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निर्भया से अब तक: पीड़िता का नाम, उम्र और शहर ही बदले हैं नहीं बदले तो बस हालात

By ऐश्वर्य अवस्थी | Updated: April 13, 2018 15:16 IST

ये देश लड़कियों, औरतों के लिए क्या अब सुरक्षित नहीं रह गया है?  हर रोज महिलाओं के साथ रेप और हिंसा की इतनी घटनाएं होती हैं कि हम सब अंदर तक  हिल जाते हैं, या फिर कुछ लोगों को इस सबसे कोई भी फर्क ही नहीं पड़ता।

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ये देश लड़कियों, औरतों के लिए क्या अब सुरक्षित नहीं रह गया है?  हर रोज महिलाओं के साथ रेप और हिंसा की इतनी घटनाएं होती हैं कि हम सब अंदर तक  हिल जाते हैं, या फिर कुछ लोगों को इस सबसे कोई भी फर्क ही नहीं पड़ता। जब ऐसी घटनाओं की खबरें अखबार या चैंनल पर देखते हैं तो दर्द से बचने के लिए आगे निकल जाते हैं और किसी सुखद खबर की तरफ मुड़ जाते हैं या फिर सीरियल की हंसती नायिका की ओर।

मन को तसल्ली देने लगते हैं नहीं सब ठीक है, लेकिन हर रोज शहर बदल जाते हैं, पीड़िता की उम्र बदल जाती है पर मामला वही वीभत्स, कुत्सित, रौंगटे खड़े कर देने वाला होता। जो एक नारी के रूप को ही तार-तार कर देता है। छह साल पहले 16 दिसंबर की रात को जब निर्भया की बर्बरता दिखाई गई थी तो हर कोई सड़कों पर इंसाफ के लिए उतरा, उस घटना ने आत्मा तक को तार-तार किया था।

हजारों लोगों ला कैंडिल मार्च निकाले, सरकार को बलात्कार पर सख्त से सख्त कानून बनाने के लिए मजबूर किया। इसके बाद कानून बनाया भी गया, लेकिन आज मन में एक ही सवाल है कि क्या इन 6 सालों नें देश के हालात बदले, शायद नहीं। बलात्कार की घटनाएं हर रोज रिपोर्ट हो रही हैं, लेकिन इंसाफ होता दिख नहीं रहा। देश की सरकारें बदली हैं, लेकिन हालात नहीं बदले। 

उन्नाव से लेकर कठुआ तक की घटाओं ने हिलाकर रख दिया है। आए दिन नेता बयान देते हैं कि महिलाओं ऐसे कपड़े पहनती हैं इसलिए उनके साथ ऐसी घटनाएं होती हैं लेकिन कठुआ की आसिफा जो महज 8 साल की थी उसके कपड़ों में कहां कमी थी। ना जाने क्यों मन आक्रोश में है। आसिफा के साथ जिस तरह से बर्बरता दिखाई गई उसने इंसानियत को ही मार दिया। ऐसा लगता है कि इस तरह के मानसिक बीमारों को किसी कानून का डर ही नहीं है।

एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक देश में हर 14 मिनट में एक महिला यौन उत्पीड़न का शिकार होती है। साल 2016 में कुल मिलाकर रेप के 38,947 मामले देश भर में दर्ज किए गए, वहीं, कुल 66,544 औरतों को अगवा किया गया। ये वे मामले हैं जिनको पुलिस रिकॉर्ड में जगह मिलती है। लेकिन ना जाने कितना मामले ऐसे भी हैं जो कहीं दब जाते हैं।

निर्भया से लेकर आसिफा तक कुछ नहीं बदला है, अगर निर्भया की 6 साल पहले की बात की जाए तो तब कानून के बिना बर्बरता दिखाई गई थी और आज कानून बनने के बाद भी आसिफा के साथ इस घटना को अंजाम दिया गया है। जो कानून बनाया गया था वो शायद कहीं धूल ही खा रहा है। कानून में प्रावधाव था कि सोलह से अठारह साल के बीच का हो तब भी उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत सामान्य अदालत में मुकदमा चलेगा और दोषी पाए जाने पर उतनी ही सजा दी जाएगी जितनी वयस्क के लिए निर्धारित है।

लोकसभा ने इस विधेयक पर मई में मुहर लगाई थी। 2013 में आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 2013 के आने से पीड़ितों के लिए मेडिकल हेल्प मांगना और इंसाफ के लिए लड़ना थोड़ा आसान हुआ है। ताड़ना, पीछा करना और एसिड अटैक जैसे मामले भी दंडनीय अपराध हैं। लेकिन इस सबको कोई फायदा कहीं है ही नहीं।दरअसल इस तरह के ये मर्द डराना चाहते हैं, उतना ही खुद भी भीतर से डरे होते हैं। इसलिए वह अपने डर को छिपाने के लिए पौरुष का प्रयोग करते चलते हैं।

मुझे को लगता है कि इनको डर लगता है कि जिस दिन सभी लडकियों ने बेड़ियों को तोड़कर आजादी के बादल में उड़ने का फैसला किया तो इनके मर्द कहलाने की वैधता समाप्त हो जाएगी। एक दर्द से छटपटाती हूई बच्ची ने क्या इनके दिल को एक बार भी नहीं रोका। ना जानें किस मां की कोख को तार-तार करते हैं। मन करता है इन मर्दों वाली दुनिया में रहना ही नहीं। एक ऐसे जहां में बसेरा करना हैं जहां कोई मर्द ना हो जहां हर औरत खुश हो कोई सवाल ना हो उसका जीवन भी आजाद हो, उसको अपनी आबरू लुटने का डर ना हो।

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