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दयनीय स्थिति में रह रहे हैं आदिवासी, पुनर्वास के लिये सरकार ने केंद्र से दिशा निर्देश जारी करने को कहा

By भाषा | Published: September 24, 2019 6:23 AM

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सीमा से लगते ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के जंगलों में ऐसी 248 बस्तियों में करीब 30,000 लोग रह रहे हैं। कई बार पुलिस और वन अधिकारियों ने उन्हें छत्तीसगढ़ भेजने के लिए उनकी बस्तियां जलायी हैं।

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ठळक मुद्देपत्र में कहा गया है, ‘‘चूंकि ‘मूल स्थान’ पर पुनर्वास या तो वन भूमि या वन अधिकार कानून की धारा 3(1)(एम) के तहत वैकल्पिक भूमि पर किया जाना है ।यह मामला दो या अधिक राज्यों से जुड़ा है तो इस पर स्पष्टीकरण की आवश्यकता है कि यह प्रावधान अंतरराज्यीय विस्थापन के मामले में लागू होगा या नहीं।

छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सली हिंसा के कारण राज्य से विस्थापित हुए आदिवासियों के ‘‘मूल स्थान’’ पर पुनर्वास के मकसद से व्यापक दिशा निर्देश जारी करने के लिए केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय को पत्र लिखा है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि कि राज्य में 2005 से 2011 तक माओवादी विरोधी अभियानों के तौर पर स्थापित सलवा जुडुम के कारण हजारों आदिवासी छत्तीसगढ़ छोड़कर भाग गए। सभी सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित ये आदिवासी पड़ोसी राज्यों में दयनीय स्थिति में रह रहे हैं।आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सीमा से लगते ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के जंगलों में ऐसी 248 बस्तियों में करीब 30,000 लोग रह रहे हैं। उन्होंने दावा किया, ‘‘ये राज्य उन्हें आदिवासियों के तौर पर मान्यता नहीं देते। उनका वन भूमि पर कोई अधिकार नहीं है और वे सभी सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित हैं। कई बार पुलिस और वन अधिकारियों ने उन्हें छत्तीसगढ़ भेजने के लिए उनकी बस्तियां जलायी हैं।’’ कई आदिवासी परिवारों ने माओवादी हिंसा के डर से लौटने से इनकार कर दिया है।छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग ने 20 सितंबर को लिखे पत्र में कहा, ‘‘कुछ विस्थापित परिवार तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में बसना चाहते हैं जबकि कुछ परिवार छत्तीसगढ़ में अपने-अपने जिलों में सुरक्षित स्थानों पर रहना चाहते हैं।’’पत्र में कहा गया है, ‘‘चूंकि ‘मूल स्थान’ पर पुनर्वास या तो वन भूमि या वन अधिकार कानून की धारा 3(1)(एम) के तहत वैकल्पिक भूमि पर किया जाना है और यह मामला दो या अधिक राज्यों से जुड़ा है तो इस पर स्पष्टीकरण की आवश्यकता है कि यह प्रावधान अंतरराज्यीय विस्थापन के मामले में लागू होगा या नहीं।’’ इन परिस्थिति के मद्देनजर राज्य सरकार ने मंत्रालय से ‘‘कानून के तहत विस्थापित समुदाय के मूल निवास स्थान पर पुनर्वास के लिए व्यापक दिशा निर्देश जारी करने को कहा हैं।’’ मंत्रालय ने पहले ही एफआरए के प्रावधान के तहत पुनर्वास के योग्य विस्थापित आदिवासियों की पहचान करने के लिए सर्वेक्षण का आदेश दिया है।

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