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Chirag Paswan Oath: पिता की विरासत संभालने के लिए राजनीति में रखा कदम, कभी बनाना चाहते थे एक्टिंग में करियर; जानें कौन हैं चिराग पासवान

By अंजली चौहान | Updated: June 9, 2024 20:35 IST

Chirag Paswan Oath:कहा जाता है कि उनकी पार्टी एलजेपी (आरवी) ने पासवान समुदाय के वोटों पर नियंत्रण रखते हुए यह सुनिश्चित किया है कि बिहार में दलित वोट एनडीए से ज्यादा दूर न जाएं।

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Chirag Paswan Oath: आज  नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए तीसरी बार शपथ ली है। उनके शपथ लेने के साथ ही उनकी नई कैबिनेट भी शपथ ले रही है। इस बार मोदी कैबिनेट में कई नए और दिग्गज चेहरों को जगह मिली है। इन मंत्रियों के कमेटी में सबसे चर्चित चेहरा हैं चिराग पासवान। एनडीए गठबंधन के तहत बिहार में पांच सीटों पर विजयी होने वाली लोक जनशक्ति पार्टी के सुप्रीमो चिराग पासवान का बिहार की राजनीति में खास स्थान है।

यंग और राजनीतिक परिवार से संबंध रखने वाले चिराग पासवान अपने पिता और नेता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे हैं। 

 एनडीए गठबंधन में रहे चिराग को मोदी कैबिनेट में शामिल हो गए हैं जिसके लिए उन्हें शपथ दिलाई जा रही है। पता चला है कि चिराग पासवान को आज शाम प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण से पहले भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा का फोन आया था।

 सूत्रों ने कहा कि चिराग पासवान को पहली और दूसरी नरेंद्र मोदी सरकारों में भी मंत्री पद की पेशकश की गई थी, लेकिन तब लोजपा ने फैसला किया था कि उनके पिता और पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान को यह पद संभालना चाहिए। 

चिराग पासवान बिहार की हाजीपुर सीट से चुने गए हैं, जहां से उनके पिता ने रिकॉर्ड नौ बार जीत हासिल की है। यह चुनाव चिराग पासवान की राजनीतिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर रहा है, जो उनके दिग्गज पिता के मार्गदर्शन में शुरू हुआ था। हालांकि, चिराग पासवान का राजनीतिक सफर आसान नहीं रहा, उन्हें पिता की मौत का सदमा से लेकर परिवारिक कलह का सामना करना पड़ा।

चिराग पासवान का राजनैतिक सफर

2020 में रामविलास पासवान की मौत के बाद पारिवारिक कलह शुरू हो गई, क्योंकि चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस दोनों ने दिग्गज की राजनीतिक विरासत पर दावा किया। इस टकराव के कारण पार्टी दो धड़ों में बंट गई। 2021 में अपने चाचा पशुपति कुमार पारस के पार्टी से बाहर जाने और इसे विभाजित करने के बाद अनिश्चित राजनीतिक भविष्य की ओर देखने से लेकर 100% स्ट्राइक रेट के साथ बिहार में एनडीए के एकमात्र घटक के रूप में उभरने तक, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने एक लंबा सफर तय किया है।

2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में, पहली बार अपनी पार्टी का नेतृत्व करते हुए (रामविलास पासवान का चुनाव से ठीक पहले निधन हो गया), चिराग ने एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद अकेले चुनाव लड़ने का साहसिक फैसला किया। उन्होंने सीएम नीतीश कुमार की खुलकर आलोचना की और केवल उन्हीं निर्वाचन क्षेत्रों में लोजपा के उम्मीदवार उतारे, जहां जेडी(यू) चुनाव लड़ रही थी।

इसका चुनावों पर व्यापक प्रभाव पड़ा क्योंकि 2015 में जेडी(यू) की सीटें 70 से अधिक थीं, जो 2020 में घटकर केवल 43 रह गईं। इससे चिराग भाजपा के बहुत प्रिय हो गए, जो अब 74 सीटें जीतकर एनडीए में वरिष्ठ भागीदार बन गई थी।

हालांकि, नतीजों के महीनों बाद, चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस के छह में से चार लोजपा सांसदों के साथ लोजपा टूट गई और वे मोदी सरकार में शामिल हो गए। चिराग मुश्किल में पड़ गए क्योंकि वे न केवल एनडीए से बाहर हो गए, बल्कि पार्टी का चुनाव चिन्ह भी पारस गुट के पास चला गया। चिराग ने अपनी पार्टी को विभाजित करने के लिए सीधे तौर पर नीतीश और जेडी(यू) को जिम्मेदार ठहराया।

उस समय, भाजपा ने भी अपने राजनीतिक गणित के कारण चिराग की मदद नहीं की थी। इन असफलताओं के बावजूद, चिराग नरेंद्र मोदी के प्रति अपनी वफादारी दोहराते रहे, राज्य में राजनीतिक हवाओं को भांपने की क्षमता का प्रदर्शन किया, एक ऐसा गुण जो उनके पिता में भरपूर था।

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