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Caste Census: हिंदुत्व के बाद सामाजिक न्याय प्रयोग?, बिहार चुनाव से पहले पीएम मोदी ने खेला दांव, जानें असर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 30, 2025 22:30 IST

Caste Census: भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि यह निर्णय उनके प्रतिद्वंद्वियों से एक ऐसा मुद्दा छीन लेगा, जिसमें चुनावी तौर पर प्रभाव डालने की क्षमता है।

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ठळक मुद्देकांग्रेस अपने प्रभाव वाले राज्यों में इसे मुख्यधारा में ला रही है।पिछले वर्ष के लोकसभा चुनाव में कई राज्यों में भाजपा को पीछे धकेल दिया था।जनगणना के निष्कर्ष मुख्य रूप से गैर-प्रभावी पिछड़ी जातियों को सशक्त बनाएंगे।

नई दिल्लीः भाजपा नीत सरकार की अगली जनगणना में जाति आधारित गणना की आश्चर्यजनक घोषणा ने चुनावी राजनीति की प्रतिस्पर्धा की ओर राष्ट्रीय ध्यान आकृष्ट किया है और सत्तारूढ़ गठबंधन को उम्मीद है कि इससे विपक्ष के एक प्रमुख मुद्दे को कमजोर किया जा सकेगा। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे हिन्दी पट्टी के राज्यों में ओबीसी-समर्थक राजनीति का नवीनतम उदाहरण जाति आधारित गणना की मांग जोर पकड़ रही है, जहां दोनों ही राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत हैं और कांग्रेस अपने प्रभाव वाले राज्यों में इसे मुख्यधारा में ला रही है।

भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि यह निर्णय उनके प्रतिद्वंद्वियों से एक ऐसा मुद्दा छीन लेगा, जिसमें चुनावी तौर पर प्रभाव डालने की क्षमता है। यह अनुसूचित जातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और अनुसूचित जनजातियों से ताल्लुक रखने वाले समाज के वंचित वर्गों का विपक्ष के एजेंडे के इर्द-गिर्द एकजुट होना ही है, जिसने पिछले वर्ष के लोकसभा चुनाव में कई राज्यों में भाजपा को पीछे धकेल दिया था।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि परिणामों से यह सबक मिला है कि वंचित वर्गों को अपने पक्ष में करने के लिए लगातार प्रयास करने की जरूरत है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रीय परिदृश्य पर आने के बाद से बड़ी संख्या में पार्टी को वोट देते रहे हैं, लेकिन इसके प्रतिबद्ध मतदाता नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की जनगणना के निष्कर्ष मुख्य रूप से गैर-प्रभावी पिछड़ी जातियों को सशक्त बनाएंगे।

सरकार द्वारा अगली जनगणना की घोषणा अभी तक नहीं की गई है, जो पिछली बार 2011 में हुई थी। इसलिए जाति आधारित गणना और इसके निहितार्थ का रास्ता अब भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह तय है कि भाजपा और उसके सहयोगी इस मुद्दे पर अब रक्षात्मक नहीं रहेंगे। कांग्रेस ने जहां पूर्ववर्ती जनता दल से टूट कर विभिन्न राज्यों में बने क्षेत्रीय दलों द्वारा अपनाए गए एजेंडे को आगे बढ़ाया और इसे पिछड़े वर्गों के उत्थान से जोड़ा, वहीं भाजपा ने इसके व्यापक राजनीतिक निहितार्थों को महसूस किया और एक ऐसे मुद्दे को अपनाने का निर्णय लिया जो शायद उसका मूल विचार नहीं था।

भाजपा ने इसी तरह मुफ्त उपहारों वाली लोकप्रिय योजनाओं को अपनाया था, जिन्हें सबसे पहले कर्नाटक और दिल्ली जैसे राज्यों में विपक्षी दलों द्वारा पेश किया गया था। हालांकि, शुरू में इसने ऐसी योजनाओं को ‘रेवड़ी’ कहकर इनकी आलोचना की थी। भाजपा ने नकद सहायता पर आधारित कल्याणकारी योजनाओं के बल पर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़ी सफलता हासिल की।

लोकलुभावन वादों से दिल्ली में आम आदमी पार्टी को पछाड़ दिया। भाजपा नेताओं ने कहा कि जाति आधारित गणना उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-सपा गठबंधन का भी एक प्रमुख मुद्दा है, जो ओबीसी मतदाताओं के प्रभाव के मामले में बिहार से कुछ हद तक मिलता-जुलता राज्य है।

यह उत्तर प्रदेश ही है जहां भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को लोकसभा चुनाव में प्रतिद्वंद्वी ‘इंडिया’ गठबंधन से सबसे बड़ा झटका लगा। बिहार में भाजपा-जद(यू) गठबंधन में जब चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) भी शामिल हो गई है, तो इसने इस राज्य में प्रतिद्वंद्वी राजद-कांग्रेस-वाम गठबंधन पर पारंपरिक रूप से ठोस बढ़त हासिल की है, लेकिन इसके सबसे बड़े ओबीसी क्षत्रप और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मामले में कथित गिरावट इसके खेमे में चिंता का विषय रही है।

चूंकि नीतीश जाति आधारित सर्वेक्षण कराने वाले पहले मुख्यमंत्री हैं, इसलिए केंद्र सरकार का यह निर्णय उनके लिए लाभकारी सिद्ध होगा और इससे अनेक छोटी पिछड़ी जातियों का उनका पारंपरिक समर्थन आधार भी मजबूत हो सकता है। जाति आधारित गणना की भाजपा कभी मुखर समर्थक नहीं रही और यह कांग्रेस पर जाति के आधार पर समाज को बांटने का आरोप लगाती रही है।

लेकिन इस मुद्दे की लोकप्रिय अपील का अध्ययन करने के बाद इसने कभी भी इस मांग का विरोध नहीं किया। नीतीश कुमार के सहयोगी के रूप में इसने बिहार में जाति सर्वेक्षण कराने के उनके निर्णय का समर्थन किया था। मोदी सरकार द्वारा जाति आधारित गणना को हरी झंडी दिखाए जाने के बाद भाजपा को उम्मीद है कि इससे प्रतिद्वंद्वियों को मुद्दा विहीन किया जा सकेगा।

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