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Google Doodle: फातिमा शेख पर गूगल ने बनाया आज का खास डूडल, भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक

By विनीत कुमार | Updated: January 9, 2022 08:52 IST

Google Doodle: गूगल ने फातिमा शेख के नाम आज का डूडल समर्पित किया है। ज्योतिराव और सावित्रीबाई फुले के दौर से आने वाली फातिमा शेख को भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक के तौर पर भी देखा जाता है।

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ठळक मुद्देफातिमा शेख का जन्म महाराष्ट्र के पुण में 1831 में हुआ था।ज्योतिराव और सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर दलित और मुस्लिम समाज में शिक्षा के लिए किया काम।फातिमा शेख को भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक भी कहा जाता है।

नई दिल्ली: गूगल आज अपने खास डूडल के जरिए शिक्षिका और नारीवाद का अहम चेहरा रहीं फातिमा शेख की जयंती मना रहा है। फातिमा शेख को दरअसल भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक के तौर पर भी देखा जाता है। फातिमा समाज सुधारकों जैसे ज्योतिबा  फुले और सावित्रीबाई फुले के दौर से आती हैं और 1848 में भारत में केवल लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई।

पुणे में हुआ फातिमा शेख का जन्म

फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी, 1831 में महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। वह अपने भाई उस्मान के साथ रहती थी। दलित जातियों में लोगों को शिक्षित करने के प्रयास के लिए जब फुले दंपत्ति को उनके ही घर निकाला गया तो फातिमा और भाई ने उनके लिए अपने घर का दरवाजा खोल दिया। 

यही नहीं फातिमा शेख ने लड़कियों के लिए स्कूल खोलने की जगह भी अपने यहां दी। यहां सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख ने तब हाशिए पर जा चुके दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया, जिन्हें वर्ग, धर्म या लिंग के आधार पर शिक्षा से वंचित किया जा रहा था।

घर-घर जाकर शिक्षा के लिए किया जागरूक

समाज में सभी की समानता के लिए फातिमा शेख लगातार आवाज उठाती रहीं। शेख ने घर-घर जाकर अपने और दलित समुदाय लोगों को शिक्षित होने के लिए जागरूक करने का प्रयास किया। इस दौरान कई मुश्किलें भी उनकी राह में आई।

इस प्रयास के दौरान उन्हें प्रभुत्वशाली वर्गों के भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। कई बार उन्हें और ऐसे काम में लगे लोगों को अपमानित करने का प्रयास किया गया, लेकिन फातिमा शेख और उनके सहयोगी डटे रहे। फातिमा शेख की समाज में बदलाव लाने में अहम भूमिका को ऐतिहासिक रूप से भी बड़े स्तर पर नजरअंदाज किया गया। बहरहाल साल 2014 में भारत के अन्य कई समाज सुधारकों के साथ उनकी कहानी को भी उर्दू शैक्षणिक किताबों में प्रमुखता से जगह दी गई।

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