दिल्ली: प्रधानमंत्री द्वारा 'मुफ्त रेवड़ी' के मसले पर व्यक्त की गई चिंता के विषय में प्रतिक्रिया देते हुए नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा राज्य सरकारें अगर जनकल्याण के लिए वित्तीय क्षमताओं से परे 'मुफ्त योजनाओं' को लागू करती हैं तो वह उनके लिए घातक हो सकता है।
राजीव कुमार ने कहा कि मेरिट ट्रांसफर पेमेंट और नॉन-मेरिट मुफ्त उपहार के बीच अंतर है, खासकर उस समय, जब वो मुफ्त उपहार राज्य सरकारों की वित्तीय क्षमताओं से परे जाकर किए जाते हैं।
समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ बात करते हुए उन्होंने कहा, "जनता को दी जाने वाली गैर-योग्य मुफ्त उपहार योजना, जो लंबे समय तक राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाती हैं, तो उनसे राज्य सरकारों को गंभीर वित्तिय संकट का सामना करना पड़ सकता है।"
कुमार ने कहा लोकतंत्र में इस बात ध्यान देना चाहिए कि सरकारों को टैक्सों से प्राप्त अर्जित धन को ही विकास के लिए ट्रांसफर किया जाता है। उन्होंने कुछ राजनेताओं द्वारा श्रीलंका की वर्तमान आर्थिक स्थिति की भारत से तुलना करने पर कहा, "श्रीलंका से भारत की अर्थव्यवस्था की कोई भी तुलना पूरी तरह से अनुचित और शरारतपूर्ण है।"
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार के अनुसार नॉर्डिक देशों में सकल घरेलू उत्पाद का टैक्ट अनुपात लगभग 50 प्रतिशत है क्योंकि वे आम व्यक्ति को सार्वजनिक सामान और सेवाएं प्रदान करने में बहुत सारा पैसा खर्च करते हैं।
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि आम व्यक्ति के लिए सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच में वृद्धि करना महत्वपूर्ण है, खासकर उन लोगों के लिए जो सोशल पिरामिड के निचले भाग में हैं।"
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में राज्यों द्वारा 'रेवाड़ी' (मुफ्त उपहार) देने की प्रतियोगी भावना पर प्रहार करते हुए उसे न केवल करदाताओं के पैसे की बर्बादी बताया था बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी घातक बताया था।
खबरों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणियों को आम आदमी पार्टी जैसी क्षेत्रीय दलों के संदर्भ में बताया जा रहा था, जिसने हाल में पंजाब के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत दर्ज की। उसके बाद आम आदमी पार्टी गुजरात के आगामी चुनाव में जनता को मुफ्त बिजली और पानी का वादा कर रही है।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 'मुफ्त रेवड़ी' की टिप्पणी के बाद अश्विनी उपाध्याय नाम के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करते हुए चुनाव पूर्व किसी भी लोकलुभान वादे को रोकने की मांग की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के दौरान मतदाताओं को दिए जाने वाले "तर्कहीन मुफ्त उपहारों" की जांच के लिए एक विशेष निकाय के गठन का सुझाव दिया था।
मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि चुनाव लड़ने के लिए राजनीतिक दलों ने "फ्रीबी कल्चर" को उच्चतम सीमा तक बढ़ा दिया है। इसके साथ ही केंद्र ने यह भी कहा कि कुछ राजनीतिक दल समझते हैं कि मुफ्त उपहारों के लिए जन कल्याणकारी उपायों को किया जाना प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए "आपदा" के समान है।