बेंगलुरु: जमीयत उलेमा-ए-हिंद कर्नाटक की भाजपा सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में मुसलमानों को मिलने वाले 4 फीसदी आरक्षण को रद्द किये जाने के खिलाफ अदालत में जाने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई सरकार द्वारा शुक्रवार को मुस्लिमों के ओबीसी के तहत मिलने वाले 4 फीसदी आरक्षण को रद्द करते हुए उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी के तहत मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण में समायोजित करने का ऐलान किया था।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि सरकार का यह फैसला मुसलमानों की तरक्की में बाधक है, इसलिए वो बोम्मई सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती देगा। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने एक बड़ा फैसले लेते हुए मुसलमानों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत मिल रहे 4 फीसदी आरक्षण को रद्द करते हुए लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों को मिल रहे आरक्षण में 2-2 फीसदी का इजाफा कर दिया था। जिसके बाद लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों का कोटा ओबीसी आरक्षण में क्रमशः 7 और 6 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
उत्तर प्रदेश के देवबंद में पत्रकारों से बात करते हुए मौलाना मदनी ने कहा, "ऐसे फैसले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस वादे के खिलाफ है, जिसमें वो पसमांदा मुस्लिम उत्थान की बात करते हैं। एक तरफ तो मोजी जी, सबके साथ-सबके विकास का दावा करते हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी की कर्नाटक सरकार मुस्लिमों का हाशिए पर फेंक रही है।"
मदनी ने तीखे स्वर में कहा कि सरकार के आंकड़ों बताते हैं कि भारत का मुसलमान आर्थिक और शैक्षिक रूप से विकास के सबसे निचले पायदान पर हैं। इसलिए सरकार को उनकी तरक्की के लिए काम करना चाहिए न कि उन्हें पीछे धकेलने के लिए काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा, "कर्नाटक सरकार का यह फैसला पूरी तरह से चुनावी सिसायत और अवसरवाद के लिए लिया गया है और इस कदम से कर्नाटक सरकार केवल समुदायों के बीच कलह पैदा करना चाहती है। हम इसके खिलाफ हैं और अपनी बात अदालत में रखेंगे।"