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Buxar Lok Sabha seat: रामायण में बक्सर की चर्चा, महर्षि विश्वामित्र की धरती पर खिलता रहा कमल, जानें समीकरण और इतिहास

By एस पी सिन्हा | Updated: March 5, 2024 16:14 IST

Buxar Lok Sabha seat Elections 2024: लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक बक्सर में 18वें लोकसभा चुनाव की तैयारी जोरों पर हैं। बक्सर लोकसभा क्षेत्र अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है।

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ठळक मुद्देराक्षसी ताड़का का वध राम ने यहीं किया था।बक्सर की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पहचान है।पुराणों में इसे महर्षि विश्वामित्र की धरती कहा गया है।

Buxar Lok Sabha seat Elections 2024: रामायण में ताड़का वध के लिए बक्सर मशहूर है। यह गंगा नदी के तट पर स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। प्राचीन काल में इसका नाम 'व्याघ्रसर' था। सुप्रसिद्ध बक्सर की लड़ाई शुजाउद्दौला और कासिम अली खां की और अंग्रेज मेजर मुनरो की सेनाओं के बीच यहीं 1764 में लड़ी गई थी। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां बड़ा मेला लगता है। यह क्षेत्र भगवान राम के प्रारंभिक जीवन से भी जुड़ा माना जाता है। यहां गुरु विश्वामित्र के आश्रम में राम और लक्ष्मण की शुरुआती पढ़ाई हुई थी। राक्षसी ताड़का का वध राम ने यहीं किया था।

ऐसे में बक्सर की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पहचान है। पुराणों में इसे महर्षि विश्वामित्र की धरती कहा गया है। लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक बक्सर में 18वें लोकसभा चुनाव की तैयारी जोरों पर हैं। बक्सर लोकसभा क्षेत्र अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। परंतु यह लोकसभा क्षेत्र लंबे समय से बाहरी राजनेताओं के लिए राजनीति का चारागाह साबित हुआ है।

वामपंथियों और राजद को भी यहां से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला

देश की आजादी के बाद भोजपुर व बक्सर लोकसभा चुनाव क्षेत्र रहे थे। लेकिन, बक्सर संसदीय क्षेत्र के महज दो ही स्थानीय योद्धा अपने विरोधियों को चुनावी अखाड़े में पटखनी देते हुए लोकसभा की दहलीज को पार कर पाये हैं। इनमें एक प्रथम व द्वितीय लोकसभा का चुनाव जीतने वाले निर्दलीय प्रत्याशी महाराजा बहादुर कमल सिंह रहे।

वहीं दूसरे नौंवी व दसवीं लोकसभा का चुनाव जितने वाले इटाढ़ी प्रखंड निवासी कम्युनिस्ट नेता तेजनारायण सिंह शामिल है। बक्सर संसदीय क्षेत्र कभी किसी एक दल का गढ़ नहीं रहा। यहां के मतदाताओं ने कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा पर भरोसा जताया। वामपंथियों और राजद को भी यहां से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला।

यादव वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा

यहां से राजनीति के दो दिग्गज और दोनों ’बाबा’ के नाम से मशहूर भाजपा के अश्विनी चौबे और राजद के जगदानंद सिंह लगातार 2014 और 2019 में आमने-सामने रहे और दोनों बार चौबे बाबा ने ’बिजुरिया बाबा’ को शिकस्त दी। बक्सर ब्राह्मण बाहुल्य लोकसभा सीट है। जबकि इसके बाद यादव वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है।

इसके बाद नंबर राजपूतों और भूमिहारों का आता है। हालांकि अश्विनी चौबे को लेकर बता दें कि वह भागलपुर से भी सांसद रह चुके हैं और यहां की जनता एक समय यह भी मानने लगी थी कि यहां से ज्यादा चौबे बाबा को भागलपुर का मोह रहा है। बक्सर की सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 4 लाख से ज्यादा है। यादव 3.5 लाख के करीब हैं, राजपूत भी 3 लाख और भूमिहार 2.5 के करीब है।

लोकसभा सीट में 4 विधानसभा सीट बक्सर जिले के और एक एक विधानसभा सीट रोहतास और कैमूर जिले के आते हैं

जबकि यहां 1.5 लाख के करीब मुसलमानों की भी आबादी है। बाकि कुशवाहा, कुर्मी, वैश्य, दलित और अन्य जातियां भी बड़ी तादाद में हैं। 6 विधानसभा सीटों बक्सर, ब्रह्मपुर, डुमरांव, राजपुर, दिनारा और रामगढ़ को मिलाकर इस लोकसभा सीट का गठन किया गया है। बक्सर लोकसभा सीट में 4 विधानसभा सीट बक्सर जिले के और एक एक विधानसभा सीट रोहतास और कैमूर जिले के आते हैं।

वर्ष 1962 में हुए तीसरे आम चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार बक्सर संसदीय क्षेत्र में अपना खाता खोला था। इस चुनाव में भोजपुर जिले के गोदहड़ा निवासी अनंत प्रसाद शर्मा ने जीत दर्ज की थी। 1967 में हुए चौथे आम चुनाव में कांग्रेस के ही रामशुभग सिंह ने चुनाव में फतह पाई। वह भी भोजपुर जिले के खजुरियां गांव निवासी थे। 1971 में हुए पांचवें चुनाव में एपी शर्मा दूसरी बार लोकसभा में प्रवेश किये।

केके तिवारी कैमूर जिले के रामगढ़ के खोरहरा गांव निवासी

1977 में हुए छठे आम चुनाव में कांग्रेस का गढ़ बनते जा रहे इस सीट पर भारतीय लोक दल के प्रत्याशी रामानंद तिवारी ने कब्जा जमाया। यह भी भोजपुर जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र के रामदीहरा गांव निवासी थे। 1980 व 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर अपना कब्जा जमाया। इस बार भी बक्सर को बाहर का ही प्रत्याशी मिला। जो केके तिवारी कैमूर जिले के रामगढ़ के खोरहरा गांव निवासी थे।

1989 व 91 का चुनाव दो मायने में महत्वपूर्ण रहा। पहला, कांग्रेस के किले को फतह करते हुए कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार तेजनारायण सिंह ने चुनाव जीता। दूसरा करीब तीस साल बाद जिले के इटाढ़ी प्रखंड के गोपीनाथपुर गांव के योद्धा ने लोकसभा की दहलीज को पार किया था। वर्ष 1996 में पहली बार भाजपा का खाता बक्सर लोकसभा में खुला।

इस बार भी भभुआ निवासी लालमुनि चौबे लगातार चार बार (वर्ष 2004 तक) लोकसभा का प्रतिनिधित्व किये। भाजपा का अभेद सा दिख रहे किले को वर्ष 2009 के चुनाव में राजद प्रत्याशी जगतानंद सिंह ने तोड़ा। हालांकि यह भी जिले के निवासी नहीं रहे। यह भी रामगढ़ के रहने वाले हैं।

भोजपुरी भाषी इस इलाके में यूपी से सटे होने के कारण उसका प्रभाव खूब देखने को मिलता

अब इस लोकसभा देखना है कि कौन-कौन सी पार्टियां स्थानीय को टिकट दे रही है या पुनः एक बार बाहरी जिले से बाहर का ही प्रत्याशी यहां का सांसद बनता है। बक्सर लोकसभा सीट को पूर्वांचल के रास्ते खुलने वाला यूपी में बिहार का द्वार कहा जाता है। भोजपुरी भाषी इस इलाके में यूपी से सटे होने के कारण उसका प्रभाव खूब देखने को मिलता है।

यहीं हुमायूँ और शेरशाह के बीच चौसा का युद्ध, शुजाउद्दौला और अंग्रेजों की लड़ाई, शाह आलम और मीर कासिम के बीच कतकौली की लड़ाई इस सीट की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को दर्शाती है। यहीं चौसा में शेरशाह ने मुगल शासक हुमायूं को पराजित किया था। अंग्रेजों की सेना ने बंगाल, अवध और मुगलों की संयुक्त सेना को हरा देश में ब्रिटिश हुकूमत की बुनियादी रखी थी। यह क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि आधारित है। ऐसे में यहां की राजनीतिक लड़ाई भी बेहद दिलचस्प रही है।

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