Jammu-Kashmir: लंबे चले सूखे और गर्मी से कश्‍मीर के फल उत्‍पादक चिंतित

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: July 5, 2025 09:44 IST2025-07-05T09:44:42+5:302025-07-05T09:44:48+5:30

Jammu-Kashmir: जानकारी के लिए अकेले सेब उद्योग राज्य सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) में लगभग 9.5% का योगदान देता है। यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में सालाना 8.50 करोड़ से अधिक मानव-दिवस रोजगार पैदा करता है।

Kashmir fruit growers worried due to prolonged drought and heat | Jammu-Kashmir: लंबे चले सूखे और गर्मी से कश्‍मीर के फल उत्‍पादक चिंतित

Jammu-Kashmir: लंबे चले सूखे और गर्मी से कश्‍मीर के फल उत्‍पादक चिंतित

Jammu-Kashmir:  कश्‍मीर में लंबे समय से चल रही गर्मी और सूखे ने फल उत्पादकों को चिंतित कर दिया है क्योंकि मौजूदा मौसम की स्थिति इस साल के फलों के मौसम के लिए जोखिम पैदा कर रही है, जिसे कश्मीर में आजीविका और आर्थिक मजबूती के प्राथमिक स्रोतों में से एक माना जाता है। 

पिछले दो महीनों में, कश्मीर में शुष्क और गर्म मौसम की स्थिति देखी गई है, जिसने कश्‍मीर में सेब के बागों और अन्य फल देने वाले पेड़ों को बुरी तरह प्रभावित किया है। विशेषज्ञों और बागवानों को न केवल तत्काल फसल के नुकसान की आशंका है, बल्कि दीर्घकालिक परिणाम भी हो सकते हैं जो फलों की उपज और गुणवत्ता दोनों को समान रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के एक बागवान मोहम्मद यूसुफ भट कहते थे कि बारिश की कमी ने पेड़ों पर भारी दबाव डाला है। उनका कहना था कि पिछले दो महीनों से बारिश नहीं हुई है। पानी के बिना तेज धूप के कारण फल गिर रहे हैं। फलों के छिलके खराब हो रहे हैं और कुल मिलाकर गुणवत्ता खराब हो रही है। अगर यह जारी रहा, तो इससे हमारी आय में भारी कमी आएगी।

भट जैसे उत्पादक जो सिंचाई के लिए पूरी तरह से प्राकृतिक वर्षा जल पर निर्भर हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। वे कहते थे कि हमारे पास सिंचाई की सुविधा नहीं है। हमारे बाग बारिश पर निर्भर हैं। यह सूखा मौसम हमारे पूरे मौसम को बर्बाद कर सकता है।

हालांकि बागवानी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि लंबे समय तक सूखे के व्यापक प्रभाव हो सकते हैं। बागवानी वैज्ञानिक जाविद अहमद ने बताया कि बढ़ते तापमान से सेब के पेड़ों पर दबाव पड़ रहा है, खासकर उन इलाकों में जहां सिंचाई के बुनियादी ढांचे का अभाव है। 

अहमद के बकौल, किसान पहले से ही छोटे आकार के फल, धूप से झुलसे सेब और फलों के गिरने की रिपोर्ट कर रहे हैं। नमी की कमी से न केवल उपज कम होती है, बल्कि अगले सीजन में पेड़ के फल देने की क्षमता भी प्रभावित होती है।

उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यही स्थिति बनी रही, तो इससे पेड़ की संरचना को भी दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है। वे कहते थे कि पेड़ का शारीरिक तनाव कई गुना बढ़ जाता है, और इससे उबरना मुश्किल हो जाता है। इसका मतलब हजारों उत्पादकों के लिए दीर्घकालिक आय का नुकसान हो सकता है।

नुकसान सिर्फ कृषि से संबंधित नहीं है - यह आर्थिक है। कश्मीर, जो सालाना 20 लाख मीट्रिक टन से अधिक सेब का उत्पादन करता है, कभी-कभी यह आंकड़ा 25 लाख मीट्रिक टन को छू जाता है। इस उद्योग को झटका लगने से पूरी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। 

ऐसे में कश्मीर घाटी फल उत्पादक सह डीलर संघ के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर कहते थे कि खराब गुणवत्ता और कम आकार का मतलब है कि फलों को राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अच्छी कीमत नहीं मिलेगी। उन्होंने बताया कि प्रतिस्पर्धा कड़ी है। हम पहले से ही भारतीय बाजारों में आयातित सेबों से जूझ रहे हैं। अगर हमारे फलों की चमक और आकार कम हो जाता है, तो हम बच नहीं पाएंगे। यह सूखा एक बड़ी चिंता का विषय है।

बागवानी विभाग के एक अधिकारी कहते थे कि यह क्षेत्र खतरे में है और कार्रवाई की जरूरत है। उनका कहना था कि अगर सूखा जारी रहा, तो फल छोटे आकार के रह जाएंगे। कुछ स्थानों पर पहले से ही फलों के गिरने की सूचना है और गुणवत्ता खराब हो रही है।

उन्होंने बकौल, कश्मीर के लगभग 60 प्रतिशत बाग बारिश पर निर्भर हैं, जिससे अधिकांश किसान मौसम के बदलते मिजाज के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाते हैं। उन्होंने चिंता जताई कि यह एक स्पष्ट संकेत है कि इस क्षेत्र को विशेष रूप से उच्च घनत्व वाले बागान क्षेत्रों में ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसे उचित सिंचाई बुनियादी ढांचे की तत्काल आवश्यकता है।

जबकि अधिकारियों ने बताया कि कश्मीर के 60% बाग बारिश पर निर्भर हैं, जिससे वे सूखे के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाते हैं। वे कहते थे कि 2017 के जम्मू-कश्मीर आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, कश्मीर में 3.5 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सेब की खेती होती है, जबकि कश्मीर की 50% आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बागवानी पर निर्भर है।

जानकारी के लिए अकेले सेब उद्योग राज्य सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) में लगभग 9.5% का योगदान देता है। यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में सालाना 8.50 करोड़ से अधिक मानव-दिवस रोजगार पैदा करता है। विशेषज्ञ और उत्पादक समान रूप से प्रशासन से आग्रह कर रहे हैं कि वह वर्षा आधारित बागों के लिए व्यापक सिंचाई योजनाएँ विकसित करके, जलवायु-लचीले कृषि पद्धतियों को सुविधाजनक बनाकर, मौसम संबंधी नुकसान के मामले में बीमा कवरेज और मुआवज़ा देकर और मौसम निगरानी प्रणालियों को मजबूत करके और समय पर सलाह जारी करके जल्दी से जल्दी काम करे।

Web Title: Kashmir fruit growers worried due to prolonged drought and heat

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