कन्नन गोपीनाथ ने कहा- पद छोड़ने का निर्णय एमएचए के नोटिस के आधार पर नहीं था, बल्कि कश्मीर के मौलिक अधिकारों पर था
By भाषा | Published: August 26, 2019 08:03 PM2019-08-26T20:03:55+5:302019-08-26T20:03:55+5:30
भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी कन्नन गोपीनाथ ने जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंध और मौलिक अधिकारों के हनन के विरोध में 21 अगस्त को इस्तीफा दे दिया था। 2012 बैच के अधिकारी गोपीनाथन (32) उस वक्त सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान अपनी पहचान छिपाकर स्वयंसेवकों के साथ राहत और बचाव कार्यों में हिस्सा लिया था।
पूर्व आईएएस अफसर कन्नन गोपीनाथ ने कहा कि घाटी के लोगों को अनुच्छेद 370 को लेकर मनाया जाना चाहिए, लेकिन उन्हें विचार प्रकट करने का मौका न दिए जाने से ऐसा नहीं हो सका। कश्मीर में "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन" के खिलाफ अपने विचार प्रकट करने के लिये कन्नन ने नौकरी से इस्तीफे का दावा किया है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी कन्नन गोपीनाथ ने जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंध और मौलिक अधिकारों के हनन के विरोध में 21 अगस्त को इस्तीफा दे दिया था। 2012 बैच के अधिकारी गोपीनाथन (32) उस वक्त सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान अपनी पहचान छिपाकर स्वयंसेवकों के साथ राहत और बचाव कार्यों में हिस्सा लिया था। संघ शासित प्रदेशों दमन और दीव तथा दादरा एवं नागर हवेली के ऊर्जा विभाग में सचिव रहे गोपीनाथन ने पिछले बुधवार को इस्तीफा दे दिया था।
केरल में 2018 में आई बाढ़ के दौरान उनके काम की काफी सराहना हुई थी। कन्नन ने कहा कि पद छोड़ने का निर्णय एमएचए के नोटिस के आधार पर नहीं था, बल्कि कश्मीर के मौलिक अधिकारों के लिए उनका निर्णय था। गोपीनाथन की फैमिली ने उनके फैसले का समर्थन किया है।
आईएएस अधिकारी को गृह मंत्रालय (एमएचए) के अंडर सेक्रटरी राकेश कुमार सिंह की ओर से जुलाई में 'एक्ट ऑफ ऑमिशन एंड कमीशन' को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। दो पेज के इस नोटिस में बड़े पैमाने पर बाढ़ के मद्देनजर अपने गृह राज्य केरल का दौरा करना भी शामिल है। इसके अलावा नोटिस में विभिन्न श्रेणियों के तहत प्रधानमंत्री पुरस्कार के लिए नामांकित व्यक्तियों की तैयारी के संबंध में था, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि कन्नन दिए गए निर्देशों का पालन करने में विफल रहे थे।
आईएएस अधिकारी को अगले दस दिनों में सलाहकार को जवाब देने के लिए कहा गया था, जबकि दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि उक्त मामले पर निर्णय अगले 15 दिनों में UT के सलाहकार द्वारा लिया जाएगा। इस संबंध में कन्नन गोपीनाथन ने 31 जुलाई को विस्तार से जवाब दे दिया था। वहीं, केंद्र ने आरोप लगाया कि अधिकारी रिपोर्ट देने में विफल रहे।
उनके त्यागपत्र में कश्मीर मुद्दे का कोई जिक्र नहीं था। गोपीनाथन ने कहा, "मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहता हूं लेकिन सेवा में रहते मेरे लिये ऐसा करना नामुमकिन था। इसमें कई नियम-कायदे होते हैं।"
केरल के कोट्टायम जिले के निवासी गोपीनाथन ने कहा कि अनुच्छेद 370 का निरसन "चुनी हुई सरकार का अधिकार है" लेकिन लोकतंत्र में लोगों को ऐसे फैसलों पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार है। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, "कश्मीर पर फैसला लिये जाने के करीब 20 दिन बाद भी वहां लोगों को इस पर प्रतिक्रिया देने की अनुमति नहीं है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह स्वीकार्य नहीं है।
निजी तौर पर, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सका साथ ही ऐसे समय में अपनी सेवाएं भी जारी नहीं रख सकता था।" उन्होंने कहा, "यह ऐसी चीज नहीं है जिसे मैं अपने देश में स्वीकार कर सकूं। मुझे पता है कि मेरी स्वीकृति से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मैं यह जाहिर करना चाहता था कि यह सही नहीं है।
हमें उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति देनी चाहिए। अगर उन्हें यह पसंद नहीं है तो हम उन्हें समझाने की कोशिश कर सकते हैं। हम उन्हें बंद करके और और विचार व्यक्त करने से रोककर नहीं मना सकते।"