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Maharashtra ki khabar: कोरोना और लॉकडाउन से किसान परेशान, सोलापुर में डेयरी उद्योग पर संकट, हर दिन करोड़ों का नुकसान

By शिरीष खरे | Updated: May 22, 2020 18:27 IST

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में प्रतिदिन 16 लाख लीटर दूध का उत्पादन होता है. गत 24 मार्च लॉकडाउन के पहले सोलापुर में दूध की कीमत 32 रुपए प्रति लीटर थी. लेकिन, लॉकडाउन की घोषणा के बाद दूध की दर घटकर 20 से 22 रुपए प्रति लीटर हो चुकी है.

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ठळक मुद्देअकेले सोलापुर जिले में दुग्ध कारोबार मंद पड़ने से दुग्ध उत्पादकों को हर दिन एक करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.अकेले सोलापुर जिले में प्रतिदिन 12 से 16 लाख लीटर दूध संकलन होता है. इसमें से लगभग 10 लाख लीटर दूध गाय का होता है.

पुणेः कोरोना वायरस से होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार कृषि या कृषि आधारित अन्य व्यवसायों पर पड़ रहा है.

यही वजह है कि दुग्ध उत्पादन में अग्रणी महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के दुग्ध उत्पादकों की मुसीबत बढ़ गई है. व्यवसायिक क्षेत्रों में दूध की खपत कम होने से इसकी कीमत घट गई है. इसके कारण दुग्ध उत्पादकों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है. हालत यह है कि अकेले सोलापुर जिले में दुग्ध कारोबार मंद पड़ने से दुग्ध उत्पादकों को हर दिन एक करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

गत 24 मार्च लॉकडाउन के पहले सोलापुर में दूध की कीमत 32 रुपए प्रति लीटर थी. लेकिन, लॉकडाउन की घोषणा के बाद दूध की दर घटकर 20 से 22 रुपए प्रति लीटर हो चुकी है. बता दें कि अकेले सोलापुर जिले में प्रतिदिन 12 से 16 लाख लीटर दूध संकलन होता है. इसमें से लगभग 10 लाख लीटर दूध गाय का होता है.

जाहिर है कि लॉकडाउन के कारण दूध की कीमत सामान्यत: 10 से 12 रुपए प्रति लीटर कम हो गई है. वहीं, सोलापुर जिला दुग्ध संघ के मुताबिक यदि गायों द्वारा उत्पादित 10 लाख लीटर को ध्यान में रखते हुए प्रति लीटर 10 रुपए के हिसाब से भी घाटे की गणना करें तो इस जिले के दुग्ध उत्पादकों को न्यूनतम हर दिन एक करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

पशु खाद्य पदार्थों पर महंगाई की मार और चारे की कमी

सोलापुर जिले के एक दुग्ध उत्पादक राजू नरगुंदे बताते हैं, 'पशुओं की बढ़ती कीमत, पशु खाद्य पदार्थों पर महंगाई की मार और चारे की कमी से हम वैसे ही परेशान हैं. अब इस हालत में आप कह सकते हैं कि हमारे लिए ये सबसे बुरे दिन हैं. इसी तरह कुछ और दिन रहे तो जीना दूभर हो जाएगा, क्योंकि हर चीज के दाम बढ़ेंगे. इसलिए, गायों को खिलाना तो दूर हमें ही खाने के लाले पड़ जाएंगे.'

सोलापुर जिला दुग्ध संघ के प्रबंध संचालक सतीश मुले के अनुसार, 'राज्य सरकार ने सोलापुर जिला दुग्ध संघ से प्रतिदिन 20 हजार लीटर दूध खरीदने का कोटा निर्धारित किया है. इस वजह से दुग्ध उत्पादकों को बड़ी राहत मिल रही है. लेकिन, यदि सरकार समय पर भुगतान भी करें तो ऐसी स्थिति में दुग्ध उत्पादकों को बड़ी मदद मिल सकती है.'

दूसरी तरफ, इस बारे में महाराष्ट्र राज्य दुग्ध विकास निगम दूध की खपत के लिए विशेष उप-योजना बनाने पर विचार कर रही है. सोलापुर जिले में दुग्ध विकास अधिकारी वी डी पाटिल बताते हैं कि महानंद (महाराष्ट्र राज्य सहकारी दुग्ध महासंघ मर्यादित) द्वारा सोलापुर जिले से सोलपुर दुग्ध संघ के अलावा शिवामृत सहकारी दुग्ध संघ और संगोला तहसील सहकारी दुग्ध संघ से भी दूध खरीद रहा है.

वे कहते हैं, 'अतिरिक्त दूध की खरीद के मामले में और दूध उत्पादकों को हो रहे नुकसान का समाधान निकालने के लिए सरकारी स्तर पर जो भी उचित कदम उठाने होंगे, हम उठाए जाएंगे.' दूसरी तरफ, पिछले दिनों राज्य में दूध की मांग में कमी को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने दुग्ध उत्पादकों को भारी घाटे से उबारने के लिए 127 करोड़ रुपए खर्च करके अगले दो महीने तक कुल 4 करोड़ लीटर दूध का मिल्क पाउडर बनाने का निर्णय लिया है.

राज्य सरकार के इस निर्णय को महानंद लागू कर रहा है. इसके तहत विभिन्न समितियों के माध्यम से संग्रहित दूध से दुग्ध उत्पादकों को 25 रुपए प्रति लीटर की दर से भुगतान हो रहा है. दुग्ध उत्पादन से जुड़े कारोबारी बताते हैं कि महाराष्ट्र में 17 लाख लीटर दूध की मांग गिर गई है. वजह, देश में कोरोना वायरस की सबसे ज्यादा मार महाराष्ट्र राज्य पर ही पड़ी है. इसलिए, राज्य सरकार लॉकडाउन का बड़ी सख्ती से पालन कर रही है. लिहाजा, बंद के असर के कारण दूध खरी केंद्रों से दूध की मांग में कमी आई है.

यही वजह है कि भारत में लॉकडाउन की घोषणा के बाद दूध उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी राज्य महाराष्ट्र में भी पिछले डेढ़ महीने के दौरान दूध का उत्पादन तो जारी है. लेकिन, दूध की खपत कम हो गई है. इसलिए, होटल, रेस्टोरेंट और चाय की दुकानें बंद हैं.

इसी तरह, दूध से तैयार होने वाले अन्य खाद्य पदार्थों को बेचने वाली दुकानें भी बंद हैं. इसके अलावा, बड़ी संख्या में घरेलू उपयोग के लिए दूध पैकेट खरीदने वाले प्रवासी मजदूर राज्य के बड़े शहरों से अपनी घरों की तरफ लौट रहे हैं. इससे दूध की खुदरा और थोक बिक्री पर बुरा असर पड़ा रहा है.

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