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विवाहेतर संबंध मां को बच्चे का संरक्षण देने से मना करने का आधार नहीं : उच्च न्यायालय

By भाषा | Updated: June 3, 2021 16:16 IST

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चंडीगढ़, तीन जून पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक महिला के विवाहेतर संबंध के आधार पर वैवाहिक विवाद में किसी महिला को उसके बच्चे का संरक्षण देने के अधिकार से मना नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे यह नहीं माना जा सकता कि वह एक अच्छी मां नहीं होगी।

अदालत ने कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में एक महिला के नैतिक चरित्र पर आक्षेप लगाना काफी सामान्य है और अक्सर ये आरोप बिना किसी आधार के लगाए जाते हैं।

पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिले की एक महिला की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर यह आदेश आया। पति से अलग रह रही इस महिला ने साढ़े चार साल की अपनी बेटी को उसे सौंपे जाने का अनुरोध किया था। महिला का पति ऑस्ट्रेलियाई नागरिक है।

न्यायमूर्ति अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल ने महिला की याचिका मंजूर करते हुए निर्देश दिया कि बच्ची को उसकी मां के हवाले किया जाए जो कि इस समय ऑस्ट्रेलिया में रह रही है।

महिला के अलग रह रहे पति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी का एक रिश्तेदार से विवाहेतर संबंध है।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘याचिका में कोरे दावे के अलावा, इस अदालत के समक्ष कोई सहायक सामग्री पेश नहीं की गयी। यह ध्यान देने योग्य होगा कि पितृसत्तात्मक समाज में, एक महिला के नैतिक चरित्र पर आक्षेप लगाना काफी सामान्य है। अक्सर ये आरोप बिना किसी आधार के लगाए जाते हैं।’’

न्यायाधीश ने 10 मई के आदेश में कहा, ‘‘यह मान भी लिया जाए कि एक महिला विवाहेतर संबंध में है या रही है तो इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि वह अपने बच्चे के पालन-पोषण के लिए अच्छी मां नहीं होगी।’’

हालांकि, इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं और बच्चे के संरक्षण के मुद्दे पर फैसला करने के मामले में यह प्रासंगिक विषय नहीं है।

न्यायाधीश ने अपने आदेश में लिखा, ‘‘बच्चे के विकास के लिए उसे प्यार, देखभाल और मां की ममता की जरूरत होती है। किशोरावस्था के दौरान मां का सहयोग और मार्गदर्शन भी जरूरी होता है। हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा छह के तहत बच्चे की पांच साल उम्र होने तक मां बच्चे की स्वाभाविक अभिभावक होती है।’’

याचिका में महिला ने कहा कि उसकी शादी 2013 में हुई थी। उसका पति ऑस्ट्रेलियाई नागरिक है और बाद में वह भी ऑस्ट्रेलिया रहने चली गयी।

दंपति को जून 2017 में एक बेटी हुई और बाद में मतभेद शुरू हो गया। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि जब वह जनवरी 2020 में भारत आयी तो उसके पति अपनी बेटी को साथ ले गए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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