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गोरखपुरः बीजेपी की हार ने लगाया सीएम योगी की साख पर बट्टा, ये पांच फैक्टर जिम्मेदार

By आदित्य द्विवेदी | Updated: March 14, 2018 17:49 IST

गोरखपुर लोकसभा सीट गोरखनाथ मठ की पारंपरिक सीट मानी जाती रही है। लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी प्रत्याशी को मिली जीत। जानें कौन से फैक्टर्स रहे जिम्मेदार?

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गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजे भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हुए हैं। यहां से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी प्रवीण कुमार पटेल ने बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला को हराया। ये गोरखनाथ मठ की पारंपरिक सीट मानी जाती हैं। यहां पिछले 29 सालों से मठ के महंत की सांसद चुने जाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यहां से लगातार पांच बार सांसद रहे हैं। लेकिन उपचुनाव में सपा प्रत्याशी की जीत ने योगी आदित्यनाथ की साख पर बट्टा लगाया है। इस चुनाव में ऐसा क्या हुआ जो बीजेपी को हार का मुंह देखने पड़ा?

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योगी आदित्यनाथ चाहते थे मठ का प्रत्याशी

साल 1989 से गोरखनाथ मठ का महंत ही गोरखपुर सीट से सासंद चुना जाता रहा है। इसबार भी योगी आदित्यनाथ मठ के महंत को प्रत्याशी बनाना चाहते थे। लेकिन पार्टी आलाकमान के दबाव में उन्होंने उपेंद्र नाथ शुक्ल की उम्मीदवारी स्वीकार कर ली। योगी आदित्यनाथ खुद तो इसके पीछे का तर्क समझ गए लेकिन मठ के वोटरों को नहीं समझा सके। बीजेपी की हार पीछे ये एक बड़ा फैक्टर साबित हुआ।

कांग्रेस की सुरहिता करीम से मुस्लिमों की दूरी

कांग्रेस ने डॉ सुरहिता करीम को कांग्रेस प्रत्याशी बनाया था। उसे उम्मीद थी कि इससे मुस्लिम वोटर खिंचा चला आएगा। लेकिन मुसलमानों ने सतर्कता के साथ वोटिंग की। उसे पता था कि बीजेपी प्रत्याशी को कोई टक्कर दे सकता है तो वो सपा के प्रवीण कुमार निषाद हैं। मुस्लिमों ने डॉ करीम को नकार दिया और सपा प्रत्याशी के समर्थन में चले गए। ये निर्णायक साबित हुआ और बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा। 

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शहरी इलाकों में कम मतदान

गोरखपुर में इस बार मतदान का प्रतिशत पिछले चुनाव की अपेक्षा कम रहा। शहरी वोटर घरों से कम निकले जबकि ग्रामीण इलाकों में दलित और मुस्लिमों ने जमकर वोट किया। भाजपा के लिए यह नकारात्मक साबित हुआ। क्योंकि शहरों में बीजेपी का बड़ा वोटबैंक है। ग्रामीण अंचलों में सपा और बसपा का वोटर ज्यादा था। बीजेपी की हार के पीछे ये एक बड़ा फैक्टर था।

बसपा कार्यकर्ताओं की सक्रियता

बसपा सुप्रीमो मायवाती ने चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को समर्थन देने की घोषणा की थी। साथ ही जोनल को-ऑर्डिनेटरों से घर-घर जाकर प्रचार करने की रिपोर्ट मांगी गई। बसपा का यह दांव सपा प्रत्याशी के लिए संजीवनी साबित हुआ। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी माना कि बसपा का सारा वोट सपा प्रत्याशी को ट्रांसफर हो गया।

सुजेश खरे और सपा रणनीतिक टीम की सूझ-बूझ

समाजवादी पार्टी के राजनीतिक रणनीतिकार सुजेश खरे की सूझबूझ की कारगर रही। वो 2014 लोकसभा चुनावों में प्रशांत किशोर की टीम में रहे थे। बाद में समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ गए थे। इस चुनाव में इनके कंधे पर एक बड़ी जिम्मेदारी थी और वो इस पर खरे साबित हुए हैं। उन्होंने ऐसे नारे दिए जो सीधा मतदाताओं के सरोकारों से जुड़े हुए थे और जेहन में उतर गए।

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