राहुल की भाषा से कांग्रेस के तमाम नेता असहज, अनौपचारिक बातचीत में बोले- यह कांग्रेस की भाषा नहीं
By शीलेष शर्मा | Published: February 7, 2020 11:33 PM2020-02-07T23:33:27+5:302020-02-07T23:33:27+5:30
कोई नेता औपचारिक तौर पर टिप्पणी करने को तैयार नहीं है लेकिन अनौपचारिक बातचीत में वे मानते है कि राहुल ने जिस भाषा का प्रयोग किया वह कांग्रेस की भाषा नहीं है. बावजूद इसके राहुल सहित कांग्रेस के तमाम बड़े नेता प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपने हमले को तेज करने में जुटे है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ‘डंडे’ वाले बयान को लेकर भले ही समूची कांग्रेस राहुल के बचाव में उतर आई हो लेकिन पार्टी सूत्रों के अनुसार पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता राहुल की भाषा को लेकर खासे नाराज़ है.
हालांकि कोई नेता औपचारिक तौर पर टिप्पणी करने को तैयार नहीं है लेकिन अनौपचारिक बातचीत में वे मानते है कि राहुल ने जिस भाषा का प्रयोग किया वह कांग्रेस की भाषा नहीं है. बावजूद इसके राहुल सहित कांग्रेस के तमाम बड़े नेता प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपने हमले को तेज करने में जुटे है.
लोकसभा में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की टिप्पणी से हुए हंगामे के बाद कांग्रेस सांसद माणिक टेगौर ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि स्वास्थ्य मंत्री से जो सवाल पूछा गया उसके जवाब देने की जगह उन्होंने राजनैतिक वक्तव्य देना शुरू कर दिया जिसका कोई सरोकार उस सवाल से नहीं था जो राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र के बावत पूछा था.
उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह ने उनके साथ हाथापाई की जिसकी जांच स्वयं लोकसभा अध्यक्ष संसद के सीसीटीवी फुटेज से कर सकते है.
टेगौर ने ऐसे सांसदों के खिलाफ कार्यवाही की भी मांग की.
राहुल गांधी ने भी अपनी टिप्पणी को जायज ठहराते हुए संसद परिसर में कहा कि उन्होंने जो कुछ कहा कि संसद के बाहर का वक्तव्य था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने जो टिप्पणी की वह प्रधानमंत्री के पद के अनुकूल उनका बर्ताव नहीं था.
राहुल का मानना था कि प्रधानमंत्री का विशेष दर्जा होता है और वह विशेष रूप से व्यवहार करता है. लेकिन मोदी का बर्ताव उस पद के अनुरूप नहीं था. राहुल ने आरोप लगाया कि उनको दबाया जा रहा है और संसद में बोलने की इजाजत नहीं दी जा रही है.
उनका यह भी आरोप था कि बार-बार प्रधानमंत्री से युवकों के रोजगार का सवाल पूछा जा रहा है लेकिन वे मौन नहीं तोड़ रहे है और भटकाने की कोशिश कर रहे है. कभी नेहरू की बात करते है कभी पाकिस्तान की तो कभी बंगलादेश की लेकिन रोजगार के मुददे पर कुछ नहीं बोलते.