इंदिरा गांधी के मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के बिना भारत नहीं जीत सकता था 1971 का युद्ध: कर्ण सिंह

By भाषा | Updated: December 18, 2021 01:31 IST2021-12-18T01:31:51+5:302021-12-18T01:31:51+5:30

India could not have won the 1971 war without the strong and decisive leadership of Indira Gandhi: Karan Singh | इंदिरा गांधी के मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के बिना भारत नहीं जीत सकता था 1971 का युद्ध: कर्ण सिंह

इंदिरा गांधी के मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के बिना भारत नहीं जीत सकता था 1971 का युद्ध: कर्ण सिंह

नयी दिल्ली, 17 दिसंबर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह ने शुक्रवार को कहा कि भारत ‘‘इंदिरा गांधी के मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के बिना’’ 1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम नहीं जीत सकता था।

सिंह 1971 के युद्ध के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे थे। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी उस मौके का इस्तेमाल पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो पर कश्मीर मुद्दे पर दबाव बनाने के लिए कर सकती थीं।

सिंह की यह टिप्पणी तब आयी है जब कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार पर विजय दिवस समारोहों के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को याद नहीं करके क्षुद्र राजनीति में लिप्त होने का आरोप लगाया है।

सिंह ने एक बयान में कहा, ‘‘मैं बांग्लादेश युद्ध के दौरान श्रीमती इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल का सदस्य था। मैं यह कहना चाहूंगा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि इंदिरा गांधी के मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के बिना हम यह जीत हासिल नहीं कर पाते।’’

भारत ने बृहस्पतिवार को 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर अपनी जीत की 50वीं वर्षगांठ मनाई, जिस युद्ध के कारण दक्षिण एशिया में राजनीतिक मानचित्र फिर से खींचा गया और लाखों बांग्लादेशी लोगों पर पाकिस्तानी सेना की भयानक हिंसा का अंत हुआ।

सिंह ने कहा, ‘‘बेशक श्रेय हमारे सशस्त्र बलों को जाना चाहिए, लेकिन, मैं दोहराता हूं कि वह इंदिरा गांधी का मजबूत और निर्णायक नेतृत्व था जिसके कारण एक हजार साल बाद भारत की पहली जीत हुई। महान अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें दुर्गा सही ही कहा था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह सब कहने के बाद, मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि मैंने महसूस किया कि उन्होंने (इंदिरा गांधी) जुल्फिकार अली भुट्टो को उदारतापूर्वक छोड़ दिया।’’ सिंह ने कहा, ‘‘हालांकि युद्ध का उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति थी और यह जम्मू-कश्मीर से सीधे तौर पर जुड़ा नहीं था, लेकिन शायद वह उस मौके का इस्तेमाल मेरे पूर्वजों द्वारा स्थापित उस खूबसूरत राज्य के बारे में भुट्टो पर दबाव डालने के लिए कर सकती थीं। लेकिन यह एक और कहानी है।’’

राज्यसभा के पूर्व सदस्य सिंह ने कहा कि फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, लेफ्टिनेंट जनरल जे एस अरोड़ा, लेफ्टिनेंट जनरल जे एफ आर जैकब, लेफ्टिनेंट जनरल संगत सिंह और कई अन्य उत्कृष्ट सैन्यकर्मियों की शानदार योजना और समन्वित अभियान के नेतृत्व में सशस्त्र बलों ने इतिहास रच दिया। उन्होंने कहा कि नौसेना के तत्कालीन प्रमुख एडमिरल एस एम नंदा और वायु सेना के तत्कालीन प्रमुख पी सी लाल भी क्रमश: नौसेना और वायुसेना द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के लिए पूर्ण श्रेय के पात्र हैं।

1971 की घटनाओं को याद करते हुए, सिंह ने कहा, ‘‘मेरे पास लोकसभा में उस दिन की यादें हैं। इंदिरा गांधी, स्पष्ट रूप से बहुत खुश थीं और सदन में आकर अपनी जगह पर बैठीं। उनके सदन में प्रवेश करते ही सब चुप हो गए। वह उठीं और कहा कि अध्यक्ष महोदय, ढाका भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी के नियंत्रण में आ गया है। सदन में सभी ने प्रसन्नता जतायी और कार्यवाही स्थगित कर दी गई।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह अक्सर भुला दिया जाता है कि उस वर्ष के दौरान इंदिरा गांधी ने पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच संघर्ष के राजनीतिक समाधान के लिए वास्तविक प्रयास किए थे।

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