौबीसों घंटे सुरक्षा करना पुलिस का कर्तव्य था।'

'अपराध का पता तड़के चला, मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने जाहिर तौर पर इसे आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की।'

'एफआईआर दर्ज करने में चिंताजनक देरी और पीड़िता के शोकाकुल माता-पिता के लिए उसके शव तक पहुंच प्रतिबंधित करना।'

कोलकाता स्थित आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक युवा महिला डॉक्टर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाई गई। मामला शुरू में दुखद आत्महत्या की तरह लग रहा था। हालाँकि जैसे-जैसे विवरण सामने आए यह स्पष्ट हो गया कि उसके साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष ने इसे आत्महत्या बताकर घटना को कमतर आंकने का प्रयास किया। इस कदम की कड़ी आलोचना की जा रही है।

ममता बनर्जी की संदिग्ध भूमिका

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री दोनों के रूप में ममता बनर्जी इस घटना के लिए महत्वपूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं। गंभीर मुद्दे को सीधे संबोधित करने के बजाय, ममता ने अपने ही प्रशासन की विफलताओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने की उनकी मांग विरोधाभासी लगती है। आलोचकों का तर्क है कि अवास्तविक समय सीमा के साथ फास्ट ट्रैक सीबीआई जांच की उनकी मांग न्याय पाने के वास्तविक प्रयास से कहीं अधिक एक राजनीतिक स्टंट है।

ममता द्वारा मामले को दबाने का आरोप

अस्पताल परिसर में देर रात हुए दंगों के साथ स्थिति और भी भयावह हो गई। माना जाता है कि सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी से जुड़े गुंडों ने अपने सहकर्मी के लिए न्याय की मांग कर रहे डॉक्टरों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को बाधित किया। दंगों के परिणामस्वरूप मामले से संबंधित महत्वपूर्ण सबूतों को कथित तौर पर नष्ट कर दिया गया, कई लोगों ने अनुमान लगाया कि यह जांच को बाधित करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास था। सीसीटीवी फुटेज में कथित तौर पर हिंसक कृत्य में टीएमसी सदस्यों के करीबी लोगों की संलिप्तता दिखाई देती है, जिससे मामले को दबाने के संदेह को और बल मिलता है।

बढ़ते संदेह के बीच बड़े सवाल

कई अनुत्तरित प्रश्न अभी भी बचे हुए हैं, जो पूरी जांच पर छाया डाल रहे हैं। पीड़िता का शव उसके माता-पिता को तुरंत क्यों नहीं दिखाया गया, और किसने देरी का आदेश दिया? अपराध स्थल पर ऐसा क्या हो रहा था जिसके कारण इतनी गोपनीयता की आवश्यकता थी? जिस विभाग में कथित तौर पर अपराध हुआ था, वहां अचानक रखरखाव का काम क्यों शुरू किया गया, जिससे अपराध स्थल के साथ संभावित छेड़छाड़ हो सकती है? 

गिरफ्तार संदिग्ध संजय रॉय को पीड़िता के माता-पिता सहित कई लोग एक बड़ी साजिश का मोहरा मानते हैं। इस बात की चर्चा है कि इसमें 'मेडिसिन माफिया' शामिल है, इस बात की संभावना है कि पूरी घटना राज्य के भीतर शक्तिशाली ताकतों द्वारा रची गई हो। कॉलेज के प्रिंसिपल के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में अनिच्छा, जिस पर भ्रष्टाचार और मामले को गलत तरीके से संभालने का आरोप है, केवल अटकलों को बढ़ाती है।

जवाबदेही की मांग

जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, पश्चिम बंगाल और पूरे देश के लोग इस पर करीब से नज़र रख रहे हैं। इस मामले ने पश्चिम बंगाल के कानून प्रवर्तन और शासन में गंभीर खामियों को उजागर किया है, और यह ममता बनर्जी के लिए एक लिटमस टेस्ट बन गया है, जिसमें कई लोगों का मानना ​​है कि वह पहले ही विफल हो चुकी हैं।

निष्कर्ष

डॉक्टर के बलात्कार और हत्या से जुड़ी परेशान करने वाली घटनाएँ, पश्चिम बंगाल सरकार की संदिग्ध प्रतिक्रिया और उसके बाद हुई हिंसा ने महिलाओं की सुरक्षा और सत्ता में बैठे लोगों की ईमानदारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। न्याय की माँग सिर्फ़ पीड़िता और उसके परिवार के लिए नहीं है। यह उन सभी लोगों के लिए एक समाधान की तलाश है, जो एक ऐसी सरकार द्वारा विफल किए गए हैं जो पीड़ितों के बजाय शक्तिशाली लोगों की रक्षा करती दिखती है।

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