केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा, 'देशद्रोह के औपनिवेशिक कानून 124ए की समीक्षा के लिए तैयार हैं'
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: May 9, 2022 06:10 PM2022-05-09T18:10:41+5:302022-05-09T18:16:47+5:30
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि वो औपनिवेशिक काल से चले आ रहे देशद्रोह कानून 124ए की समीक्षा करने के लिए तैयार है।
दिल्ली: भारतीय संविधान की धारा 124ए, जो कि देशद्रोह कानून और उसके दंडविधान को परिभाषित करती है। नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वो औपनिवेशिक काल से चले आ रहे इस देशद्रोह कानून की समीक्षा करने के लिए तैयार है।
इसके साथ ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि आईपीसी की धारा 124ए की समीक्षा होने तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पुनर्विचार न करे।
समाचार वेबसाइट 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो वह राष्ट्र की संप्रभुता को अच्छुण रखते हुए अंग्रेजों के शासनकाल से चले आ रहे इस तरह के कानूनों को हटाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
हलफनामे में अपनी भावना को व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार ने कहा, "भारत सरकार राजद्रोह विषय पर व्यक्त किए जा रहे विभिन्न विचारों के बारे पूरी तरह से अवगत है और नागरिक स्वतंत्रता के साथ-साथ मानवाधिकार चिंताओं को ध्यान में रखते हुए देश की संप्रभुता और अखंडता को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। अतएव भारत सरकार देशद्रोह को परिभाषित करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार है।"
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का दिया यह हलफनामा राजद्रोह कानून का बचाव करने वाले एक दूसरे हलफनामे के कुछ दिनों के बाद आया है।
उस हलफनामे में राजद्रोह कानून का बचाव करते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के 1962 के मामले में संविधान पीठ ने फैसला देते हुए धारा 124 ए को एक अच्छा कानून बताया था। इसलिए इस पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है।
साल 1962 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 124ए (देशद्रोह) को सही ठहराते हुए इसे बरकरार रखने का फैसला सुनाया था।
केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून का बचाव करते हुए हलफनामे में कहा था कि केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के फैसले में संविधान के भाग तीन में निहित अनुच्छेद 14, 19, 21 के अनुसार धारा 124ए की संवैधानिक वैधता पर विचार किया गया था।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट 1860 के भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई आगामी मंगलवार को करेगा।