नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से बुधवार को कहा कि 500 और 1000 के नोटों के चलन में अत्यधिक वृद्धि एक अहम वजह थी जिसे देखते हुए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने केंद्र से इन दो तरह के नोटों को हटाने की अनुशंसा की। साथ ही केंद्र ने कहा कि 2016 में की गई नोटबंदी एक बहुत ही सोच-विचार करके लिए गया फैसला था और यह जाली नोट, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी जैसी समस्याओं से निपटने की बड़ी रणनीति का हिस्सा था।
केंद्र ने कहा कि नोटबंदी का यह फैसला भारतीय रिजर्व बैंक के साथ गहन विचार- विमर्श के बाद लिया गया था और नोटबंदी से पहले इसकी सारी तैयारियां कर ली गई थीं। केंद्र ने नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के जवाब में दायर हलफनामे में यह बात कही है। पांच जजों की बेंच केंद्र की ओर से दिए जवाब को देखेगी।
हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा, ‘नोटबंदी करना जाली करेंसी, आतंक के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी की समस्याओं से निपटने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा और एक प्रभावी उपाय था। लेकिन यह केवल इतने तक सीमित नहीं था। परिवर्तनकारी आर्थिक नीतिगत कदमों की श्रृंखला में यह अहम कदमों में से एक था।’
सरकार ने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 48 करोड़ का कार्यबल था, जिनमें से अनुमानित 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र में थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में गैर-कृषि रोजगार में भारत में अनौपचारिक रोजगार का हिस्सा कहीं अधिक है। इसमें कहा गया है कि नोटबंदी औपचारिक क्षेत्र के विस्तार और अनौपचारिक क्षेत्र को कम करने के कदमों में से एक था।
इस मामले पर सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ कर रही है और अब मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी। हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि नोटबंदी का निर्णय रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल की विशेष अनुशंसा पर लिया गया था और आरबीआई ने इसके क्रियान्वयन के लिए योजना के मसौदे का प्रस्ताव भी दिया था। पीठ ऐसी 58 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें केंद्र के आठ नवंबर, 2016 को लिए गए नोटबंदी के फैसले को चुनौती दी गई है।
(भाषा इनपुट)