विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मंगलवार (20 मार्च) को सदन में हंगामे के चलते अपनी बात न रख पाने से खिन्न होकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी आक्रामक और असरदार शैली में कांग्रेसी सांसदों को चेताया कि उन्हें देश के इसके लिए जवाब देना होगा। लेकिन विपक्ष में रहने के दौरान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के रिकॉर्ड देखना भूल गईं।
उनसे एक कदम आगे जाकर उनके दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी ने मंगलवार को लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को पत्र लिख दिया कि जो सांसद सदन की कार्यवाही आगे बढ़ने में खलल डाल रहे हों, उनकी तनख्वाह काट ली जाए। उन्हें भी एक बार साल 2013-14 के बजट सत्र के इन आंकड़ों को जरूर पढ़ना चाहिए, जब उनकी पार्टी विपक्ष में थी।
बीजेपी ने यूपीए 2 में अटकाए थे 100 बिल, क्या वे संवेदनशील नहीं थे?
सुषमा स्वराज ने मंगलवार को आरोप लगाया कि वे इराक में मारे गए 39 भारतीयों जैसे संवदेनशील मसले पर अपनी बात रखना चाहती थीं। जो कि देश के 39 परिवारों से जुड़ी और पूरे देश के लिए बेहद जरूरी मामला था। लेकिन कांग्रेसियों ने इसे नहीं सुना। निश्चित तौर पर यह एक संवदेनशील मामला था। लेकिन क्या सुषमा स्वराज इन मामलों को संवदेनशील समझती हैं?
सयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) 2 के 2010-2014 के कार्यकाल की सदन कार्यवाही में विपक्ष, प्रमुख तौर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने करीब 100 बिल अटकाए। इनमें खाद्य सुरक्षा बिल, भूमि अधिग्रहण बिल, लोकपाल बिल, बीमा कानून (संशोधन) बिल-2008, व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन बिल, प्रत्यक्ष आयकर संहिता, इश्योरेंस कानून (संशोधन), ज्यूडिशियल स्टैंडर्ड एंड एकाउंटेबिलिटी, सेक्सुअल हरसमेंट ऑफ वूमेन एट वर्कप्लेस जैसे बिल थे।
खाद्य सुरक्षा बिल के पारित होने से देश की एक अरब बीस करोड़ आबादी के 67 फीसदी हिस्से को खाद्य सुरक्षा की गारंटी मिलनी थी। लेकिन बीजेपी के हंगामे ने इस बिल को लाने नहीं दिया था। इस बिल को यूपीए 2 ने साल 2010 में सदन में पेश किया था और 2014 बजट सत्र में भी विपक्ष ने इसे पास होने नहीं दिया था। उसी प्रत्यक्ष आयकर संहिता को बाद में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने पास कराया।
यूपीए 2 में बीजेपी ने बर्बाद कराए थे सदन के 900 घंटे
बीजेपी नेता इन दिनों बजट सत्र स्थगित होने से चिड़ाचिड़ा रहे हैं। लेकिन उन्होंने पिछले ही सरकार में अपनी करमात नहीं देखी। यूपीए 2 में विपक्ष, खासतौर पर बीजेपी के सांसदों के हंगामे के चलते सदन के करीब 900 घंटे बर्बाद हुए थे।
साल 2013 के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस नेता पवन बंसल ने कहा था, 'अगर सदन में केवल बाधा ही आती रही तो संसद का महत्व और इसकी प्रासांगिकता ही खत्म हो जाएगी।' लेकिन तब बीजेपी पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा था। एक के बाद एक सदन की कार्यवाही ठप होती रही। साल 2014 के बजट सत्र के दौरान एक खास जानकारी खूब चर्चा में रही। वह है सदन चलने के खर्चों की जानकारी।
सदन के 1 मिनट चलने का खर्च 2.5 लाख से ज्यादा
साल 2014 में भारतीय संसद के चलने के खर्चों की खूब चर्चा रही। तब हुए आकलन के अनुसार एक साल में भारतीय संसद करीब 80 दिनों तक चलती है। लोकसभा-राज्यसभा दोनों सदनों में रोजाना औसतन 6 घंटे कार्यवाही चलती है। तब सामने आए एक आंकड़े के अनुसार संसद के शीतकालीन सत्र पर 144 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
उसके अनुसार सदन की 1 मिनट की कार्यवाही पर 2.5 लाख रुपये होती है। इसी को अगर घंटेभर की कसौटी पर कसें तो हम पाएंगे कि जिस दौरान हम टीवी पर सांसदों को नारेबाजी करते देख रहे होते हैं, उसी दौरान करीब 1.5 करोड़ रुपये खर्च हो चुके होते हैं। इनमें सांसदों को मिलने वाले वेतन के मानदेय को भी शामिल किया गया था।
ऐसे में अगर पिछली सरकार के सदन कार्यवाही के 900 घंटों के बर्बादी का आकलन करें तो पाएंगे कि अरबों रुपये की बर्बादी महज संसद को चलाने और उसमें आई बाधाओं में चले गए।
कहां से आते हैं संसद चलाने के लिए पैसे
संसद की कार्यवाही आयोजित कराने के लिए सीधे भारतीय राजस्व से पैसे आवंटित होते हैं। यह पूरी तरह वह सरकारी पैसा होता है जो आमजन से टैक्स व अन्य माध्यमों से वसूला जाता है। सांसदों, लोकसभा स्पीकर, राज्यसभा सभापति (उपराष्ट्रपति) के वेतनमान भी राजकोष से दिए जाते हैं। नीचे हम वर्तमान संसद के आंकड़ों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
बजट सत्र 2018 में आने थे ये 67 बिल
बजट सत्र 2018 दो चरणों में आयोजित किया गया है। पहला सत्र 29 जनवरी से 9 फरवरी के बीच आयोजित हुआ। इस दौरान 2 फरवरी को बजट भी पेश किया गया। दूसरे चरण की कार्यवाही 5 मार्च से जारी है। लेकिन 19 मार्च तक की कार्यवाही में दोनों सदनों से किसी बिल पर आखिरी मुहर नहीं लग गई पाई है। जबकि इस लोकसभा में 28 और राज्यसभा में 39 बिल अपने पेश होने व पास होने का इंतजार कर रहे हैं। नीचे यह भी पढ़िए कि अभी तक बजट सत्र में हुई कार्यवाहियों में कितने घंटे हंसी-ठिठोली और गैर विधायी कामों में बिताई गई है।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि भारतीय लोकतंत्र में कानून बनाने व पुराने कानूनों में संशोधन का अधिकार मात्र सदन को है। सुप्रीम कोर्ट बड़े ही संजीदा मामलों में हस्तक्षेप करता है, पर वह भी सदन से मामले में अंतिम फैसले के लिए कहता है। ऐसे में अगर सदनों में कानूनों को मंजूरी नहीं मिलती तो पूरे साल आमजन को पुराने ढर्रे पर जीवन बिताना होता है। संसद इसीलिए आहूत होती है कि पूरे साल की समीक्षा पेश की जाए और लोकतांत्रिक तरीके से देशवासियों के जीवन आसान करने के दिशा में नये कानूनों को लाया जाए। क्योंकि बिना कानूनी (लीगल) अनुमति के किसी तरह का बदलाव मान्य नहीं है।
बजट सत्र 2018 में लोकसभा में आने वाले 28 बिलों की सूची
संयुक्त समिति को निर्दिष्ट बिल*भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्संस्थापन (संशोधन) द्वितीय विधेयक, 2015 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार*नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016*वित्तीय संकल्प और जमा बीमा विधेयक, 2017
लोकसभा में लौट कर आए विधेयक*संविधान (एक सौ और पच्चीसवां संशोधन) विधेयक, 2017 (लोक सभा द्वारा पारित हो चुका है, लेकिन राज्यसभा की चयन समिति ने इस पर अपने संसोधन व रिपोर्ट जारी कर वापस लोकसभा को भेज दिया है)
स्थायी समितियों को निर्दिष्ट किए गए बिल*मजदूरी के संहिता, 2017*नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बच्चों के अधिकार (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2017*राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग बिल, 2017
स्थायी समिति को अब तक निर्दिष्ट न हुए बिल*उच्च न्यायालय (नामों का संशोधन) विधेयक, 2016*संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2016*सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत निवासियों का निष्कासन) संशोधन विधेयक, 2017*ग्रैच्युटी (संशोधन) विधेयक, 2017 का भुगतान*द डेंटल (संशोधन) विधेयक, 2017*लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक, 2017*विशिष्ट राहत (संशोधन) विधेयक, 2017*नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (संशोधन) विधेयक, 2017*वार्तालाप यंत्र (संशोधन) विधेयक, 2017*उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018*नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र विधेयक, 2018
स्थायी समिति द्वारा प्रस्तुत किए गए बिल*कारखानों (संशोधन) विधेयक, 2014*विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2014*लोकपाल और लोकायुक्त और अन्य संबंधित कानून (संशोधन) विधेयक, 2014*सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (संशोधन) विधेयक, 2015*ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2016*सरोगेट (विनियमन) विधेयक, 2016*व्यापारी नौवहन बिल, 2016*मेजर पोर्ट अथॉरिटी बिल, 2016*अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2017*राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय विधेयक, 2017
बजट सत्र 2018 में लोकसभा में आने वाले बिलों की सूची
संयुक्त समिति को निर्दिष्ट बिल*भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्संस्थापन (संशोधन) द्वितीय विधेयक, 2015 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार*नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016*वित्तीय संकल्प और जमा बीमा विधेयक, 2017
लोकसभा में लौट कर आए विधेयक*संविधान (एक सौ और पच्चीसवां संशोधन) विधेयक, 2017 (लोक सभा द्वारा पारित हो चुका है, लेकिन राज्यसभा की चयन समिति ने इस पर अपने संसोधन व रिपोर्ट जारी कर वापस लोकसभा को भेज दिया है)
स्थायी समितियों को निर्दिष्ट किए गए बिल*मजदूरी के संहिता, 2017*नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बच्चों के अधिकार (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2017*राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग बिल, 2017
स्थायी समिति को अब तक निर्दिष्ट न हुए बिल*उच्च न्यायालय (नामों का संशोधन) विधेयक, 2016*संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2016*सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत निवासियों का निष्कासन) संशोधन विधेयक, 2017*ग्रैच्युटी (संशोधन) विधेयक, 2017 का भुगतान*द डेंटल (संशोधन) विधेयक, 2017*लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक, 2017*विशिष्ट राहत (संशोधन) विधेयक, 2017*नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (संशोधन) विधेयक, 2017*वार्तालाप यंत्र (संशोधन) विधेयक, 2017*उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018*नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र विधेयक, 2018
स्थायी समिति द्वारा प्रस्तुत किए गए बिल*कारखानों (संशोधन) विधेयक, 2014*विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2014*लोकपाल और लोकायुक्त और अन्य संबंधित कानून (संशोधन) विधेयक, 2014*सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (संशोधन) विधेयक, 2015*ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2016*सरोगेट (विनियमन) विधेयक, 2016*व्यापारी नौवहन बिल, 2016*मेजर पोर्ट अथॉरिटी बिल, 2016*अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2017*राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय विधेयक, 2017
बजट सत्र 2018 में राज्यसभा में आने वाले 39 बिलों की सूची
संयुक्त समिति द्वारा बताए गए विधेयक*भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक, 1987
लोकसभा द्वारा पारित किए गए विधेयक*सीटी ब्लावर प्रोटेक्शन (संशोधन) विधेयक, 2015*भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्संस्थापन (संशोधन) विधेयक, 2015 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार*कारखानों (संशोधन) विधेयक, 2016*राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (निरसन) विधेयक, 2017*स्टेट बैंक (निरसन और संशोधन) विधेयक, 2017*प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थलों और अवशेष (संशोधन) विधेयक, 2017*केंद्रीय सड़क निधि (संशोधन) विधेयक, 2017*स्थाई संपदा (संशोधन) विधेयक, 2017 का अधिग्रहण अधिग्रहण*मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2017
स्थायी समिति को निर्दिष्ट नहीं किए गए बिल*तमिलनाडु विधायी परिषद (निरसन) विधेयक, 2012*संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों (तीसरे) विधेयक, 2013 में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व का पुनर समायोजन*दिल्ली किराया (निरसन) विधेयक, 2013
लोकसभा द्वारा पारित और चयन समिति द्वारा रिपोर्ट किए गए विधेयक*मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2017
चयन समिति को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भेजे गए विधेयक*भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक, 2013
स्थायी समिति द्वारा प्रस्तुत किए गए रिपोर्ट के बिल* संविधान (79 वें संशोधन) विधेयक, 1 99 2 (विधायकों के लिए छोटे परिवार के मानदंड)*दिल्ली किराया (संशोधन) विधेयक, 1 99 7*नगरपालिका के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) विधेयक, 2001*बीज विधेयक, 2004*होम्योपैथी केन्द्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक, 2005
अगर एक भी बिल नहीं पास हुआ तो अभी तक बजट सत्र 2018 में हुआ क्या?
बजट सत्र 2018 पर एक गैर-लाभकारी समूह पीआरएस कुछ तथ्यात्मक जानकारियां रोजाना अपडेट कर रहा है। बजट सत्र में मुख्य रूप से प्रश्नकाल, विधायी कार्यवाही, गैर विधायी कार्यवाही, वित्तीय कार्यवाही होती है। लेकिन इसमें एक अन्य श्रेणी भी जोड़ दी जाती है, अन्य। इसके अंतरगत हंसी-ठिठोली व कई दूसरे तरह के कामकाज शामिल होते हैं। पीआरएस इस पर आकलन कर रहा है।
हालांकि पीआरएस इंडिया डॉट ओआरजी से जारी आंकड़ों को एक डिस्क्लेमर के साथ जारी किया जा रहा है। डिस्क्लेमर है कि यहां जारी किए जा रहे डाटा महज आपकी जानकारी के लिए हैं। पीआरएस अपना संपूर्ण प्रयास कर रहा है कि यह विश्वसनीय हों। लेकिन पीआरएस इनके पूरी तरह सच और शुद्ध होने का कोई दावा नहीं करता। जो कोई इसे देख रहा है, उसकी राय से इसका कोई लेना-देना नहीं है। आंकड़े कुछ इस तरह हैं-
लोकसभा में आवश्यक कामों में बीता समय | 32 फीसदी |
राज्यसभा में आवश्यक कामों में बीता समय | 43 फीसदी |
संसद की कार्यवाहियां | लोकसभा | राज्यसभा |
प्रश्नकाल | 2.9 फीसदी | 1.9 फीसदी |
विधायी कार्यवाही | 0.3 फीसदी | 2.5 फीसदी |
गैर विधायी कार्यवाही | 11.2 फीसदी | 24.9 फीसदी |
वित्तीय कार्यवाही | 14.4 फीसदी | 10.9 फीसदी |
अन्य | 2.5 फीसदी | 5.4 फीसदी |
लोकसभा | 31.3 फीसदी |
राज्यसभा | 45.6 फीसदी |
MY VIEW: निश्चित तौर पर संसदीय कार्यवाही के ये आंकड़े हतोत्साहित करते हैं। लेकिन इस 'ओछी राजनीति' की शुरुआत बीजेपी ने बीती सरकारों में किया। उम्मीद है सदन ना चलने से बीजेपी में व्याप्त हुआ असंतोष, खिन्नता, चिड़चिड़ापन भविष्य में बरकरार रहेगा। अपने इतिहास को भुलाते हुए वह भविष्य में भी वह सदन ना चलने से ऐसे ही खिन्न होंगे जैसे आज हो रहे हैं।