नई दिल्ली, 6 सितंबरः सुप्रीम कोर्ट के समलैंगिकता को लेकर ऐतिहासिक फैसले पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है। आरएसएस ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का समर्थन किया है लेकिन साथ ही साथ समलैंगिक विवाह और संबंध को अप्राकृतिक करार दिया। बता दें कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया जिसमें समलैंगिक संबंध को अपराध माना था। यह फैसला एकमत से सुनाया गया। इस फैसले पर संघ ने अपना पुराना स्टैंड बरकरार रखा है।
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की तरह हम भी इस को अपराध नहीं मानते। समलैंगिक विवाह और संबंध प्रकृति से सुसंगत एवं नैसर्गिक नहीं है, इसलिए हम इस प्रकार के संबंधों का समर्थन नहीं करते। परंपरा से भारत का समाज भी इस प्रकार के संबंधों को मान्यता नहीं देता। मनुष्य सामान्यतः अनुभवों से सीखता है इसलिए इस विषय को सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर ही संभालने की आवश्यकता है।'
सुप्रीम कोर्ट ने धारा-377 को अतार्किक और मनमानी बताते हुए कहा है कि समलैंगिकता अपराध नहीं है। चीफ जस्टिस ने कहा है कि धारा-377 पर सभी जजों की सहमति से फैसला लिया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) को भी समानता का अधिकार है। धारा-377 समता के अधिकार अनुच्छेद-144 का हनन है। निजता और अंतरंगता निजी पंसद है। यौन प्राथमिकता जैविक और प्राकृतिक है। सहमति से समलैंगिक संबंध समनाता का अधिकार है।