Chandrayaan-3 landing mission: चंद्रयान -3 का लैंडर मॉड्यूल अब प्रोपल्शन मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग हो चुका है। अब इसने एक और अहम पड़ाव पार कर लिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार को कहा कि लैंडर मॉड्यूल (जिसमें विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर शामिल हैं) ने सफलतापूर्वक डीबूस्टिंग की प्रक्रिया पूरी कर ली है।
इसरो के ताजा अपडेट के मुताबिक, "लैंडर मॉड्यूल (एलएम) की सेहत सामान्य है। “एलएम ने सफलतापूर्वक एक डीबूस्टिंग ऑपरेशन किया जिससे इसकी कक्षा 113 किमी x 157 किमी तक कम हो गई। दूसरा डिबॉस्टिंग ऑपरेशन 20 अगस्त 2023 को लगभग 0200 बजे के लिए निर्धारित है।"
बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर मॉड्यूल के प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होने के बाद अब यह 23 अगस्त को द्रमा पर उतरने का प्रयास करेगा। यहीं से चंद्रयान-2 ऑर्बिटर की भूमिका भी शुरू हो जाएगी। अब चंद्रयान-3 लैंडर को संचार के लिए चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से जोड़ा जाएगा।
सितंबर 2019 में इसरो के असफल चंद्रयान-2 लैंडिंग मिशन का ऑर्बिटर चंद्रयान-3 मिशन में एक महत्वपूर्ण घटक है। चंद्रयान-2 मिशन के लगभग चार साल बीत जाने के बावजूद 2019 से ही ऑर्बिटर अंतरिक्ष में प्रभावी ढंग से काम करना जारी रखे हुए है। चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने पहले ही चंद्रयान-3 लैंडर के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित लैंडिंग स्थान की पहचान करने में भूमिका निभाई है। अब यह लैंडर और पृथ्वी के बीच सभी संचार में भी केंद्रीय भूमिका निभाएगा।
बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन में चंद्रमा पर उतरने की प्रक्रिया शुक्रवार को लैंडर पर लगे इंजनों की एक छोटी सी फायरिंग के साथ शुरू होगी ताकि लैंडर को धीमा (डीबूस्ट) किया जा सके। पृथ्वी स्टेशनों के साथ चंद्रयान -3 मिशन के संचार नेटवर्क को इस तरह से कॉन्फ़िगर किया गया है कि लैंडर पुराने चंद्रयान -2 ऑर्बिटर को डेटा भेजेगा जो इसे इसरो और सहयोगी एजेंसियों के ग्राउंड स्टेशनों पर रिले करेगा। हालांकि चंद्रयान-3 लैंडर में पृथ्वी से सीधे संचार करने की क्षमता भी है।
14 जुलाई को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया चंद्रयान-3 लगातार अपने उद्देश्य की ओर आगे बढ़ रहा है। 5 अगस्त को चंद्र कक्षा में प्रवेश करने के बाद, अंतरिक्ष यान कक्षा की गतिविधियों की एक श्रृंखला में लगा हुआ है, जिससे धीरे-धीरे चंद्रमा से इसकी दूरी कम हो रही है।
चंद्रयान-3 की सबसे बड़ी चुनौती सॉफ्ट लैंडिंग ही है क्योंकि जब पिछली बार चंद्रयान-2 के लैंडर ने चंद्रमा पर उतरने की कोशिश की थी तब यह क्रैश हो गया था और मिशन में इसरो को कामयाबी नहीं मिली थी। इस बार इसरो ने सारी अनुमानित समस्याओं का पहले से ही अंदाजा लगा कर काफी तैयारी की है।