जमानत की अवधि दो महीने सीमित करने का उच्च न्यायालय का आदेश ‘गलत’, सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट आदेश को ‘‘त्रुटिपूर्ण’’ कहा, जानें कहानी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 3, 2024 18:07 IST2024-07-03T18:06:19+5:302024-07-03T18:07:09+5:30

शीर्ष अदालत द्वारा पूर्व में पारित एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह अब पूरी तरह से स्थापित हो चुका है कि त्वरित सुनवाई के अधिकार को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है तथा यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से निकटता से जुड़ा हुआ है।

High Court's order limit bail period 2 months 'wrong' Supreme Court called tOrissa High Court order erroneous know story | जमानत की अवधि दो महीने सीमित करने का उच्च न्यायालय का आदेश ‘गलत’, सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट आदेश को ‘‘त्रुटिपूर्ण’’ कहा, जानें कहानी

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Highlightsन्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और उज्ज्वल भुइयां की अवकाशकालीन पीठ ने उल्लेख किया। याचिकाकर्ता 11 मई 2022 से हिरासत में है और अब तक केवल एक गवाह से जिरह हुई है।हमारे विचार से, यह एक त्रुटिपूर्ण आदेश है।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के उस आदेश को ‘‘त्रुटिपूर्ण’’ करार दिया है जिसमें स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में आरोपी को दी गई जमानत की अवधि दो महीने के लिए सीमित कर दी गई थी। पीठ ने शीर्ष अदालत द्वारा पूर्व में पारित एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह अब पूरी तरह से स्थापित हो चुका है कि त्वरित सुनवाई के अधिकार को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है तथा यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से निकटता से जुड़ा हुआ है।

न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और उज्ज्वल भुइयां की अवकाशकालीन पीठ ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में एक जमानत अर्जी दायर की थी तथा अदालत ने इस तथ्य पर गौर किया कि याचिकाकर्ता 11 मई 2022 से हिरासत में है और अब तक केवल एक गवाह से जिरह हुई है। पीठ ने कहा, ‘‘इन परिस्थितियों में, उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आदेश देना उचित समझा, लेकिन केवल दो महीने की अवधि के लिए।’’ शीर्ष अदालत ने एक जुलाई के आदेश में कहा, ‘‘हमारे विचार से, यह एक त्रुटिपूर्ण आदेश है।

यदि उच्च न्यायालय का मानना ​​था कि याचिकाकर्ता के त्वरित सुनवाई के अधिकार का हनन हुआ होगा, तो उच्च न्यायालय को मुकदमे के निस्तारण तक याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आदेश देना चाहिए था।’’ पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के पास ‘‘जमानत की अवधि सीमित करने’’ का कोई उचित कारण नहीं था।

याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी करते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि वह शीर्ष अदालत के अगले आदेश तक जमानत पर रहेंगे। उच्च न्यायालय के छह मई के आदेश को याचिकाकर्ता द्वारा चुनौती देने वाली याचिका पर शीर्ष अदालत सुनवाई कर रही थी।

Web Title: High Court's order limit bail period 2 months 'wrong' Supreme Court called tOrissa High Court order erroneous know story

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