बेंगलुरु: पति-पत्नी के बीच कटु संबंध की व्याख्या करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महिला द्वारा दायर तलाक को मंजूरी देते हुए कहा कि महिला के पति ने उसके साथ मानसिक छलावा किया है, वो अपनी पत्नी को केवल धन देने वाली 'कैश काउ' समझता है और उसका व्यवहार अपनी पत्नी के प्रति केवल "भौतिकवादी सुख" को अर्जित करने वाला है, जो उसकी मानसिक क्रूरता को दर्शाता है।
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा, "पेश किये गये सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है कि पीड़िता के प्रति उसके पति का कोई भावनात्मक संबंध नहीं है और पति के असंवेदनशील रवैये के कारण पीड़िता को जो मानसिक पीड़ा और भावनात्मक आघात पहुंचा है वो पति के मानसिक क्रूरता को दर्शाने के लिए काफी है।”
हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस जेएम खाजी की बेंच ने पीड़िता से हमदर्दी जताते हुए उसकी तलाक अर्जी को मंजूरी प्रदान कर दी खबरों के मुताबिक साल 2008 में पीड़िता ने पति के परिवार खस्ता आर्थिक हालात को देखते हुए पति के साथ संयुक्त अरब अमीरात में शिफ्ट हो गई। वहीं पर पीड़िता ने एक बैंक में नौकरी करके अपने पति के परिवार का सारा कर्ज चुकाया और बेरोजगार पति को कमाने के लिए एक सैलून भी खोलकर दिया। लेकिन पति वो सब कुछ छोड़कर साल 2013 में वापस इंडिया आ गया।
पति के धोखे से हैरान पीड़िता ने आखिरकार साल 2017 में फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दायर कर दी। लेकिन फैमिली कोर्ट ने पीड़िता की तलाक की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि उसके पति ने उसके साथ कोई क्रूरता नहीं की है। इस फैसले से आहत पीड़िता ने फैमिली कोर्ट के फैसले को कर्नाटक हाईकोर्ट में चैलेंज किया।
जहां पीड़िता के वकील ने बेंच के सामने कहा, "पीड़िता ने बहुत प्रयास किया लेकिन उसका पति आर्थिक रूप से सक्षम बनने में विफल रहा और पति परिवार की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने की बजाय पत्नी पर निर्भर बना रहा।"
कोर्ट में इस बात को साबित करने के लिए पीड़िता के वकील ने इस संबंध में विभिन्न दस्तावेज और बैंक खाते का विवरण जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस जेएम खाजी के सामने रखा। महिला ने अदालत में साबित किया कि उसने अपनी कमाई से पति और ससुराल पक्ष को कुल 60 लाख रुपये ट्रांसफर किये थे।
जिसके बाद जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस जेएम खासी ने कहा, फैमिली कोर्ट ने पीड़िता की कार्यशैली की सराहना नहीं करके घोर गलती की है। इसके लिए पीड़िता की भरपूर सराहना की जानी चाहिए कि उसने किस तरह से पति और ससुराल पक्ष की मदद की और कोर्ट में पति के खिलाफ ऐसे साक्ष्य रखे, जो अकाट्य थे।
लिहाजा यह कोर्ट तलाक अधिनियम की धारा 10 (1) (x) के तहत पीड़िता की तलाक को मंजूर करते हुए उसे पति से अलग होने की आज्ञा देती है और पीड़िता के खिलाफ फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द करती है।