नई दिल्लीः राकेश कुमार शर्मा जी का जन्म एक जनवरी 1963 को दिल्ली में एक साधारण परिवार में हुआ। पढ़ाई में बचपन से बहुत रुचि थी। प्राणिविज्ञान विषय में स्नातक, राकेश कुमार शर्मा जी को दिल्ली के चिड़ियाघर में प्रयोगशाला सहायक के पद पर कार्य करने का अवसर मिला, जहां पर कार्य के दौरान प्रकृति व जीव-जंतुओं का सानिध्य प्राप्त हुआ। पढ़ने-लिखने का शौक व प्रकृति तथा जीव-जंतुओं का अनुभव कविता की और ले गया, परंतु सही मार्गदर्शन व उचित अवसर न मिलने के कारण यह शौक लोगों तक नहीं पहुंच सका, सिर्फ चिड़ियाघर में होने वाले हिन्दी पखवाड़ा आयोजन में कविता पाठ तक ही सीमित रह गया। अपने भावों को इसी प्रकार व्यक्त करने की कोशिश रहती है। इनकी रचनाओं में आम आदमी तथा प्रकृति की झलक दिखती है।
दिल्ली चिड़ियाघर एवं प्रकृति एक अनूठा सम्मिलन
इंद्रधनुषी छटा का अदभुत आनंद ,लिया जीवन में पहली बार ,प्रक्रति के विभिन्न रूपों से ,हुआ साक्षात्कार पहली बार I
किया पदार्पण चिड़ियाघर में ,जीवन में हमने पहली बार ,भिन्न भिन्न प्रकार पौधों के देखे,उससे भी उत्तम जीबो का संसार I
दिल्ली के दिल में बसता ,चिड़ियाघर का अजब संसार ,चलो गाड़ी से या फिर पैदल,आनंद दोनों का है अपरम्पार,छटा देखी चिड़ियाघर की,जीवन में हमने पहली बार I
भांति भांति के वन्य जीव हे इसमें, स्वछन्द कलरव करते देखो, तालावो में विचरते पक्षी इसमें, आकाश में उड़ते विचरण इनका, देखा हमने पहली वार Iकहीं गर्जना शेरो की, और कहीं हाथी की चिंघार,कही चहचहाहट पक्षियों की ,तो कही हे मूक आभार ,ऐसा सुंदर रूप प्रकृति का ,जीवन में देखा पहली बार I
देश विदेश के दर्शक इसमें, नहीं उम्र का कोई विचार, प्रफुल्लित होते चेहरे सबके, हमने देखे यहाँ पहली बार I
कभी कल्पना की थी मन में जंतु होंगे कैदी इसमें पर, असली जंगल जैसे परिवेश में, इनको देखा पहली बार I
मात्र कल्पना छीर्ण हो गई, जब यह संगम वन जीवों का, जीवन में देखा पहली बार, सच में यदि प्रकृति को चाहो ,यह चिड़ियाघर देखो बारम्बार I
रोचक, मनोरंजक,ज्ञानवर्धक ,सबका उत्तम मिश्रण हे यह,नहीं प्रदुषर्ण कैसा भी ,न कोई कोलाहल,ऐसा सुंदर उपयोग प्रकृति का ,जीवन में हमने देखा पहली बार, सच में यदि प्रकृति को चाहो ,यह चिड़ियाघर देखो बारम्बार Iसच में यदि प्रकृति को चाहो ,यह चिड़ियाघर देखो बारम्बार I.........रचयिता :राकेश कुमार शर्मा