साहित्यकारों एवं रचनाधर्मियों का मानना है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एक विचार के रूप में कभी खत्म नहीं हो सकते। उनका यह भी मानना है कि गांधी एक ऐसी चिंगारी हैं जो लगता है बुझ गई, लेकिन फिर पता नहीं कहां से सुलग जाती है।
जयपुर साहित्य उत्सव (जेएलएल) में शुक्रवार को दूसरे दिन राष्ट्रपिता पर आयोजित एक सत्र “हमारे समय में गांधी“ में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर मकरंद परांजपे, लेखिका तलत अहमद, फिल्मकार रमेश शर्मा ने गांधी के जीवन से जुडे विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के दौरान ये बातें कहीं। सत्र के दौरान मानवाधिकार कार्यकर्ता रूचिरा गुप्ता के साथ बातचीत में परांजपे ने कहा कि गांधी का सत्य के प्रति आग्रह बेहद जबरदस्त था।
उन्होंने कहा कि गांधी ने अपने समय से जुडे हर विषय पर अपनी बात कही। उनके विचार और अनुभव एकसूत्र मे थे। गांधी ने जो कहा वह उनके अनुभव से निकला हुआ था। संवाद के दौरान एक वक्ता ने पूछा कि आज के समय गांधी होते तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्या सलाह देते। इस पर फिल्मकार रोमेश शर्मा ने कहा कि वे उपवास पर बैठ जाते।
इस पर मकरंद ने कहा कि मोदी भी उनके साथ उपवास पर बैठ जाते। फिल्मकार रमेश शर्मा ने कहा कि गांधी को भारत से ज्यादा सम्मान विदेश में मिला है। वे बहुत अच्छा संवाद करते थे और संवाद उनकी ताकत थी। अगर आज के दौर में वह होते तो सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करते।
लेखिका अहमद ने कहा कि गांधी सामाजिक बदलाव के प्रणेता थे ओर पूरी दुनिया उनकी ओर देखती थी। रूचिरा गुप्ता ने कहा कि गांधी ने हर आंदोलन से महिलाओं को जोड़ा और महिलाओं को मुख्य धारा में लाने के उनके अपने तरीके थे। गांधी की हत्या को लेकर विवाद भी हुआ।
सत्र में चर्चा को दौरान राष्ट्रपिता की हत्या से जुड़े सवाल पर परांजपे और रुचिरा के बीच विवाद की स्थिति भी उत्पन्न हुई। दरअसल रुचिरा ने मकरंद से पूछा था कि उनकी हत्या क्यों की गई। इस पर मकरंद ने कहा कि बंटवारे के बाद गांधी बहुत लोगों के लिए असुविधाजनक हो गए थे।
विभाजन को लेकर हुई हिंसा से खफा लोगों को लगता था कि वह हिंदुओं को कमजोर कर रहे हैं। यही नहीं कांग्रेस को खत्म करने की बात कह कर उन्होंने कांग्रेसी नेताओं को भी परेशानी में डाल दिया था। इसी दौरान जब रूचिरा ने गोडसे को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यकर्ता बताया तो मकरंद ने इसका प्रतिवाद किया।
उन्होंने कहा कि गोडसे संघ के कार्यकर्ता नहीं थे। हमें गलत तथ्य सामने नहीं रखने चाहिए। इसके बाद सावरकर को लेकर रुचिरा की एक टिप्पणी पर भी परांजपे ने प्रतिवाद किया। उन्होंने कहा कि गांधी और सावरकर भले ही विरोधी विचारों के थे, लेकिन उनके बीच संवाद हुआ था।