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"कांग्रेस सोचे, लोकसभा चुनाव में किसे बनाएगी अपना चेहरा", पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 6, 2024 10:57 IST

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले कहा कि कांग्रेस को यह सोचना चाहिए कि वह किसे अपने चेहरे के तौर पर पेश करेक्योंकि पिछले दो लोकसभा चुनावों में जब राहुल गांधी पार्टी का चेहरे थे तो कांग्रेस बुरी तरह हार गई थी।

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ठळक मुद्देशर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि कांग्रेस यह सोचे कि वह किसे अपने चेहरे के तौर पर पेश करेगीपार्टी किसी विशेष नेता के नेतृत्व में लगातार हार रही है, तो पार्टी को उसके बारे में सोचना चाहिए2014 और 2019 के चुनाव में कांग्रेस राहुल गांधी की अगुवाई में बुरी तरह से हार चुकी है

जयपुर: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले कहा कि कांग्रेस को यह सोचना चाहिए कि वह किसे अपने चेहरे के तौर पर पेश करे क्योंकि पिछले दो लोकसभा चुनावों में जब राहुल गांधी पार्टी का चेहरे थे तो कांग्रेस बुरी तरह हार गई थी।

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने सोमवार को एएनआई से बात करते हुए कहा, "अगर कोई पार्टी किसी विशेष नेता के नेतृत्व में लगातार हार रही है, तो पार्टी के लिए इस बारे में सोचना जरूरी है। कांग्रेस को इस बारे में सोचना चाहिए कि पार्टी का चेहरा कौन होना चाहिए।"

उन्होंने कहा, "कांग्रेस को इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि 2014 और 2019 में दो लोकसभा चुनाव हुए औऱ कांग्रेस राहुल गांधी की अगुवाई में बुरी तरह से हारी थी।"

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 52 सीटें जीतीं, जबकि 2014 के चुनाव में उसे 44 सीटें मिली थी। मुखर्जी ने कहा कि उनके दिवंगत पिता प्रणब मुखर्जी विभिन्न विचारधाराओं के साथ संवाद करने को महत्व देते थे, भले ही कोई इसका विरोधी हो।

उन्होंने कहा, "मेरे पिता मानते थे कि लोकतंत्र में अलग-अलग विचारधाराएं होती हैं, हो सकता है कि आप उनकी विचारधारा से सहमत न हों लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उस विचारधारा का अस्तित्व गलत है। इसलिए संवाद होना जरूरी है।"

'प्रणब माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स' नाम से किताब लिखने वाली शर्मिष्ठा ने कहा कि कि जब उनके पिता सक्रिय राजनीति में थे, तो उनमें संसद में गतिरोध के मामलों में अन्य पार्टी सदस्यों के साथ चर्चा करने की क्षमता थी।

कांग्रेस नेता ने कहा, "जब मेरे पिता सक्रिय राजनीति में थे, तो उन्हें 'सर्वसम्मति का जनक' माना जाता था, क्योंकि संसद में गतिरोध के दौरान अन्य पार्टी के सदस्यों के साथ चर्चा करने का उनमें यह गुण था।"

उन्होंने कहा, "लोकतंत्र सिर्फ बोलने के बारे में नहीं है; दूसरों को सुनना भी बहुत महत्वपूर्ण है। उनकी (प्रणब मुखर्जी) विचारधारा थी कि लोकतंत्र में संवाद होना चाहिए।"

पूर्व राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का निमंत्रण स्वीकार करने का कारण बताते हुए कांग्रेस नेता ने कहा, "यदि कोई आरएसएस प्रचारक भारी बहुमत से जीतकर सत्ता में आया है, तो आप विचारधारा या संगठन को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इसलिए उन्होंने आरएसएस के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और उनके मंच पर उन्होंने कांग्रेस की विचारधारा, इसकी बहुलता और समावेशिता और पंडित नेहरू के बारे में बात की।"

मुखर्जी ने कहा कि पहले उनके आरएसएस कार्यक्रम में शामिल होने के फैसले को लेकर उनके पिता के साथ मतभेद थे, लेकिन फिर, समय के साथ उन्हें लोकतंत्र में संवाद के महत्व का एहसास हुआ।

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