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दो साल बाद भी नहीं बन सके सीएए के नियम, 9 जनवरी को समाप्त हो गई नियमों को अधिसूचित करने की तीसरी समयसीमा

By विशाल कुमार | Updated: January 10, 2022 10:40 IST

नागरिकता संशोधन कानून 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया था और 12 दिसंबर को 24 घंटे के भीतर अधिनियम को अधिसूचित किया गया था। जनवरी 2020 में, मंत्रालय ने अधिसूचित किया कि अधिनियम 10 जनवरी, 2020 से लागू होगा।

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ठळक मुद्देसीएए के नियमों की अधिसूचित करने की तीसरी समयसीमा 9 जनवरी को समाप्त हो गई।बिना नियम तैयार हुए कानून को लागू नहीं किया जा सकता है।सीएए 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया था।

नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), 2019 के पास होने के बाद से तीसरी समयसीमा बीत जाने के बाद भी केंद्रीय गृह मंत्रालय उसके नियमों को अधिसूचित कर पाने में नाकाम रहा।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), 2019 के नियमों को तैयार करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा की दो संसदीय समितियों द्वारा समयसीमा बढ़ाने की तारीख 9 जनवरी को समाप्त हो गई।

हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं हो सका है कि गृह मंत्रालय ने सीएए को नियंत्रित करने वाले नियमों को अधिसूचित करने के लिए संसद के दोनों सदनों में अधीनस्थ कानून पर समिति से और समय मांगा है या नहीं।

बता दें कि, बिना नियम तैयार हुए कानून को लागू नहीं किया जा सकता है। गृह मंत्रालय ने इस संबंध में पूछे गए सवाल का कोई जवाब नहीं दिया।

इससे पहले मंत्रालय ने समितियों से 9 अप्रैल, 2021 और फिर 9 जुलाई, 2021 तक नियमों को अधिसूचित करने के लिए समय मांगा था जो भारत के राजपत्र में प्रकाशित होगा।

बीते 30 नवंबर को गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा को बताया था कि सीएए के तहत आने वाले व्यक्ति सीएए के तहत नियमों को अधिसूचित किए जाने के बाद नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।

बता दें कि, सीएए 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया था और 12 दिसंबर को 24 घंटे के भीतर अधिनियम को अधिसूचित किया गया था। जनवरी 2020 में, मंत्रालय ने अधिसूचित किया कि अधिनियम 10 जनवरी, 2020 से लागू होगा।

सीएए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह गैर-मुस्लिम समुदायों को धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था।

इसके खिलाफ देशभर में दिसंबर, 2019 से मार्च, 2020 तक हुए विरोध प्रदर्शनों में असम, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय और दिल्ली में कम से कम 83 लोग मारे गए थे।

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