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झारखंड में भाषा का विवाद: भोजपुरी और मगही पर सियासी घमासान, सहयोगी RJD ने हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा

By एस पी सिन्हा | Updated: February 19, 2022 18:17 IST

झारखंड में भाषा पर विवाद और बढ़ गया है. झारखंड में जिलास्तरीय पदों पर नियुक्ति के लिए जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं की जो नई सूची जारी की गई है, उसमें बोकारो और धनबाद जिलों में भोजपुरी और मगही शामिल नहीं है. इसे लेकर विवाद तेज हो गया है.

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ठळक मुद्देजिलास्तरीय पदों पर नियुक्ति के लिए जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं की बोकारो और धनबाद जिलों में सूची से भोजपुरी और मगही को हटाने पर विवादमैट्रिक और इंटर स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी इन दोनों भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा की लिस्ट से बाहर किया गया है.

रांची: झारखंड में क्षेत्रीयता को लेकर वोट बैंक की सियासत ने पूरी रफ्तार पकड़ ली है. राज्य में स्‍थानीय भाषा को लेकर जारी सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. राज्य सरकार ने जिलास्तरीय पदों पर नियुक्ति के लिए जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं की जो नई सूची जारी की है, उसमें बोकारो और धनबाद जिलों से भोजपुरी और मगही को हटा दिया गया है. 

राज्य सरकार ने राज्य कर्मचारी आयोग की तरफ से ली जाने वाली मैट्रिक और इंटर स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी इन दोनों भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा की लिस्ट से बाहर कर दिया है. इस मामले को लेकर लगातार झारखंड में विवाद देखने को मिल रहा है. शुक्रवार की देर रात कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग ने इस फैसले से जुड़ी अधिसूचना जारी कर दी. 

22 जिलों में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की सूची बदलाव नहीं

राज्य के बाकी 22 जिलों में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इस बीच हेमंत सोरेन सरकार के लिए कई तरह की मुश्‍क‍िलें खड़ी होती नजर आ रही है. भोजपुरी और मगही पर सरकार के इस निर्णय से राजद नाराज चल रहा है. लालू यादव ने पिछले दिनों कहा था कि जो भोजपुरी और मगही का विरोध करेगा, हम उसका विरोध करेंगे. 

जानकारों के अनुसार कुडमी और आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के चक्‍कर में हेमंत सोरेन सरकार ने धनबाद और बोकारो जिले की स्‍थानीय भाषाई सूची से भोजपुरी और मगही को बाहर कर दिया. जिला स्तरीय नियुक्तियों में क्षेत्रीय भाषा के तौर पर होने वाली परीक्षा में धनबाद और बोकारो में भोजपुरी और मगही को मान्यता दी गई थी. उस वक्त झामुमो और आजसू पार्टी ने इसका पुरजोर विरोध किया था. इसके बाद कांग्रेस ने भी इस मसले पर हेमंत सोरेन सरकार को फैसला बदलने को कहा था. 

बताया जाता है कि आदिवासी और कुडमी मतदाता कई सीटों पर इनके प्रत्याशियों की नैया पार लगाने की स्थिती में हैं. ऐसे में झारखंड सरकार के इस फैसले को लेकर कांग्रेस की मुख्य भूमिका सामने आई है. अधिसूचना जारी होने से पहले शुक्रवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिल कर धनबाद-बोकारो में क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी और मगही को हटाने का आग्रह किया था. 

इन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषा को लेकर पूर्व स्थिति बहाल की जाये. पहले से धनबाद और बोकारो की क्षेत्रीय भाषा की सूची में भोजपुरी और मगही शामिल नहीं थी. इसलिए इस बार कोई नई व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता नहीं है. जिन जिलों के गांवों में ये भाषाएं नहीं बोली जाती, वहां इन्हें सूची में रखने की जरूरत नहीं है. इसके बाद हेमंत सोरेन सरकार ने उनकी मांगों को मंजूरी प्रदान कर दी.

राज्य सरकार के फैसले का हो रहा विरोध

झारखंड में वर्षों से रहने वाले भोजपुरी और मगही भाषी लोगों ने सरकार के फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया है. इतना ही नहीं कई संगठन भी सरकार के इस निर्णय का विरोध कर ही रहे हैं. जगह-जगह हेमंत सोरेन के पुतला दहन का सिलसिला शुरू हो गया है. 

भोजपुरी और मगही भाषी मतदाताओं का वोट पाने वाले राजनीतिक दल भी गोलबंद होकर सरकार को घेरने में जुट गए हैं. मुख्‍य विपक्षी पार्टी भाजपा के अलावा हेमंत सोरेन की सरकार में भागीदार राजद ने भी अपने ही सरकार के फैसले की आलोचना की है. 

राजधानी रांची में रविवार को राजद की बैठक बुलाई गई है. इसमें भोजपुरी और मगही का यह मुद्दा उठने की पुरजोर संभावना है. राजद का रुख लालू यादव के बयान के विपरित नहीं होगा. संगठन लालू यादव के बयान के अनुरूप ही हेमंत सोरेन सरकार को घेर सकता है.

टॅग्स :झारखंडहेमंत सोरेनआरजेडीकांग्रेसRanchiलालू प्रसाद यादव
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