कर्नाटक में भाजपा के सरकार बनाने का मामला कानूनी पेचीदगी में फंसता नजर आ रहा है. पार्टी सरकार बनाने को आतुर है लेकिन कानूनी परिस्थितियों को देखते हुए किसी भी तरह की फजीहत से बचने के लिए इंतजार के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं बचा है. सूत्रों के अनुसार पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली आए राज्य के नेताओं से जल्दबाजी नहीं करने को कहा है.
उन्होंने कहा कि बागी विधायकों पर विधानसभा अध्यक्ष के फैसले का इंतजार करना चाहिए. मुलाकात करने वाले नेताओं में जगदीश शेट्टार, बस्वराज बोम्मई, मधुस्वामी, अरविंद लिंबावली और येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र भी शामिल थे. इन नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व से मिलकर राज्य के सियासी घटनाक्रम और मौजूदा विकल्पों पर चर्चा की.
दरअसल कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन सरकार के विश्वास मत में नाकाम रहने के बाद भाजपा तुरंत सरकार बनाने के मूड में थी. कहा जा रहा है कि बी. एस. येदियुरप्पा ने शपथग्रहण के लिए महूर्त भी तय करा लिया. लेकिन अंत समय में पार्टी ने रूकने का फैसला किया. जानकारों के अनुसार इस बदलाव के पीछे दो प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं.
पहला बागी विधायकों की अयोग्यता के मामले में विधानसभा अध्यक्ष का फैसला अभी लंबित है. दूसरा कर्नाटक के सियासी संकट को लेकर व्हिप के संवैधानिक अधिकार के हनन के मामले में कांग्रेस और जद (एस) सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं. ऐसे में भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व दोनों फैसले आने से पहले आगे नहीं बढ़ना चाहता.
दरअसल पार्टी के आला नेताओं के लिए सरकार बनाना बहुत आसान है लेकिन अगर बागी विधायकों पर फैसला भाजपा के पक्ष में नहीं आता तो उसके सामने संकट की स्थिति पैदा हो जाएगी. पिछले साल विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के पास 105 विधायक थे.
सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से राज्यपाल ने भाजपा को पहले आमंत्रित करके येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. लेकिन वह सदन में अपना बहुमत नहीं साबित पर पाए और उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. अब भाजपा जल्दबाजी में सरकार बनाकर वह गलती दोबारा नहीं करना चाहती.