चीन को मिलेगा उसी की भाषा में जवाब, सरकार ने तिब्बत में 30 स्थानों के नाम बदलने को मंजूरी दी, सेना द्वारा जारी किया जाएगा
By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: June 11, 2024 16:00 IST2024-06-11T15:59:40+5:302024-06-11T16:00:45+5:30
अप्रैल की शुरुआत में अरुणाचल प्रदेश में 30 स्थानों का नाम चीन ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए बदल दिए थे। इस फैसले पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी। अब भारत का लक्ष्य कब्जे वाले तिब्बत में स्थानों को अपना नाम देकर अपने क्षेत्रीय दावों पर जोर देना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नवनिर्वाचित एनडीए सरकार ने चीन को उसी की भाषा में जवाब देने का फैसला किया है। सरकार ने तिब्बत में 30 स्थानों के नाम बदलने को मंजूरी दे दी है। यह कदम भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में कई जगहों के नाम चीन द्वारा बदले जाने की प्रतिक्रिया में उठाया गया है। भारत सरकार द्वारा अनुमोदित नाम ऐतिहासिक अनुसंधान और तिब्बत क्षेत्र से संबद्धता पर आधारित हैं। इन्हें भारतीय सेना द्वारा जारी किया जाएगा। ये नाम वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ उनके मानचित्रों पर अपडेट किए जाएंगे।
बता दें कि गलवान और पैंगोंग त्सो क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध पैदा होने के बाद से व्यापार को छोड़कर दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में गिरावट आई है। गतिरोध को सुलझाने के लिए दोनों पक्ष अब तक 21 दौर की सैन्य वार्ता कर चुके हैं। हालांकि अभी तक कोई ठोस हल नहीं निकला है। अप्रैल की शुरुआत में अरुणाचल प्रदेश में 30 स्थानों का नाम चीन ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए बदल दिए थे। इस फैसले पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी। अब भारत का लक्ष्य कब्जे वाले तिब्बत में स्थानों को अपना नाम देकर अपने क्षेत्रीय दावों पर जोर देना है।
सूची में 11 आवासीय क्षेत्र, 12 पहाड़, चार नदियाँ, एक झील, एक पहाड़ी दर्रा और भूमि का एक टुकड़ा शामिल है, जो चीनी अक्षरों, तिब्बती और पिनयिन में प्रस्तुत किया गया है। चीन की पिछली कार्रवाइयों में 2017 से अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के लिए मानकीकृत नामों की सूची जारी करना शामिल है, नवीनतम सूची में लगभग उतने ही नए नाम शामिल हैं जितने पहले के तीन नामों को मिलाकर थे।
चीन के बार-बार दावों के बावजूद, भारत ने लगातार अरुणाचल प्रदेश को देश का अभिन्न अंग और अविभाज्य बताया है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि चीन के ऐसे पैंतरों से वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आता है। भारत की ओर से यह कड़ी प्रतिक्रिया तब आई है जब दक्षिण चीन सागर जैसे क्षेत्रों में चीन की विस्तारवादी नीतियों को वैश्विक अस्वीकृति मिली है।