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ग़ालिब की पुण्यतिथि: कर्ज की शराब पीने की वजह से जाना पड़ा था अदालत, जानिए 7 बातें

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: February 15, 2018 17:40 IST

मिर्जा असदउल्लाह बेग खान का जन्म 27 दिसंबर 1796 को आगरा में हुआ था। 15 फ़रवरी 1869 को उनका दिल्ली में निधन हुआ था।

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"ऐसा भी कोई है, जो गालिब को न जाने, शायर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है।"  उर्दू शायरी के महताब मिर्जा असदउल्ला खाँ ग़ालिब का ख़ुद के बारे में ये लिखा ये शेर उनके जाने के 149 साल के बाद भी सच है, बस उन्हें बदनाम कहने की आज शायद ही कोई जुर्रत करे। उर्दू और फ़ारसी के महान शायर ग़ालिब ने आज 15 फ़रवरी 1869 ने दुनिया को अलविदा कहा था। ग़ालिब की पुण्यतिथि पर हम आपको उनसे जुड़े 10 तथ्य बताते हैं।

1- मिर्जा असदउल्लाह बेग खान का जन्म 27 दिसंबर 1796 को आगरा में हुआ था। ग़ालिब उनका तखल्लुस (लेखकीय नाम या पेननेम) था। ग़ालिब ऐबक तुर्क परिवार से थे। उनके दादा भारत आकर शाह आलम द्वितीय की सेना में शामिल हुए थे। ग़ालिब के पिता भी सैनिक थे और अलवर के करीब युद्ध में मारे गये थे। पिता की मौत के समय ग़ालिब की उम्र करीब पाँच साल थी। उनकी परवरिश उनके चाचा ने की थी। ग़ालिब जब नौ साल के थे तब उनके चाचा की भी मृत्यु हो गई। उसके बाद वो नाना के यहाँ आ गये। गालिब किशोरावस्था में ही आगरा से दिल्ली आ गये और यहीं के होकर रह गये।

2- ग़ालिब उपनाम से पहले उन्होंने "असद" उपनाम से भी शायरी की थी। ग़ालिब के प्रसिद्ध शेर, "गम-ए-हस्ती का "असद" कैसे हो जुज-मर्ग-इलाज, शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक", में "असद" उपनाम का प्रयोग किया गया है। बाद में उन्होंने ज्यादातर ग़ालिब उपनाम का ही प्रयोग किया और इसी नाम से मशहूर हुए। 

3- ग़ालिब जब 13 साल थे के थे तो उमराव  बेगम से उनकी शादी  हुई। उमराव बेगम नवाब इलाही बख़्स की बेटी थीं। उमराव बेगम फिरोजपुर झिरका के नवाब की भतीजी थीं। ग़ालिब और उमराव के सात बच्चे हुए लेकिन दोनों का कोई बच्चा ज्यादा दिन नहीं जी सका। ग़ालिब के शायरी में ये दर्द की जगहों पर झलकता है।

4- गालिब आखिरी मुगल साम्राज्य बहादुर शाह जफर द्वितीय के दरबार में प्रमुख कवि थे। बहादुर शाह जफर ने 1854 में  उन्हें अपना उस्ताद भी नियुक्त किया था। दाग़, जौक और आतिश जैसे शायर ग़ालिब के समकालीन थे। 

5- गालिब को बादशाह बहादुर शाह जफर ने अपने दरबार में दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला के खिताब से नवाज़ा था। बाद में उन्‍हें मिर्ज़ा नोशा के खिताब भी नावाजा गया । जिसके बाद वो अपने नाम के आगे मिर्ज़ा लगाने लगे।

6- गालिब को शराब पीने और जुआ खेलने का शौक था। शराब की लत पर काबू रखने के लिए गालिब ने अपने एक खिदमतगार को कड़ा आदेश दे रखा था कि वो एक निश्चित मात्रा में शराब देने के बाद बोतल को आलमारी में ताला लगाकर बंद कर दें और नशे में और शराब माँगने पर भी न दे। कहा जाता है कि ग़ालिब ने स्थानीय दुकानदारों से उधार शराब ली थी लेकिन वो उनका कर्ज नहीं चुका सके। दुकानदार ग़ालिब से कर्ज वसूलने के लिए अदालत पहुँच गये। कहते हैं कि काजी ग़ालिब के शेरों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनका कर्ज माफ कर दिया।

7- भले ही हिंदुस्तान में आज ग़ालिब उर्दू लेखक के रूप में मशहूर हों उन्होंने ज्यादातर रचनाएँ फ़ारसी में लिखी हैं। ग़ालिब को उर्दू और फारसी के अलावा तुर्की और अरबी भाषाएं भी आती थीं।  15 फरवरी 1869 को गालिब इस दुनिया को अलविदा कह गए। उन्हें दिल्ली के निजामुद्दीन बस्ती में दफनाया गया था।

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