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मुस्लिम पुरुष द्वारा दूसरी शादी करना भले ही कानूनी हो, कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा-पहली पत्नी के प्रति भारी क्रूरता का कारण

By भाषा | Updated: September 12, 2020 21:43 IST

उच्च न्यायालय की कलबुर्गी खंडपीठ में न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और न्यायमूर्ति पी कृष्ण भट की पीठ ने हाल में निचली अदालत के फैसले को निरस्त करने की मांग वाली अपील को खारिज कर दिया था जिसमें याचिकाकर्ता युसूफ पाटिल की पहली पत्नी रमजान बी द्वारा शादी को खत्म की याचिका को न्यायोचित करार दिया गया था।

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ठळक मुद्देमुस्लिमों में दूसरा विवाह कानूनी है, लेकिन अकसर यह पहली पत्नी के खिलाफ भारी क्रूरता का कारण बनता है।पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘अगर बताई गई परिस्थितियों को न्यायोचित माना जाए तो पति दो और शादियां कर सकता है और शरीया का सहारा ले सकता है।’’ पाटिल के इस तर्क को खारिज कर दिया है कि शरीया कानून बहुविवाह के साथ पहले विवाह को पुन: स्थापित करने की अनुमति देता है।

बेंगलुरुः कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम पुरुष द्वारा दूसरी शादी करना भले ही कानूनी हो लेकिन यह पहली पत्नी के प्रति भारी क्रूरता का कारण बनता है।

उच्च न्यायालय की कलबुर्गी खंडपीठ में न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और न्यायमूर्ति पी कृष्ण भट की पीठ ने हाल में निचली अदालत के फैसले को निरस्त करने की मांग वाली अपील को खारिज कर दिया था जिसमें याचिकाकर्ता युसूफ पाटिल की पहली पत्नी रमजान बी द्वारा शादी को खत्म की याचिका को न्यायोचित करार दिया गया था।

पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘ हालांकि, मुस्लिमों में दूसरा विवाह कानूनी है, लेकिन अकसर यह पहली पत्नी के खिलाफ भारी क्रूरता का कारण बनता है और इसलिए उसके द्वारा तलाक का दावा न्यायोचित है।’’ उल्लेखनीय है कि उत्तरी कर्नाटक के विजयपुरा जिला के मुख्यालय के रहने वाले पाटिल ने जुलाई 2014 में शरिया कानून के तहत बेंगलुरु में रमजान बी से निकाह किया था।

इस शादी के बाद पाटिल ने दूसरी शादी कर ली। इसके बाद रमजान बी ने निचली अदालत में याचिका दायर कर क्रूरता और परित्याग करने के आधार पर शादी को खत्म करने का अनुरोध किया। रमजान बी ने याचिकाकर्ता और उसके माता-पिता पर उससे एवं अपने माता-पिता से दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया।

इसके खिलाफ पाटिल ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा कि वह पहली पत्नी से प्यार करता है जो इस मामले में प्रतिवादी है। पाटिल ने अदालत से कहा कि उसने माता-पिता के भारी दबाव की वजह से दूसरी शादी की जो शाक्तिशाली और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं।

उसने दूसरे विवाह को न्यायोचित ठहराते हुए कहा कि शरीया कानून में मुस्लिमों को बहुविवाह की अनुमति है और इसलिए यह कृत्य क्रूरता के बराबर नहीं है और न ही सयुंग्म (विवाह) के अधिकारों का विरोध करने का आधार है।

पीठ ने पाटिल के इस तर्क को खारिज कर दिया है कि शरीया कानून बहुविवाह के साथ पहले विवाह को पुन: स्थापित करने की अनुमति देता है। पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘अगर बताई गई परिस्थितियों को न्यायोचित माना जाए तो पति दो और शादियां कर सकता है और शरीया का सहारा ले सकता है।’’ 

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